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एक नफरत की स्याही से कलम डूबा कर लिखी गई खबर, एक सियासी मुफाद और एक गैरजिम्मेदाराना बयान जिसने बिगाड़ी थी पुरोला की फ़िज़ा, अमन हुआ कायम, पढ़े क्या था पुरोला का पूरा सच

तारिक़ आज़मी

डेस्क: एक खबर जो नफरत की स्याही में कलम डूबा कर लिखी गई हो वह किस हद दर्जे तक नफरतो को तकसीम कर सकती है इसका जीता जागता उदाहरण उत्तरकाशी के पुरौला में देखने को मिल चूका है। एक स्थानीय पत्रकार एक खबर और बात का बतंगड़ ऐसा बना कि इसकी गूंज पुरे देश में सुनाई देने लगी। वह तो भला हो कि न्यूज़लॉन्ड्री ने मशक्कत के बाद इस पुरे मामले से आखिर पड़ा हुआ झूठ का पर्दा ऐसा हटाया कि सच आईने की तरह साफ़ हो गया और सबको दिखा कि सिर्फ सियासी रोटी सकने के लिए ही एक अपराध को लव जिहाद जैसा एंगल दे दिया गया।

यह सब कुछ इसी बात से साबित होता है कि मामले में दो आरोपी है। एक उबैद खान और दूसरा जीतेन्द्र सैनी। जिसको पाक्सो और अपहरण की धाराओं में गिरफ्तार किया गया है। गिरफ़्तारी की जो बात सामने आई वह यह है कि कुछ हिंदूवादी संगठनो द्वारा ही उनको पकड़ा गया था और पुलिस के हवाले कर दिया गया था। अब बात रही भोपू मीडिया की जिसने उन खबरों को तरजीह देकर लिखा जिसमे इस घटना को लव जिहाद का एंगल देकर हिन्दूवादी संगठनो में उबाल की बात लिखा था।

बात अगर हिन्दुवादी संगठनो की करे और उनके उबाल की तो चलो भाई उबैद खान तो मुस्लिम था। मगर जीतेन्द्र सैनी भी क्या मुस्लिम था ? उसको भी तो इस मामले में गिरफ्तार किया गया। फिर आखिर इसको लव जिहाद का एंगल कैसे दे दिया गया? अगर उबाल था तो जीतेन्द्र सैनी के लिए भी होना चाहिए था सिर्फ उबैद खान के समुदाय के लिए क्यों उबाल आया? दूसरी लापरवाही पुलिस की थी जिसमे चमोली पुलिस ने अपने बयान में साफ़ साफ़ कहा कि ‘एक समुदाय विशेष के दो युवको को गिरफ्तार किया गया है।’ वैसे हमारी उत्तर प्रदेश पुलिस अपराध करने वाले अभियुक्तों का समुदाय नही बताती है। उत्तराखंड की पुलिस बताती है तो एक अलग बात है।

आपको पूरी यह हकीकत अगर पूरी जानना है है तो आप न्यूज़लॉन्ड्री की खबर को बहुत ही ध्यान से पढ़े। इसके अलावा हिंदुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस की भी खबर पढ़ सकते है। मगर न्यूज़लॉन्ड्री ने जितने विस्तार से इसको लिखा है वह इस बात को साबित कर देगा कि एक स्थानीय पत्रकार द्वारा नफरत की स्याही में कलम डूबा कर लिखी गई खबर, कुछ सियासी मुफाद और पुलिस का एक गैरजिम्मेदाराना बयान पुरोला में नफरतो को पनपने का मौका दे गया।

न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी खबर में किशोरी के परिजनों से बातचीत का विवरण लिखते हुवे लिखा है कि ‘परिवारवालों ने बताया कि हिंदुत्ववादी संगठनों ने घटना को ‘लव जिहाद’ और ‘सांप्रदायिक रंग’ दिया। हालांकि, पीड़िता का परिवार ये जरूर कहता है कि नाबालिग लड़की को अगवा करने की कोशिश की गई, जिसके चलते ये मामला पुलिस तक पहुंचा। वे कहते हैं कि इसे लव जिहाद का रंग देने के लिए हिंदुत्ववादी संगठनों ने उनसे कई बार संपर्क किया था।

न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी खबर में विस्तार से इस बात का भी उल्लेख किया है कि ‘परिवार ने यह भी बताया कि जब वह पहली बार शिकायत दर्ज कराने पुलिस चौकी पहुंचे तो वहां पर एक स्थानीय पत्रकार अनिल आसवाल ने घटना को ‘लव जिहाद’ का एंगल देने के लिए खुद ही एक फर्जी शिकायत पत्र तैयार किया था। जिसमें केवल उबैद खान को आरोपी बताया गया। जबकि इस घटना में दो लोग शामिल थे। एक हिन्दू जितेंद्र सैनी और दूसरा मुसलमान उबैद खान। मगर अनिल द्वारा लिखे गए प्रार्थनापत्र में जीतेन्द्र सैनी का नाम नही था। जिसके ऊपर हस्ताक्षर से शिकायतकर्ता ने इंकार कर दिया।

न्यूज़लॉन्ड्री के इस खुलासे के बाद कि एक पहले से मौजूद स्थानीय पत्रकार अनिल आसवाल ने प्रार्थनापत्र लिखा था एक बड़े सवाल को जन्म देता है कि आखिर अनिल आसवाल का क्या रोल इसमें था। जिसके ऊपर ध्यान देने के बाद मामला ये भी सामने आया कि अनिल पहले बजरंग दल और विहिप से जुडा हुआ था। न्यूज़लॉन्ड्री ने अनिल से वह शिकायती पत्र भी अपने खबर में लगाया है जो अनिल ने लिखा था। अनिल स्थानीय स्तर पर बीबीसी खबर डॉट इन नाम से अपना पोर्टल चलाता है। हमने जब इस पोर्टल पर जाकर देखा तो बीबीसी खबर डॉट इन ने सबसे पहले खबर में सब टायटल ही ‘लव जिहाद का मामला, हिन्दू संगठनो में उबाल’ लिखा हुआ था। खबर को पढ़ कर ही यह बात साफ़ हो जाती है कि यह खबर पूरी तरफ नफरती स्याही से लिखी गई है। इसी के बाद स्थानीय हिंदी अखबारों ने भी ‘हिन्दू संगठनो में उबाल’ और ‘लव जिहाद’ जैसे लफ्जों को उछालना शुरू कर दिया। जो कम से कम इस बात को तो बताता है कि स्थानीय सूत्रों की खबरों पर पकड़ कितनी मजबूत रहती होगी।

न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी खबर में पुरोला थाने के एसएचओ खजान सिंह चौहान का भी बयान लिखा है। जिस बयान में इस्पेक्टर खजान सिंह चौहान ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि ‘घटना लव जिहाद से संबंधित नहीं थी और शिकायत में ‘लव जिहाद’ लिखा गया था और यह बताया गया कि उबैद खान पीड़िता से अंकित बन कर बात करता था। जबकि यह बात झूठ है। हमने दोनों के कॉल रिकॉर्ड चेक किए हैं। पीड़िता की उवैद खान या जितेंद्र सैनी में से किसी से बात नहीं होती थी।’ मगर खबर में तो एंगल ‘लव जिहाद’ का जुड़ गया। फिर क्या था स्थानीय खबर पर सभी उबल पड़े। बिना तफ्तीश और तसल्लीबक्श बातो के ही पुरोला व्यापार मंडल के अध्यक्ष बृजमोहन चौहान ने पुरोला के व्यापारियों के व्हाट्सएप ग्रुप से मुस्लिम व्यापारियों को 27 मई के दिन हटा दिया।

बहरहाल, सच सामने आ चूका है। मुस्लिम कारोबारियों ने अपने दुकानों को खोलना शुरू कर दिया है। उठा उबाल खामोश हो चूका है। पुरोला में प्राकृतिक सुन्दरता के साथ अमन भी कायम हो गया है। मगर जो ज़ख्म दिल पर लगे है वह भरने में वक्त लगेगा। आवाम कल को भूल कर आज में आ चुकी है। ख़ुशी की बात तो ये है कि अमन कायम हो चूका है। मगर एक थोड़ी लापरवाही, एक झूठ के बुनियाद पर लिखी नफरती खबर और सियासी मुफाद ने पुरोला की सर्द वादियों में जो गर्मी दिया वह बेशक हिकारत के लायक है। अगर आप फिर भी ऐसी हरकत पर हिकारत नही कर पा रहे है तो आप एक बार न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट पढ़ ले और उस खबर में लगी वह तहरीर देख ले जो स्थानीय पत्रकार महोदय ने लिखा था। बेशक उनकी लिखावट बड़ी खुबसूरत है। मगर क्या उतनी खूबसूरती का अहसास उनकी सोच को दिया जा सकता है?

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