तारिक़ खान
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात सरकार को बिलकीस बनो केस में जमकर फटकार लगाते हुवे कहा है कि ‘आज बिलकिस बानो है कल कोई और होगा, आपको साफ़ साफ़ दोषियों के रिहाई का कारण बताना चाहिए’। अदालत आज बिलकिस बानो मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को समय से पहले रिहा करने के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमे पिछली सुनवाई में अदालत ने सरकार से रिहाई के कारणों के बारे में पूछा था।
सुनवाई के दरमियान जस्टिस के0एम0 जोसेफ और जस्टिस बी0वी0 नागरत्ना की खंडपीठ ने गुजरात सरकार को फटकार लगाते हुवे कहा कि जब समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने वाले ऐसे जघन्य अपराधों में छूट पर विचार किया जाता है तो सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए। आप बता रहे है कि सिर्फ इसलिए कि केंद्र सरकार ने राज्य के फैसले से सहमति जताई है, इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य को अपना दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है।
जस्टिस जोसेफ ने सुनवाई के दरमियान कहा कि ‘सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया, किस सामग्री को अपने निर्णय का आधार बनाया, आदि (न्यायिक) आदेश में दोषियों को उनके प्राकृतिक जीवन के लिए जेल में रहने की आवश्यकता है। वे कार्यकारी आदेश द्वारा जारी किए गए थे। आज यह महिला (बिलकिस) है। कल, यह आप या मैं हो सकते हैं। वस्तुनिष्ठ मानक होने चाहिए, यदि आप हमें कारण नहीं देते हैं तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे।‘
जस्टिस जोसेफ ने उत्तरदाताओं को 1 मई तक फाइल पेश करके अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है। पीठ ने अब मामले को 2 मई के लिए सूचीबद्ध किया है। इसी तारिख को अदालत के 27 मार्च के आदेश के खिलाफ सरकार द्वारा दायर की जाने वाली प्रस्तावित पुनर्विचार याचिका पर भी फैसला करेगी। केंद्र और गुजरात सरकार दोनों की ओर से पेश हुए एएसजी एसवी राजू ने पीठ से कहा, ‘हम इस बारे में सोमवार तक विचार करेंगे कि फाइल करनी है या नहीं।‘
प्रारंभ में दोषियों के वकीलों ने मामले में जवाब देने के लिए और समय मांगा और पीठ से सुनवाई स्थगित करने का आग्रह किया। हालांकि याचिकाकर्ताओं ने इस अनुरोध का कड़ा विरोध किया। सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने जिरह करते हुवे अदालत से कहा कि ‘हर बार कोई तारीख मांगता है।‘ एडवोकेट शोभा गुप्ता ने दलील दिया कि कुछ भी नया दायर नहीं किया गया, इसलिए प्रतिवादी स्थगन की मांग करने के लिए रिकॉर्ड की मात्रा का हवाला नहीं दे सकते। जिस पर पीठ ने कहा कि कभी-कभी आरोपी व्यक्ति देरी करने की रणनीति में लिप्त होते हैं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ‘हर बार जब सुनवाई होती है तो एक आरोपी इस अदालत में आएगा और स्थगन की मांग करेगा। चार हफ्ते बाद एक और आरोपी ऐसा ही करेगा और यह दिसंबर तक चलेगा। हम इस रणनीति से भी अवगत हैं।‘
इसके बाद सरकार की ओर से पेश एएसजी एसवी राजू ने सुझाव दिया कि सुनवाई के लिए निश्चित तारीख तय की जा सकती है। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने मामले के रिकॉर्ड का भी अवलोकन किया। यह नोट किया गया कि दोषियों को 3 साल की पैरोल दी गई थी, जब वे सजा काट रहे थे। उनमें से प्रत्येक को 1,000 से अधिक दिनों की पैरोल दी गई थी, एक दोषी को 1,500 दिन की पैरोल मिली। ‘आप किस नीति का पालन कर रहे हैं?’ अदालत ने कहा कि बलात्कार और सामूहिक हत्या के अपराध से जुड़े मामले की तुलना साधारण हत्या के मामले से नहीं की जा सकती। ‘क्या आप सेब और संतरे की तुलना करेंगे?’
प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि, ‘आपने कहा है कि यह एक गंभीर अपराध है और मैं इसकी सराहना करता हूं। लेकिन हम उन लोगों के साथ भी व्यवहार कर रहे हैं जो 15 साल से हिरासत में हैं।‘ जिस पर जस्टिस जोसेफ ने जवाब देते हुवे कहा कि ‘क्या वे 15 साल से हिरासत में हैं? 1000 दिनों से अधिक की पैरोल’। जस्टिस रस्तोगी की अगुवाई वाली एक पीठ ने मई 2022 में फैसला सुनाया था कि गुजरात सरकार के पास छूट के अनुरोध पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र था क्योंकि अपराध गुजरात में हुआ था। इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए बिलकिस बानो द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2022 में खारिज कर दिया था। इस बीच सभी ग्यारह दोषियों को 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया गया, जब राज्य सरकार ने उनके क्षमा आवेदनों को अनुमति दी।
रिहा किए गए दोषियों के वीरतापूर्ण स्वागत के दृश्य सोशल मीडिया में वायरल हो गए, जिससे कई वर्गों में आक्रोश फैल गया। इस पृष्ठभूमि में दोषियों को दी गई राहत पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की गईं। बिल्किस ने दोषियों की समय से पहले रिहाई को भी चुनौती दी। गुजरात सरकार ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दोषियों के अच्छे व्यवहार और उनके द्वारा 14 साल की सजा पूरी होने को देखते हुए केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद यह फैसला लिया गया है। राज्य के हलफनामे से पता चला कि सीबीआई और ट्रायल कोर्ट (मुंबई में विशेष सीबीआई कोर्ट) के पीठासीन न्यायाधीश ने इस आधार पर दोषियों की रिहाई पर आपत्ति जताई कि अपराध गंभीर और जघन्य था।
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