शिव सिंह दहिया ‘सुनील’
मणिपुर में पिछले डेढ़ महीने से अधिक समय से चली आ रही हिंसा का दौर जारी है। राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबन्ध लगाने के बावजूद भी हिंसा की ज्वाला थमने का नाम ही नही ले रही है। बिशुपुर के क्वाकटा कस्बे और चुराचांदपुर के कंगवई गांव में स्वचालित हथियारों से 400-500 राउंड गोलियां चलाई गईं। इंफाल में सेना, असम राइफल्स और मणिपुर रैपिड एक्शन फोर्स ने दंगाइयों को इकट्ठा होने से रोकने के लिए आधी रात तक संयुक्त मार्च किया। पश्चिम इंफाल के एक पुलिस थाने से भीड़ ने हथियार लूटने की भी कोशिश की जिसे सुरक्षाबलों ने नाकाम कर दिया।
बृहस्पतिवार को आधी रात के बाद भड़की हिंसा में सिंजेमाई में एक और भीड़ ने भाजपा कार्यालय को घेर लिया, लेकिन कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकी क्योंकि सेना ने भीड़ को काबू करने की पूरी तैयारी कर रखी थी। इसी तरह इंफाल में पोरमपेट के पास भाजपा (महिला विंग) की अध्यक्ष शारदा देवी के घर में भीड़ ने तोड़फोड़ करने की कोशिश की गई। यहां भी सुरक्षाबलों ने उपद्रवियों को खदेड़ कर भगा दिया। दो दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री आरके रंजन सिंह के घर पर भी भीड़ ने हमला किया गया था और गुरुवार रात को इसे जलाने का प्रयास किया गया था। जिस तरह से भीड़ चुन-चुन कर भाजपा के नेताओं पर हमला कर रही है इसे देख कर ऐसा लगता है की ये लोग सरकार से काफी नाराज हैं।
पिछले महीने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 4 दिन के मणिपुर दौरे पर गए थे। इस दौरान उन्होंने कुछ घोषणा की जो कुछ काम नहीं आई। एक तरफ जहां दोनों ही समुदाय के लोगों ने शांति समुदाय की पहल से अपना हाथ खींच लिया है। एक समुदाय के लोग को तो पैनल में शामिल होने वाले सीएम बिरेन सिंह से भी दिक्कत है। इस समुदाय के प्रतिनिधि का साफ कहना है की सीएम ने वक्त रहते कोई कदम नहीं उठाया जिस वजह से हालात ऐसे हो गए।
वहीं, पुलिस स्टेशन से लूटे गए 4000 हथियारों में से अभी तक महज 1000 हथियार ही बरामद हो सका है। जबकि गृहमंत्री ने तलाशी अभियान के बाद हथियार मिलने पर सख्त कदम उठाने की घोषणा की थी। जो यह बताने के लिए काफी है की मामला कितना गंभीर होता जा रहा है। तैनात सुरक्षा अधिकारों का साफ़ मानना है कि इस स्थिति में बल का प्रयोग करना सबकुछ बर्बाद कर सकता है। इसलिए लोगों को शांति स्थापित करने के लिए राजनेताओं और नागरिक समूहों से पहल करने का आग्रह किया जा रहा है। यही नहीं इंफाल में खुरई विधानसभा क्षेत्र से विधायक लीसांगथेम ने अपने घर के बाहर एक ड्राप बाक्स लगा रखा है जिस पर बंदूकों के चित्र बने हैं और लिखा है कि आपके पास जो भी हथियार है यहां डाल दें, संकोच नहीं करें,आपके साथ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। फिर भी लोग बात नहीं मान रहे।
बता दें कि, अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद पहली बार 3 मई को झड़पें हुई थीं। मेइती समुदाय मणिपुर की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। जनजातीय नागा और कुकी जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और पहाड़ी जिलों में निवास करते हैं। राज्य में शांति बहाल करने के लिए करीब 10,000 सेना और असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया है।
लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद भी कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा है, जिस कारण आम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अब तक इस हिंसा में 105 लोगों की जान जा चुकी है और 350 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। केंद्र की मोदी और राज्य की बिरेन सरकार अब तक इस मसले पर पूरी तरह विफल दिखी है। मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन के एक बयान जिसमे उन्होंने मणिपुर में अफीम की खेती के सम्बन्ध में वक्तव्य दिया था ने हिंसा को और भी भड़का दिया, फिलहाल ताज़ा बयान में सीएम ने हिंसा हेतु म्यामार के घुसपैठियों को ज़िम्मेदार माना है। सब कुछ मिलाकर देश के सबसे खुबसूरत राज्यों में से एक मणिपुर फिलहाल जल रहा है। केंद्र अथवा राज्य सरकार के तरफ से कोई उचित कदम उठाये जाने के लिए लोग आज भी इंतज़ार कर रहे है।
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