तारिक़ खान
डेस्क: हिडेनबर्ग-अडानी मामले में जाँच कर रही सेबी ने आज सुप्रीम को एक रिजॉइन्डर ऐफिडेविट डालते हुवे खुलासा किया है कि उसे अडानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए और समय इस कारण से चाहिए कि अडानी के कंपनियों की जाँच वर्ष 2016 से नही हुई है। सेबी ने जांच पूरी करने के लिए छह महीने का विस्तार देने के लिए एक आवेदन पर यह ऍफ़ईडेविट उस समय डाला है जब पिछले हफ्ते सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने संकेत दिया कि जांच पूरी करने के लिए वे तीन महीने से अधिक की अनुमति नहीं दे सकते।
उन्होंने पीठ को बताया था कि वास्तव में कम से कम 15 महीने की जरूरत है, लेकिन सेबी छह महीने में जांच पूरी करने के लिए अपना सर्वोत्तम संभव प्रयास करेगा।’ आज दायर हलफनामे में सेबी ने याचिकाकर्ता के उस आरोप का खंडन किया, जिसमें यह कहा गया था कि सेबी 2016 से अडानी की जांच कर रहा है। सेबी की ओर से दावा किया गया है कि जांच वास्तव में 51 भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा वैश्विक डिपॉजिटरी रसीद जारी करने से संबंधित थी, जिसमें अडानी समूह की कोई भी सूचीबद्ध कंपनी नहीं थी। उन्होंने कहा कि ‘यह आरोप कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड 2016 से अडानी की जांच कर रहा है, तथ्यात्मक रूप से निराधार है। जीडीआर से संबंधित जांच पर भरोसा करने की मांग पूरी तरह से गलत है।‘
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते की सुनवाई में एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी थी कि सेबी ने स्वीकार किया है कि वह 2017 से अडानी लेनदेन की जांच कर रहा है और इसलिए अधिक समय के लिए उनका अनुरोध स्वीकार्य नहीं है। सेबी ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि वह न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (एमपीएस) मानदंडों की जांच के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (आईओएससीओ) के साथ बहुपक्षीय समझौता ज्ञापन (एमएमओयू) के तहत पहले ही ग्यारह विदेशी नियामकों से संपर्क कर चुका है।
24 जनवरी को अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें अडानी समूह पर अपने स्टॉक की कीमतों को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर हेराफेरी और अनाचार करने का आरोप लगाया गया था। अडानी ग्रुप ने 413 पन्नों का जवाब प्रकाशित कर आरोपों का खंडन किया। 2 मार्च, 2023 को अदालत ने एक समिति का गठन किया, जिसमें सदस्यों के रूप में श्री ओपी भट (एसबीआई के पूर्व अध्यक्ष), सेवानिवृत्त जस्टिस जेपी देवधर, श्री केवी कामथ, श्री नंदन नीलाकेनी, श्री सोमशेखरन सुंदरेसन को शामिल किया गया। समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एएम सप्रे कर रहे हैं।
अदालत ने समिति को निर्देश दिया कि वह 2 महीने के भीतर इस अदालत के समक्ष सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट पेश करे। अदालत ने कहा कि विशेषज्ञ समिति का गठन सेबी को भारत में प्रतिभूति बाजार में अस्थिरता की जांच जारी रखने के लिए उसकी शक्तियों या जिम्मेदारियों से वंचित नहीं करेगा। सेबी को दो महीने की अवधि के भीतर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया था। बाद में, सेबी ने आरोपों की जांच पूरी करने के लिए छह महीने के विस्तार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया। निकाय ने कहा कि परीक्षा/जांच जिसके लिए और समय की आवश्यकता होगी, तीन व्यापक श्रेणियों में की जाएगी- -वे जहां प्रथम दृष्टया उल्लंघन पाए गए हैं और निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए 6 महीने की अवधि की आवश्यकता होगी। -जहां प्रथम दृष्टया उल्लंघन नहीं पाया गया है, वहां विश्लेषण को फिर से सत्यापित करने और एक निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए 6 महीने की अवधि की आवश्यकता होगी।
ऐसे मामलों में जहां आगे जांच की आवश्यकता है और इस उद्देश्य के लिए आवश्यक अधिकांश डेटा उचित रूप से सुलभ होने की उम्मीद है, 6 महीने में एक निर्णायक निष्कर्ष आने की उम्मीद है। पिछली सुनवाई पर सॉलिसिटर-जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि जांच को पूरा करने के लिए सेबी को कम से कम छह महीने का समय दिया जाए। चीफ जस्टिस ने ‘अनिश्चित लंबी अवधि’ की अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा, ‘तत्परता होनी चाहिए।” उन्होंने कहा, “छह महीना अनुचित है…. हम इस मामले को 14 अगस्त के आसपास रखेंगे। आप तीन महीने में अपनी जांच पूरी करें और हमारे पास वापस आएं।” जब सॉलिसिटर-जनरल अपने अनुरोध पर कायम रहे तो पीठ ने सुनवाई को सोमवार, 15 मई तक के लिए स्थगित की और कहा कि वह जस्टिस एएम सप्रे के नेतृत्व में गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पढ़ना चाहती है।
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