तारिक़ आज़मी
आज सुबह से हमारे काका टीवी कानफाडू आवाज़ में चालु कर अपने आपको बहुते तेज़ चैनल बताने वाले टीवी चैनल को लगा के आँख गडाए बैठे रहे। एक तो सहरी करने के बाद आई मीठी नींद में खलल उनकी कानफाडू टीवी पर दिमाग फाडू पत्रकारिता कर रही थी। उस पर एक टेंशन तो गुरु तनिक हमहू के रहा कि कही बिना नाहे धोये, लैपटपवा लेकर बैठे के न पड़ जाए, भाई गाडी ही तो है कही पलट गई तो का होई….?
मगर सच बताये हमको बड़ा विश्वास था अपने यूपी पुलिस की क़ाबलियत पर कि उसने जो कहा है सुरक्षित नैनी जेल लेकर अतीक और ओकर दुसरके भाई अशरफ के लायेगे, तो लायेगे। इसी विश्वास को दिमाग में बैठा कर थोडा एक घंटा अऊर मुहवा पर तकिया धर के सो लिए। ओके बाद आराम से नहाये धोय के काका से रोज़ की तरह मुलाकात करने गए। काका का देखा तो मुड़े एकदम्मे ख़राब रहा। ऐसा लग रहा था कि जैसे भुत देख लिहिन हो और डर गए हो।
हम किसी तरह अपनी हंसी रोक कर अपने दफ्तर को रवाना हुवे मगर पुरे रस्ते बाइक चलाते हुवे परेशान थे कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है..? इतना बड़ा कोई गलती कैसे कर सकता है…? दफ्तर पहुचे और सिस्टम चालु करके तनिक मनिक इनपुट देखे चालु कर दिया था कि बगल के सिस्टम पर काम करते-करते ‘तंदुरुस्ती की मिसाल’ शाहीन ने बताया कि सदफ आफरीन की ट्वीट देखे…..! और कह कर खिस्स से हंस दिहिन….! ‘सुना रहा कि हे.. हे… हे…. हे…, हंस देहलन ‘केहू’ के पापा…! मगर पहली बार देखा कि ‘खिस्स से हंस दिहिन करन की आपा..!’ हमने ट्वीटर पर अफरीन की ट्वीट खोली और देखा तो हमको बात काका की समझ आई कि ‘सबसे तेज़’ के चक्कर में ‘सूत्र पत्रकारिता’ के अपार सफलता के बाद इतनी तेज़ी दिखाई कि ‘मूत्र पत्रकारिता’ तक आ गये।
ऐसा लग रहा था जैसे अतीक माफिया नही पूरी दुनिया का सबसे बड़ा सेलिब्रेटी हो। पुलिस ने उसको लघु शंका के लिए गाडी से नीचे उतारा। एक तो खुदही काफी समय के बाद खेत खलिहान देखे होगा वो। उस पर मीडिया ने उसके जार्बन खोलने से लेकर मुतने तक का लाइव टेलीकास्ट कर डाला। हम तो परेशान थे कि कही सबसे तेज़ होने के दावे के साथ रात को एक डिबेट न करना शुरू कर दे कि 24 घंटे तक अतीक मुतने तो उतरा गाडी से फिर क्या डर के वजह से हगने नही गया क्या? या फिर डाइपर पहने हुवे था?
मगर चैनल अभी दुसरे तरफ देखे हुवे है। उसके इतनी मेहनत के बाद भी गाडी पलटी नही यही सोच रहा होगा कि कितनी मेहनत किया। कितना भागे, कितना दौड़े, मगर गाडी का ड्राईवर बहुत अनुभवी निकला। गाडी ही नही पलटी और सीधे प्रयागराज आ गई। हमारे भी शिष्य प्रयागराज में बैठे तारिक़ खान रात भर सोये नही थे। सुबह सहरी करके थोड़ी देर सोये थे। वहु परेशान थे कि कही गाडी पलट न जाए। जबकि हम उनको कहा था कि हर बार गाडी पलट नही पाती है। कभी कभी विकास दुबे जैसा आदमी गाडी में बैठा होता है तो गाडी एक बार गलती से पलट का गई तुम लोग हर बार उम्मीद पाल बैठते हो कि गाडी पलट जाएगी।
मगर तारिक़ खान का क्या कहे, नाम राशि हमारे है, मगर सोचते पडोसी की तरह है। प्रयागराज में अतीक की गाडी जिस काफिले के साथ दाखिल हुई और जिस प्रकार से आम जनता सड़क पर अतीक को खड़े होकर देख रही थी। वह बहुत कुछ बयान करता है। सोचे सिर्फ और उस ज़मीनी हकीकत से रूबरू हो जाए, जिसको शायद मीडिया नही दिखा रहा है या फिर उसको सोचने का वक्त नही है। अगले स्पेशल सीरिज़ में आपको बतायेगे कि क्या अतीक के पुरे कुनबे को एक ही जेल में रख कर उसको सुविधा मिली है? मगर आप अभी सिर्फ यही सोचे कि सूत्र पत्रकारिता के अपार सफलता के बाद अब एक नंबर और बहुते तेज़ वाला मूत्र पत्रकारिता भी दिखा सकता है। दिखाए भी क्यों नही, आप यही सब देख कर मस्त रहे। व्यस्त रहे। जय हो।
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