अनुराग पाण्डेय
डेस्क: देश के नम्बर वन का तमगा लेकर खुद को नम्बर वन साबित करने वाले आपके पसंदीदा मीडिया संस्थानों ने किस प्रकार से झूठी खबरों को आपके सामने प्रायोजित करना शुरू कर दिया है, उसकी बानगी आपने तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ कथित हमलो की खबरों को आपने उनके पहले पन्ने पर देखा। जब मामले में जाँच हुई तो आपको पता चला कि पूरी खबर ही फर्जी थी और कही की ईंट, कही का रोड़ा था।
इसमें सबसे बड़ा ट्वीस्ट तो तब आया जब पादुका पूजन में लगे लोगो को 16 मार्च की तारिख में पत्रकार राना अयूब ने समाचार एजेंसी एएनआई के साथ एसले टोजे के एक इंटरव्यू का एक वीडियो शेयर किया। इसमें वो कहते हैं कि मीडिया में उनके नाम से एक झूठा बयान शेयर किया जा रहा है। उन्हें ये कहते हुए सुना जा सकता है कि उनके बारे में एक ‘फर्जी खबर’ ट्वीट किया गया था और यूजर्स से इस पर चर्चा न करने या ‘इसे हवा न देने’ का आग्रह किया।’ इसके बाद उन्होंने ट्वीट में कही गईं बातों से मिलता-जुलता कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया। उनके सटीक शब्द थे, ‘एक फर्जी खबर ट्वीट किया गया था और मुझे लगता है कि हम सभी को इसे फेक न्यूज मानना चाहिए। ये फेक है।’
हालांकि, ये ध्यान देना चाहिए कि ये साफ नहीं है कि असल में एसले टोजे किस बात से इनकार कर रहे थे, क्योंकि जो सवाल उनसे पूछा गया था वो वीडियो में नहीं था और एएनआई ने अपने ट्विटर टाइमलाइन पर भी वीडियो पब्लिश नहीं किया था। हमें एक न्यूज चैनल का सोर्स मिला जिसके पास एएनआई फीड का एक्सेस था। उसने इस संदर्भ का एक स्क्रीनशॉट शेयर किया। जिसमें एसले टोजे के इंटरव्यू की क्लिप शेयर की जा रही थी। इसके बाद के टेक्स्ट के मुताबिक एसले टोजे पीएम नरेंद्र मोदी के नोबेल शांति पुरस्कार के सबसे बड़े दावेदार होने के दावों पर बयान दे रहे थे।
14 मार्च को एबीपी न्यूज (राजनीतिक मामले) के वरिष्ठ संपादक अभिषेक उपाध्याय ने एसले टोजे के साथ एबीपी इंटरव्यू के चार स्क्रीनग्रेब ट्वीट किए। अपने ट्वीट में उन्होंने पूछा, ‘क्या नोबेल पीस प्राइज के मजबूत दावेदार हो चुके हैं मोदी?’ ऑल्ट न्यूज को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए मोदी के संभावित दावेदार होने का ये सबसे पहला ज़िक्र यही मिला। ये हो सकता है कि इसी ट्वीट को अन्य न्यूज आउटलेट्स ने उठाया हो और एसले टोजे के बयान के रूप में इसे गलत समझा गया हो। एबीपी न्यूज के साथ एसले टोजे का इंटरव्यू इसके ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर मौजूद है। हालांकि, पूरे इंटरव्यू में हमें ऐसा एक भी मौका नहीं मिला, जहां एसले टोजे ने रिपोर्टर के लगातार उकसाने के बावजूद ये बात कही हो कि नरेंद्र मोदी नोबेल शांति पुरस्कार के प्रबल दावेदार हैं।
इंटरव्यू में 3 मिनट 45 सेकेंड पर, इंटरव्यू लेने वाले व्यक्ति ने एसले टोजे से पूछा कि क्या पीएम मोदी के नेतृत्व से रूस-यूक्रेन युद्ध को रोका जा सकता है। एसले टोजे ने जवाब दिया, ‘ठीक है, आप पूछ रहे हैं कि क्या वह नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उम्मीदवार हैं। मेरे पास आपके लिए या किसी के भी लिए एक ही जवाब है: मुझे उम्मीद है कि हर देश का हर नेता उस काम को करने के लिए प्रेरित हो जो नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित होने के लिए जरूरी है। मैं मोदी के लिए भी यही आशा करता हूं। जाहिर है, मैं उनके प्रयासों का अनुसरण कर रहा हूं; हम सब कर रहे हैं। मुझे वास्तव में उम्मीद है कि उनकी पहल सफल हो।’
5 मिनट 6 सेकेंड पर, रिपोर्टर ने फिर से पूछा, ‘क्यूंकि आप नोबेल समिति के डिप्टी लीडर हैं और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए संभावित उम्मीदवार की तलाश कर रहे हैं। मैं आपसे पूछ रहा हूं कि क्या प्रधानमंत्री मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म कर सकते हैं।’ एसले टोजे ने जवाब दिया, ‘भारत के प्रधानमंत्री के लिए चुनौती पेश करना मेरी जगह नहीं होगी। मैं चाहता हूं कि दुनिया का हर नेता शांति के लिए काम करे और मोदी जैसे ताकतवर नेताओं के पास ऐसा करने के ज्यादा मौके और क्षमता हो। मुझे ये देखकर खुशी हो रही है कि वो अपना वक्त न सिर्फ भारत के हित को आगे बढ़ाने और भारतीय अर्थव्यवस्था को विकसित करने की ताकत बढ़ाने के लिए समर्पित कर रहे हैं, बल्कि वे उन मुद्दों पर भी समय दे रहे हैं जो देश के इतने करीब नहीं हैं, लेकिन देश के हित में हैं जैसे वैश्विक समुदाय और दुनिया में शांति।’
हमने 14 मार्च को आयोजित एडीएम एंड पीस गोलमेज की यूट्यूब लाइव स्ट्रीम देखी, जहां एसले टोजे को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। अपने भाषण के दौरान उन्होंने वैश्विक राजनीति में भारत के रुख के बारे में सबसे ज़्यादा बात की। उन्होंने कहा, ‘यहां भारत आना मेरे लिए सीखने का अनुभव है। मैं इस देश की शांति परंपराओं के बारे में जानने के लिए और उस ऊर्जा के बारे में जानने के लिए भारत आया हूं, जो किसी देश के उत्थान को निर्धारित करती है। भारत एक ऐसा देश है, जो विश्व राजनीति में तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है और एक ऐसा देश है जिसे अब यह तय करना होगा कि वह किस तरह की महान शक्ति बनना चाहता है। क्या ये महाशक्ति बनना चाहता है। भारत अपने इतिहास को देखेगा, अपने सिद्धांतों को देखेगा और अपने धर्म, अपनी संस्कृति से सबक सीखेगा और दुनिया को एक महान उपहार देगा। ये मेरी आशा है।’
हालांकि, उन्होंने अपने भाषण के दौरान या सवाल जवाब सेशन के दौरान नोबेल शांति पुरस्कार के संभावित दावेदार के रूप में मोदी का कोई ज़िक्र नहीं किया। यानी, ये पूरी तरह से साफ़ है कि नोबेल समिति के सदस्य होने के नाते एसले टोजे सार्वजनिक रूप से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित व्यक्तियों का नाम नहीं ले सकते हैं और न ही वो उनके जीतने की संभावनाओं पर अनुमान लगा सकते हैं। कुल मिलाकर नोबेल पुरस्कार समिति के डिप्टी लीडर एसले टोजे ने ये नहीं कहा कि प्रधानमंत्री मोदी नोबेल शांति पुरस्कार के टॉप दावेदार हैं। एसले टोजे को मीडिया आउटलेट्स ने ग़लत तरीके से कोट किया, जिनमें से ज़्यादातर ने बाद में अपना ट्वीट डिलीट कर लिया।
यह रिपोर्ट मूल रूप से ऑल्ट न्यूज पर प्रकाशित हुई है।
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