तारिक़ आज़मी
देखिये साहब, हम साफ़ साफ़ कहते है कि हम तो कछु कहते ही नही है। जो कहिन हमरे कक्का कहिन है। तो हमसे हमरे कक्का अकसरे कहते रहते है कि ‘बतिया है कर्तुतिया नाही……’। अब हम कईसे अपने कक्का को समझाए कि हमारे हिस्से क़ा काम ऊ नही है। हम अपने हिस्से का काम बतियाने का करते है। तो तनिक लिख देते है। अब केहू समस्या दिखाई दे तो हम समस्या बतिया देते है। हम खूदही तो समस्या हल करवाने नही लगेगे।
वैसे स्वयं असफल व्यापारी नेता है, तो वही जननेता बनने की चाहत भी धरी रह गई उनकी तो असफलता हाथ यहाँ भी लग गई। अब कमाल की बात ये है कि एक से एक ज्ञान उनके भी है। अब उनको कौन समझाये कि भाई हम पत्रकार है। हमारा काम जनसमस्या को उजागर करना है। न कि खुदही जाकर उसको हल करवाना है। हल होती है नही होती है यह विभाग जाने। हमसे क्या मतलब है। हम तो सिर्फ विभाग की नाकामी उसको दिखाते रहेगे। जिस नाकामी को विभाग छिपा रहा होगा उसको हम लगातार उजागर करेगे। ‘उनका जो पैगाम है वह अहल-ए-सियासत जाने, अपना तो पैगाम-ए-मुहब्बत है जहाँ तक पहुचे।’
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