शाहीन बनारसी
वाराणसी: वाराणसी नगर निकाय चुनाव आज अपने शबाब पर है। शाम 6 बजे से चुनाव प्रचार बंद हो जायेगा। सभी प्रत्याशी जोर आज़माइश में दौड़ भाग कर रहे है। किसी का आज जुलूस निकल रहा है तो कोई बैठके कर रहा है। आज शाम 6 बजे के बाद जनता जनार्दन सोचेगी कि किसको जीत की माला पहनानी है और किसको नही। फिर 4 मई को उनकी किस्मतो को ईवीएम में कैद कर देगी। हमने आपसे वायदा किया था कि हम आपको आदिविशेश्वर वार्ड के सभी प्रत्याशियों के नज़रियो से रूबरू करवायेगे।
बहरहाल, हम तो विफल रहे कि साहब से सवाल पूछ सके। अगर आप पूछ सकते है तो सवालो की झड़ी हम लगा देते है। वैसे संघ से जुड़कर भाजपा की 43 साल सेवा का फल उनको यह मिला कि पार्टी ने एक पार्षद पद का टिकट नही दिया। अब शकील भाई के समर्थको का कहना है कि पार्टी के इस फैसले से नाराज़ होकर जलाल में आये शकील भाई ने अपना नामांकन कर दिया। जलाल तो वाकई आना ही चाहिए कि आखिर उन्होंने इतनी खिदमत किया संघ से जुड़े। सर पर टोपी सुसज्जित कर भाजपा के कार्यक्रमों में शिरकत किया कि वह अल्पसंख्यक की मॉडल आईकान है। मगर भाजपा ने एक पार्षद का टिकट नही दिया।
उनके नामांकन के बाद दो-तीन दिन पहले शकील भाई को भाजपा ने 6 वर्षो के लिए ‘बाय-बाय’ कर दिया। मतलब निष्कासित कर दिया। मगर उनके पुत्र जो उनका जमकर प्रचार प्रसार कर रहे है वह आज भी भाजपा आईटी सेल दींन दयाल मंडल के प्रभारी पद पर सुशोभित है। बड़ा सवाल खड़ा करता है कि भाजपा ने उन कार्यकर्ताओं को पार्टी से निकाल दिया जो उनका प्रचार न कर दुसरे का कर रहे है। मगर इनको अभी भी पदाधिकारी बनाया है, ऐसा क्यों? मगर भाई वह पार्टी की मर्ज़ी है हम क्या कह सकते है। मगर सवाल ये है कि आखिर भाजपा अभी भी शकील भाई पर मेहरबान क्यों है?
मेहरबानी देखे कि शकील भाई का चुनाव कार्यालय जहा खुला है कभी वहा भाजपा का कार्यालय हुआ करता था। झापा के यहाँ कई भाजपा के बूथ स्तर के पदाधिकारी भी देखे गए है जहा शकील भाई का कार्यालय है। फिर ये मेहरबानी क्यों? हो सकता है कि कोई विशेष गोपनीयता हो या फिर शायद पार्टी इतनी सख्ती नही दिखाना चाहती होगी कि उसके कार्यकर्ता टूट जाए। हो सकता है। मगर फिर भी सवाल वाजिब था तो मैंने सोचा था कि शकील भाई से पूछूंगी। मगर शकील भाई तो हमारे सवालो का जवाब ही नही देना चाहते है।
कल शकील भाई का जुलूस निकला था। एक बाहुबली को इस जुलूस की शोभा बनते आवाम ने देखा। अब सवाल ये है कि क्या ये बहुबल का समर्थन ऐसे दिखाना ज़रूरी था? वो जुलूस में आगे आगे मूंछो पर ताव देने की अदा क्या ज़रूरी था। वैसे नाम के साथ नारा भी लगा कि फलाने भाई-फलाने भाई जिंदाबाद जिंदाबाद। भाई बेशक हर इस देश का नागरिक जिंदाबाद है। मगर क्या ये चुनाव में ज़रूरी है? वैसे हो सकता है कि शायद हो, हमको न पता हो। संभव तो सियासत में सब कुछ है। मगर हमारा ख्याल थोडा मुख्तलिफ है। बस हमारे खयालो से इत्तिफाक रखने वाले लोग कम मिलते है। आदाब मैं हु शाहीन बनारसी। अब चुनावी समर की सबको राम-राम दुआ सलाम।
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