तारिक़ आज़मी
कौन कहता है कि तस्वीरे बोलती नही है? बेशक तस्वीरे बोलती है और रूह तक को झकझोर के रख देती है। कई तस्वीरे खुद में अपना एक लफ्ज़ छिपाए रहती है। बेशक तस्वीर निर्जीव हो, मगर हमारे मन से निकले अलफ़ाज़ उनको सजीव बना देते है। ऐसी कई तस्वीरे हमारे निगाहों के सामने से गुज़र जाती है जिनको देख कर भले हम अनदेखा कर डाले, मगर उनके अन्दर भी एक खुबसूरत पैगाम होता है।
ऐसा ही एक सवाल था कि किसी पाठक ने केविन से पूछा कि ‘उस बच्ची का क्या हुआ?’ जिस पर केविन ने जवाब दिया कि ‘मुझे नहीं मालूम उसका क्या हुआ, क्योकि मेरी फ्लाइट थी और मैं वह से तुरंत चला गया।’ इस जवाब पर उक्त सवाल करने वाले ने कहा था कि ‘केविन आपको पता है वहा एक नही दो गिद्ध थे जिसमे एक के चोच थी और दुसरे के हाथ में कैमरा था।’ कई मीडिया रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र है कि इसके बाद केविन कार्टर डिप्रेशन में चले जाते है और उनकी ज़िन्दगी का अंत ख़ुदकुशी से हुआ था। इस घटना का ज़िक्र सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 28 मई 2020 को सुप्रीम कोर्ट में हुई प्रवासी मजदूरो के सम्बन्ध में सुनवाई के दरमियान भी किया था।
तस्वीर को गौर से देखे तो एक बच्चा खुद के कंधो पर एक बोरा लिए हुवे है। बदन पर तन ढकने को चिथड़े नसीब है। वही उसकी निगाहों के सामने एक डमी है जिसके तन पर काफी खुबसूरत कपडे है। निगाहे तस्वीर में डमी की और बच्चे की एक दुसरे से मिली हुई है। शायद बच्चे की निगाहें बोल रही है कि ‘कितना बड़ा फर्क है हम दोनों के बीच कि तेरे पास रूह नही और मेरे पास लिबास नही।’
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