Kanpur

कुख्यात ‘मोनू पहाड़ी हत्याकांड’ की शुरू हुई सीबीसीआईडी जाँच, उठा सवाल ‘क्या जांच में सहयोग वह ‘भाई मिया’ करेगा जिसका खुद का भाई ‘शरीफ डफाली’ कुख्यात है, पढ़े मोनु पहाड़ी के कुख्यात बनने की दास्तान और शरीफ डफली का योगदान

तारिक़ आज़मी

डेस्क: कानपुर में आतंक के पर्याय बने ‘मोनू पहाड़ी’ की हत्या जेल के अन्दर पीट पीट कर कैदियों ने कर डाली। कभी कुख्यात ‘परदेसी’ नाम से जाना जाने वाला बदमाश रईस बनारसी का जानी दुश्मन ‘मोनू पहाड़ी’ हुआ करता था और मोनू पहाड़ी का सबसे करीबी गुर्गा शरीफ डफाली था। मगर रईस और मोनू के बीच हुई सुलह में बतौर तोहफा मोनू पहाड़ी ने शरीफ डफाली को रईस बनारसी के साथ दे दिया। इसके बाद से रईस बनारसी के आखरी वक्त तक मोनू पहाड़ी का ख़ास शरीफ डफाली उसके साथ था।

शरीफ डफाली कई अपराधिक मामलो में मोनू पहाड़ी के साथ था और साथ में घटनाओं को कारित किया था। ऐसा पुलिस के कागज़ातो में और सरकारी दस्तावेजों में भी है। मगर रईस बनारसी के वाराणसी में मारे जाने के बाद से ‘शरीफ डफाली’ फरार हो गया और आज भी फरार है। सूत्र बताते है कि रईस के मारे जाने के बाद सीतापुरिया (एक बदमाश जो रईस का सबसे विश्वासपात्र था और सीतापुर का रहने वाला था) और शरीफ डफाली दोनों ही वापस मोनू पहाड़ी गैंग में आ गए और जेल में बंद अपने आका मोनू पहाड़ी के लिए काम करने लगे।

मगर वक्त ने करवट लिया। ‘जैसी करनी, वैसी भरनी’ के तर्ज पर आपसी विवाद जेल के अन्दर हुआ और मोनू पहाड़ी को जेल में बंद कैदियों ने इस बेदर्दी से पीटा कि उसकी मौत जेल में हो जाती है। मोनू पहाड़ी की मौत के बाद भले ही प्रशासन ने चैन की साँस लिया हो मगर उसका गैंग सूत्र बताते है कि सीतापुरिया और शरीफ डफाली के इशारों पर चल रहा है। मगर पुलिस फाइल में शरीफ डफली अथवा सीतापुरिया का ज़िक्र इसके बाद कही दिखाई नही देता है।

अब मोनू पहाड़ी के मौत की जांच सीबीसीआईडी के द्वारा किया जा रहा है। कल जाँच टीम कानपुर जांच करने आई थी। टीम इस दरमियान मोनू पहाड़ी के करीबियों से जानकारी इकठ्ठा कर रही थी। मगर जो सबसे अचम्भे की बात दिखाई दी वह यह थी कि मोनू पहाड़ी के साथ फाईली अपराधी शरीफ डफाली का सगा भाई ‘मियाँ डफाली उर्फ़ मियाँ भाई’ इस जांच कर रही टीम के साथ उसके सहयोगी के तौर पर उनके साय की तरह लगा हुआ था। सूत्रों की माने तो अपने भाई शरीफ डफाली को शराफत का चोगा पहनाने के लिए ‘मियाँ डफाली’ इस टीम के साथ लगा हुआ था ताकि इसकी रिपोर्ट के आधार पर शरीफ डफाली को मोनू की फाइल से अलग कर दिया जाए और वह शराफत का चोगा पहन डाले।

इलाके में भाई मियाँ का दबदबा उसके भाई शरीफ डफाली के कारण बना हुआ है। शरीफ बड़े गैंग का सदस्य रह चूका है। वही शरीफ डफाली के संरक्षणदाताओं में वही लोग है जो कभी मोनू पहाड़ी और रईस बनारसी को संरक्षण देते थे। रईस के मारे जाने के बाद भले लोग उसको लावारिस समझे मगर सूत्र बताते है कि रईस के काफी असलहे और मोनू पहाड़ी के काफी असलहे शरीफ डफाली के पास है। ऐसे में सीबीसीआईडी को पहले शरीफ डफली की तलाश करके उसके पास से उन अत्याधुनिक असलहो की बरामदगी करवाना चाहिए जिसका ज़िक्र पुलिस के अपने रेकार्ड्स में भी है। मगर जब भाई मिया खुद सीबीसीआईडी की टीम के साथ घूम घूम कर जांच करवा रहा है तो फिर उसके भाई की जाँच इस टीम के द्वारा होगी ये बड़ा सवाल है।

कौन था मोनू पहाड़ी

मोनू पहाड़ी और रईस दोनों एक साथ खेल कर बड़े हुवे थे। इस दरमियान बहुत कम उम्र में ही मोनू पहली पुलिस के लिए सरदर्द बन गया और जरायम की दुनिया में अपने परिवार के सदस्यों की राह पर चलता हुआ आ गया। मोनू पहाड़ी की हिस्ट्रीशीट का नम्बर 88ब/ए है। मोनू पहाड़ी के बाप नासिर अली की रिक्शा कम्पनी थी ने उसका नाम राशिद रखा था। राशिद को प्यार से लोग मोनू कहते थे। मगर जल्द ही उसने अपना रंग रूप दिखा दिया और अपने हत्यारे चाचा की तरह ही जरायम की दुनिया में कदम रख लिया। आखिर उसका अंत भी उसके चाचा जैसा ही हुआ और जैसे उसका चाचा जेल में ही मर गया था वैसे मोनू पहाड़ी भी जेल में ही मार दिया गया।

मोनू पहाड़ी के दो भाई नाजिम अली और आशू मुंबई में रहते है। नाजिम का नाम रईस बनारसी के हिस्ट्रीशीटर भाई नौशाद कालिया हत्याकांड में आया था। इससे रईस बनारसी और मोनू पहाड़ी के बीच रंजिश भी हुई, मगर माना जाता है कि रईस से पुराने दोस्ती का हवाला देकर मोनू पहाड़ी ने रईस से सुलह कर लिया और अपने भाई नाजिम को मुंबई भगा दिया। इस सुलह के बाद रईस ही उसके गैंग को आपरेट करता था। अक्सर फरारी का वक्त मोनू पहाड़ी रईस के बनारस स्थित अड्डो पर गुजारता था। रईस के साथ ही उसका सम्बन्ध बनारस रहने के दरमियान कई बड़े माफियाओं से हो गया था ऐसा उस समय पुलिस मानती थी।

मोनू पहाड़ी जरायम की दुनिया में कानपुर शहर के लिए एक दहशत का दूसरा नाम था। शहर में छोटी से उम्र में ही जरायम की दुनिया में कदम रखने वाले मोनू ने कुछ ही दिनों में अपना गैंग बना लिया था। उसकी हिस्ट्रीशीट के मुताबिक उसके गैंग में हीरामन का पुरवा में रहने वाले शफीक ढपाली का बेटा शरीफ ढपाली, पनकी साहब नगर निवासी पप्पू खटिक उर्फ संजय सोनकर, हीरामन का पुरवा का शानू चिकना उर्फ शानू वाईकर, मियां मुनक्कू, छोटे मिया का हाता का रेहान उर्फ गुड्डू, हीरामन पुरवा के आफाक सुनहरा और अखलाख, चमनगंज का कालू उर्फ कार्लोस, नाला रोड का नौशाद, शेरू, रईस बनारसी, बाबूपुरवा का बबुआ झाड़ूवाला, शाह आलम और शानू उर्फ मोटा है।

जिसमें मोनू सबसे ज्यादा भरोसा शानू चिकना, मिया मुनक्कू और रेहान उर्फ गुड्डू पर करता था। गैंग में पप्पू खटिक भाड़े पर हत्या, लूट, अपहरण और फिरौती वसूलता है। शानू चिकना गैंग के सदस्यों को गाड़ी और असलहे उपलब्ध करता है, जबकि रेहान किसी भी सदस्य के जेल जाने पर उसकी जमानत का इंतजाम करता है। वहीं, मिया मुनक्कू, आफाक सुनहारा और अखलाख सुनहरा गैंग के सदस्यों को फरारी के समय छुपने का इन्तजाम करता है। इस गैंग में शरीफ डफाली का सबसे बड़ा योगदान रहता था कि घटना के बाद भागने में बैकअप तैयार करना और एक शहर से दुसरे शहर जाने के लिए बाइक लेकर जाना। अक्सर इस गैंग के सदस्य ट्रेन अथवा बस या फिर चार चक्का गाडियों का इस्तेमाल न करके पुलिस से बचने के लिए बाइक से ही फरारी काट लेते थे।

दिन दहाड़े करता था मोनू हत्या

मोनू पहाड़ी दिनदहाड़े मर्डर करता था, ताकि उसकी दहशत शहर में फैल जाए और उसको रंगदारी मिलने लगे। उसने सबसे पहले डी-ख गैंग के सरगना से सुपारी लेकर हिस्ट्रीशीटर लाला हड्डी को दिनदहाड़े गोली मार दी थी। उसने लाला हड्डी को सात गोलियां मारी थी। इसके बाद उसने मूलगंज चौराहे में सरेआम हसीन टुण्डा की गोली मारकर हत्या कर दी थी। उसने हसीन को पांच गोलियां मारी थी। उसने स्मैक तस्कर से सुपारी लेकर भरी बाजार में चौरसिया की हत्या की थी। उसने चौरसिया के आठ गोलियां मारी थी। इस दौरान उसका जूही निवासी नेहा नाम की एक युवती से प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गया। इसी दरमियान पुलिस ने मोनू पहाड़ी को गिरफ्तार करके उसको जेल भेज दिया। मोनू की जगह पूरी करने के लिए नेहा के पास उसका साथी हिस्ट्रीशीटर बरखुरदार उसके घर जाने लगा। जिसका पता चलने पर मोनू कचहरी में पेशी के दौरान पुलिस कस्टडी से भाग गया। इसके कुछ दिनों बाद ही उसने जूही में भरी दोपहर में नेहा की गोली मारकर हत्या कर दी। वो उससे इतनी नफरत करने लगा था कि उसने नेहा को सात गोली मारी थी। जिसमें छह गोलियां उसने निहा के गुप्तांग में मारी थी।

यही उसकी बदले की आग नही ठंडी हुई। इसके बाद उसने हिस्ट्रीशीटर बरखुरदार की सात गोली मारकर हत्या की। जिसमें उसने तीन गोलियों उसके चेहरे में मारी थी। इन दोनों मर्डर से उसकी दहशत और बढ़ गई। वो नवीन मार्केट समेत अन्य बाजारों में जाकर रंगदारी वसूलने लगा। इसके बाद उसने एसएसपी ऑफिस के पास वीआईपी रोड में सुबह हिस्ट्रीशीटर शानू ओलंगा की रईस बनारसी के द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई, इस हत्याकांड में रईस के साथ गुड्डू मामा और मोनू पहाड़ी भी थे। जिसके बाद से मोनू पहाड़ी फरार हो गया। शहर में मोनू पहाड़ी के आतंक से कारोबारी परेशान थी। वो वसूली से तंग आकर कारोबारियों के एक गुट ने आला ऑफिसर्स के शिकायत की थी। उस पर पचास हजार का ईनाम भी घोषित कर दिया। जिसके बाद पुलिस उसको बेतहाशा तलाश करने लगी थी। बताया जाता है कि इसके बाद मोनू पहाड़ी कानपुर से बनारस भाग गया। वहां पर वो रईस बनारसी के जरिए एक बाहुबली के संपर्क में आ गया। उसने वहां पर बाहुबली के कहने पर कई वारदात को अन्जाम दिया है।

इसरार पागल बना था मोनू पहाड़ी का रोल मॉडल

दलेलपुरवा का मोनू पहाड़ी स्कूल में पढ़ाई में कमजोर था। वो बचपन में ही बुरी संगत में पड़कर बिगड़ गया था। उसको क्फ् साल की उम्र में पुलिस ने मकान के विवाद में गिरफ्तार किया था। उसको बाल सुधार गृह में रखा गया था। जहां से वो कुछ दिनों बाद भाग गया था। जिसके बाद से वो हिस्ट्रीशीटर इसरार पागल के साथ जुड़ गया। उसने इसरार पागल के तेवर और रसूख को देखकर उसी तरह का बड़ा अपराधी बनने का इरादा कर लिया। इसके बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कुछ दिनों बाद इसरार शहर छोड़कर गया, तो वो गैंग की कमान मोनू पहाड़ी को दे गया। बस यहीं से मोनू पहाड़ी जरायम की दुनिया में कदम रख दिया। उसने जल्दी रुपए कमाने की हवस में शानू बॉस के साथ मिलकर भाड़े में हत्या करने लगा। उसने रफीक के कहने पर कई मर्डर किए। उसने छह महीने में चकेरी से लेदर कारोबारी और श्यामनगर के वारदाना कारोबारी को अगवा कर मोटी फिरौती वसूल ली। जिससे उसने इतनी दहशत बना दी कि कारोबारी उसे रंगदारी देने लगे। वो ब्याज में रुपए बांटने लगा।

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