वाराणसी: नही रहे बनारस की नई सड़क के मशहूर ‘शकील चाय वाले’
ए0 जावेद
वाराणसी: वाराणसी के नई सडक इलाके के मशहूर ‘शकील चाय वाले’ का आज शाम लम्बी बिमारी के बाद इन्तेकाल हो गया है। वह 80 वर्ष के थे और पिछले काफी समय से बीमार थे। उनका इलाज वाराणसी के खजुरी मार्ग स्थित एक निजी चिकित्सालय में चल रहा था।
बनारस की मशहूर चाय की अडियो में एक चौराहे पर स्थित शकील चाय वाले की अड़ी थी। शकील मियाँ अपनी जवानी के दिनों से यहाँ चाय की दूकान चलाते थे। पूरी रात खुलने वाली इस चाय के दूकान की अड़ी पर पूर्वांचल के काफी सियासतदा आकर अपने वक्त गुजारते थे। बनारसी अड़ी में तीन मशहूर रही जिनमे एक अस्सी स्थित पप्पू की अड़ी, दूसरी मैदागिन स्थित ज्वाला की अड़ी और तीसरी बेनिया स्थित शकील की अड़ी।
मैदागिन स्थित ज्वाला की अड़ी जहा कांग्रेस की सियासत का गढ़ मानी जाती थी, मगर वक्त के साथ लगभग डेढ़ दशक पहले यह अड़ी खत्म हो गई। वही पप्पू की अड़ी अभी भी गुलज़ार रहती है। पिछ्ले 5 दशक से बेनिया स्थित शकील चाय वाले की अड़ी समाजवादी सियासत के लिए मुख्य अड़ी मानी जाती थी। शकील मिया की चाय पीने लोग दूर दराज़ से आते थे।
मगर वक्त के साथ शकील मिया को उम्र के तकाज़े ने घेर लिया और वह बीमार रहने लगे। दूकान अभी भी उनके बेटो के हाथो गुलज़ार तो है। मगर रात में ‘बाबु’ के ज़रिये ही शकील मिया के हाथो का टेस्ट लोगो को आता है। फिर भी शकील मियाँ की बिमारी के वजह से अड़ी अब उस तरीके से नही लगती जैसे उनके बैठते वक्त लगती थी। स्थानीय कारोबारियों की माने तो लोहिया आन्दोलन में शकील मिया की अड़ी पर काफी लोहियावादियो का जमावड़ा लगता था।
पिछले लगभग तीन वर्षो से शकील मिया को बीमारी ने ऐसा घेर कर बिस्तर पर पटका की संघर्ष में ज़िन्दगी बसर करने वाले शकील मिया बिस्तर छोड़ ही नही सके। बिमारी के दो साल तक तो उन्होंने दूकान पर आमद अपनी चंद घंटो की ही सही बनाये रखा था। मगर पिछले एक साल से उनकी गद्दी पर उनका बेटा बाबु उनकी कमी को पूरा करने की कोशिश करता रहता है। बेटो ने पिता के इलाज में कोई कसर नही छोड़ी। मगर हयात ने इतना ही वक्त दिया था शकील मियाँ को। आज शनिवार की रात इशा के वक्त उनका इन्तेकाल हो गया। नमाज़-ए-जनाज़ा कल बाद नमाज़ जोहर मस्जिद अल-कुरैश में अदा होगी और मिटटी रहीम शाह बाबा की तकिया पर पड़ेगी।