National

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2019 में मान सिंह के आजीवन कारावास की सजा में छुट देने के आदेश को किया रद्द, कहा दोषी छुट का हकदार नही, पढ़े क्या है मामला

तारिक़ खान   

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कल बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार के एक हुक्म जिसके ज़रिये दो आपराधिक मामलों में आजीवन कारावास की सजा पाए एक दोषी मान सिंह को वर्ष 2019 में राज्य सरकार द्वारा उसकी सज़ा में छूट प्रदान की गई थी, को रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि दोषी मान सिंह का मामला राज्य सरकार की छूट नीति के अनुसार निषेध संख्या (x) के अंतर्गत आता है, इसलिए वह छूट का हकदार नहीं है।

ज‌स्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस सुरेंद्र सिंह- I की खंडपीठ ने दोषी को 30 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने और सजा के शेष हिस्से को भुगतने का निर्देश दिया। अदालत संजय वर्मा नामक एक व्यक्त‌ि की आपराधिक रिट याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें दोषी मान सिंह को छूट देने के सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी। 2007 के संबंधित सत्र परीक्षण में संजय वर्मा गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जिसमें दोषी की सजा माफ कर दी गई थी।

अदालत के समक्ष, वर्मा की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि दोषी का 27 मामलों का आपराधिक इतिहास था, जिसे छूट देते समय ध्यान नहीं दिया गया था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि सरकार की 2018 की छूट नीति के अनुसार अपराधी को पहले उम्रकैद की सजा दी गई है, जिससे वह छूट के लिए अयोग्य हो जाता है। दूसरी ओर, राज्य सरकार ने अपने आदेश को सही ठहराते हुए एक हलफनामा दायर किया, जिसमें यह तर्क दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दोषी व्यक्तियों की समय से पहले रिहाई के लिए राज्यपाल के पास छूट देने की शक्ति है और आक्षेपित आदेश वैध रूप से पारित किया गया था।

उल्लेखनीय है सरकार की 2018 की छूट नीति के तहत निषेध वर्ग के खंड (x) में कहा गया है कि एक दोषी, जिसकी सजा को कम किया जा सकता है, वह एक से अधिक आपराधिक मामलों में आजीवन कारावास की सजा का दोषी नहीं होना चाहिए था। मौजूदा मामले में अदालत ने कहा कि दोषी की सजा को कम नहीं किया जा सकता है। उसका मामला खंड (x) के तहत आता है, क्योंकि उसे दो मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, जिनमें से एक वर्ष 1995 में दी गई ‌थी।

कोर्ट ने देखा कि मान सिंह का 26 अन्य मामलों का आपराधिक इतिहास भी है, जिसे राज्यपाल के ध्यान में नहीं लाया गया था। उल्लेखनीय है कि राज्यपाल के पास संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दोषी को क्षमा करने, सजा को कम करने और रिहा करने की शक्ति है। कोर्ट ने कहा, “इस प्रकार, प्रतिवादी संख्या 5, मान सिंह संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत पारित एक अगस्त, 2018 के शासनादेश के तहत जारी आक्षेपित आदेश के प्रावधानों के तहत सजा में छूट के हकदार नहीं है।

इसके अलावा आक्षेपित आदेश, जिसके जर‌िए उसे सजा में छूट दी गई है, इस तथ्य का कोई नोटिस नहीं है कि उसके खिलाफ 26 अन्य आपराधिक मामलों का आपराधिक इतिहास है।” इस संबंध में कोर्ट ने स्वर्ण सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी, (1998) 4 एससीसी 75 केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी विचार किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा गया था कि, अगर राज्यपाल ने एक दोषी को इस तथ्य की अनदेखी करते हुए सजा में छूट दी है कि उसके खिलाफ कई अन्य आपराधिक मामले लंबित हैं, तो बाई-प्रोडक्ट ऑर्डर को कानून की स्वीकृति नहीं मिल सकती है।

pnn24.in

Recent Posts

छठ पूजा: इस बार बरेका के सूर्य सरोवर पर पास से मिलेगा प्रवेश, होगी वाहनों हेतु विशेष व्यवस्था

ए0 जावेद वाराणसी: छठ पूजा का महापर्व इस वर्ष 5 नवंबर से शुरू हो रहा…

22 hours ago

गजब लापरवाही: वाराणसी एयरपोर्ट के अराइवल गेट की चाबी गुम जाने से 30 मिनट तक फंसे रहे शारजाह से आये यात्री, निकालने के लिए गेट का काटा गया लॉक

शफी उस्मानी वाराणसी: वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट पर कर्मियों की एक बड़ी लापरवाही…

22 hours ago

कनाडा के मंदिर में हमला, पीएम जस्टिन ट्रूडो ने किया हमले की निंदा

माही अंसारी डेस्क: कनाडा के टोरंटो के ब्रैम्पटन इलाक़े में स्थित एक हिंदू मंदिर के…

1 day ago

उत्तराखंड: अल्मोड़ा की खाई में गिरी बस, 35 की मौत, 15 घायल

आफताब फारुकी डेस्क: सोमवार सुबह उत्तराखंड के अल्मोड़ा के मार्चुला में यात्रियों से भरी बस…

1 day ago

मध्य प्रदेश: जंगली जानवरों के हमलो से मारे गए लोंगो के परिजनों को सरकार देगी 25 लाख मुआवजा

तारिक खान डेस्क: मध्य प्रदेश सरकार ने जंगली जानवरों के हमले में मारे जाने वाले…

1 day ago