तारिक़ आज़मी
वाराणसी: काशी मोक्ष की नगरी है। यहाँ मोक्ष हेतु कई कुंड उपस्थित है जिनका पुराणों में वर्णन है। स्कन्द पुराण की बात करे तो इसमें पिशाचमोचन की उत्पत्ति गंगा के उत्पत्ति से पहले की बताया गया है। वही इसको गया अक अव्यय भी शास्त्रों में बताया गया है। पिशाचमोचन के साथ ही मोक्ष हेतु पितृ कुंड और मातृ कुंड भी मोक्षदायिनी कुंड के रूप में है। मगर रखरखाव और साफ़ सफाई की अगर बात करे तो पितृ कुंड अक्सर चर्चाओं का केंद्र रहा है।
इसकी जानकारी मिलने पर बीती देर रात हमने कुंड के चारो तरफ से वीडियो बनाया जिसमें आप देख सकते है कि कुंड के किनारों पर किस तरह से मछलिया मरी हुई पानी में पड़ी हुई है। पानी बुरी तरीके से बदबू कर रहा है। हाल ऐसा है कि पानी की बदबू के कारण आसपास खड़े भी रहना मुश्किल है। सुबह होने पर जिम्मेदारो की आँख शायद इस जानिब खुली और उनकी नजर-ए-इनायत इस कुंड पर हुई तथा तत्काल ‘बहादुर’ नाम के ठेकेदार को मौके पर भेजा गया।
अब जब नाम बहादुर है तो बहादुर बहादुरी दिखाते हुए दो दिहाड़ी मजदूरों को कुंड में भेजे कि सफाई करो। मजदूरों की माने तो उनको पानी से सुरक्षा उपकरण भी नही प्रदान किये गये। मजदूरों ने बताया कि लगभग 7 कुंटल के करीब मरी मछली इस कुंड से आज उन्होंने निकाला जिसको नगर निगम की गाडी लेकर चली गई। वही दूसरी तरफ स्थानीय एक ट्राली चालाक जो इस कुंड की सफाई में लगा था ने बताया कि दो दिन पहले से आसपास के लोग यहाँ से मछलियों को लेकर भी काफी गए है। छोटी और बड़ी मिलाकर हज़ारो मछलियाँ बे-मौत तड़प कर मर गई है।
हमने इस सम्बन्ध में अधिशाषी अभियंता नगर निगम अरविन्द श्रीवास्तव से बात किया तो उन्होंने बताया कि इसमें पानी भरने और साफ़ सफाई की ज़िम्मेदारी जलकल की है। वही मछलियों के रख रखाव का ज़िम्मा स्वास्थ्य विभाग का है। मामला हमारी जानकारी में आया है। हम आज ही इस सम्बन्ध में सम्बंधित से पत्राचार करते है। वही जलकल के जीएम अमूमन की तरह फोन नही उठाये। आप अब खुद समझ सकते है कि ज़िम्मेदार कितने ज़िम्मेदार है।
वैसे साहब ध्यान दिलाने वाली बात ये है कि किसी भी कुंड में पानी की मात्रा कम हो जाती है और गन्दगी काफी समय तक रहती है तो पानी में मौजूद आक्सीजन की कमी हो जाती है। जो मछलियों के मौत की ज़िम्मेदार बन जाती है। ऐसे में पानी एक तरफ से निकास वाली जगह से निकासी और निकासी से अधिक रफ़्तार से भराव किया जाता है। पानी में समय समय पर फिटकिरी और अन्य दवाओं के छिडकाव से भी पानी में सफाई कायम रहती है। अब मछली तो ठहरी बेजुबान, वो तो फोन करके कह भी नही सकती है कि हे प्रिय हमारे पानी के आक्सीजन की मात्रा कम हो रही है और हमको साँस लेने में दिक्कत हो रही है।
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