तारिक़ आज़मी (इनपुट: मो0 आरिफ आजाद)
जयपुर में 13 मई 2008 को हुए सीरियल बम ब्लास्ट के उत्तर प्रदेश निवासी चार अभियुक्तों मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सलमान, मोहम्मद सरोवर और सैफुर्रहमान को हाईकोर्ट ने आज बुधवार को आरोपों से बरी कर दिया। इन सभी अभियुक्त को दिसंबर 2019 में स्पेशल कोर्ट ने फांसी की सज़ा सुनाई थी। यही नही अदालत ने राजस्थान पुलिस मुखिया को इस मामले के जांच अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं।
उन्होंने बताया कि “कोर्ट ने डीजीपी को गैर जिम्मेदारी से जांच करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। मुख्य सचिव को निर्देश दिए हैं कि वह डीजीपी के संपर्क में रहेंगी और देखेंगी कि डीजीपी क्या कार्रवाई कर रहे हैं।” बताते चले कि 13 मई 2008 की शाम को जयपुर के माणक चौक, चांदपोल गेट, त्रिपोलिया गेट, सांगानेरी गेट, बड़ी चौपड़, जौहरी बाज़ार में एक के बाद एक बम ब्लास्ट हुए थे। इन धमाकों में 71 लोगों की जान गई थी, जबकि 185 लोग घायल हुए थे। शहर के रामचंद्र मंदिर के पास से एक ज़िंदा बम बरामद कर उसे बम निरोधक दस्ते ने निष्क्रिय किया था।
गौरतलब है कि मामले में पुलिस ने शाहबाज हुसैन, मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और सलमान को गिरफ्तार किया था। विशेष अदालत ने 18 दिसंबर, 2019 को शाहबाज हुसैन को बरी कर अन्य चारों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। विशेष न्यायालय के फैसले के करीब आठ माह बाद अभियोजन पक्ष ने चांदपोल हनुमान मंदिर के पास मिले जिंदा बम को लेकर इन पांचों आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया था। इस आरोप पत्र में शाहबाज हुसैन को हाईकोर्ट पिछली 25 फरवरी को जमानत पर रिहा कर चुकी है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह सही है कि घटना में कई लोगों की जान गई थी और कई लोग घायल हुए थे। इसके अलावा लोगों की भावनाएं भी इससे जुड़ी हुई है, लेकिन कोर्ट भावनाओं से नहीं बल्कि कानून के आधार पर फैसला देता है। ऐसा लगता है कि जांच अधिकारियों को कानून की जानकारी ही नहीं थी। इसलिए प्रकरण में लचर जांच करने वाले जांच अधिकारियों के खिलाफ डीजीपी जांच कर कार्रवाई करें और मुख्य सचिव इसकी मॉनिटरिंग करें।
क्या रही बचाव पक्ष की दलील जिसने अदालत में साबित किया चारो को बेकसूर
अदालत ने बचाव पक्ष की उन दलीलों को माना है जिसमें पुलिस जांच पर सवाल उठाए गए थे। बचाव पक्ष की ओर से कहा गया की घटना के अगले दिन ही पुलिस ने साइकिल विक्रेताओं की बिल बुक जब्त कर ली थी, लेकिन डिस्क्लोजर स्टेटमेंट चार माह बाद लिए गए। इसके अलावा धमाका करने में काम ली गई साईकिलों और बिल बुक की साइकिलों के चेचिस नंबर अलग थे। वहीं आरोपियों की शिनाख्त परेड के दौरान जांच अधिकारी भी मौके पर मौजूद रहे।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने दलील देते हुवे अदालत को बताया कि इसके अलावा जिस साइबर कैफे से विस्फोट करने की जिम्मेदारी लेने का ईमेल भेजने की बात कही गई, वहां से कोई रिकॉर्ड जब्त नहीं किया गया ओर ना ही जिन टीवी चैनलों में यह ईमेल भेजे गए, उन लोगों के बयान लिए गए। आरोपियों की ओर से यह भी कहा गया की आरोपियों का घटना के दिन दिल्ली से बस के जरिए आना बताकर उसी दिन साईकिल खरीद कर वारदात को अंजाम देकर ट्रेन से वापस दिल्ली जाने की बात कही गई है। जबकि पुलिस ने सहयात्रियों के बयान, सीसीटीवी कैमरा रिकॉर्डिंग और टिकट आदि से जुड़े साक्ष्य पेश नहीं किए। वहीं पुलिस ने दिल्ली के जामा मस्जिद के सामने से छर्रे खरीदना बताया, जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साबित है की मृतकों के शरीर में मिले छर्रे अलग थे।
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