तारिक़ आज़मी
वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद का एएसआई सर्वे प्रकरण वर्त्तमान में हाई कोर्ट की चौखट पर है। हाई कोर्ट इस मामले में सुनवाई पूरी कर चूका है और 3 अगस्त को इस सम्बन्ध में अपना फैसला सुना सकता है। इसके पूर्व ही आज अंजुमन मसाजिद इंतेजामिया कमेटी जो ज्ञानवापी मस्जिद सहित शहर की 22 एतिहासिक मस्जिदों की देखभाल करता है ने एक गम्भीर प्रश्न एएसआई पर ही उठा दिया है। कानून के मद्देनज़र उठाये गए इस प्रश्न के साथ मस्जिद कमेटी ने एएसआई की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किये है।
क्या उठाया मस्जिद कमेटी ने गम्भीर प्रश्न ?
ज्ञानवापी मस्जिद सहित 22 एतिहासिक मस्जिदों का इंतज़ाम देखने वाली संस्था अंजुमन मसाजिद इन्तेज़मियां कमेटी ने एएसआई सर्वे की वैधानिकता पर और उसके निष्पक्षता पर बड़ा सवाल खडा किया है। संस्था के संयुक्त सचिव एस0 एम0 यासीन ने इस सम्बन्ध में हमसे बात करते हुवे बताया कि ‘21 जुलाई शुक्रवार को देर शाम लगभग 4:30 बजे अदालत का एएसआई सर्वे का आदेश आता है। आदेश की प्रति किसी को नही मिल पाती है मगर इसकी प्रतियां लोगो को सोशल मीडिया के माध्यम से देश के कोने कोने में पहुच जाती है। उसके दुसरे दिन शनिवार को माह का चौथा शनिवार होने के कारण अदालत की छुट्टी थी। जिसके कारण प्रति किसी को मिलना संभव नही था। 23 जुलाई रविवार के दिन जब सभी दफ्तर बंद होते है तो उस दिन एएसआई वाराणसी कमिश्नर को पत्र जारी कर 24 जुलाई सोमवार से सर्वे करने हेतु सुरक्षा की मांग करती है। आखिर किस त्वरित गति से एएसआई को उक्त आदेश प्राप्त हो गया?’
एम0एम0 यासीन ने बात करते हुवे कहा कि ‘नियमो के तहत सर्वे का शुल्क और पुलिस सुरक्षा यदि आवश्यक होती है तो उसका शुल्क वादी मुकदमा को जमा करना पड़ता है। आज सोमवार को हमने अदालत से इस सम्बन्ध में प्रश्नोतरी प्राप्त किया है जिसमे इस बात को अदालत ने स्पष्ट रूप से बताया है कि उक्त सर्वे हेतु किसी प्रकार का कोई शुल्क जमा नही किया गया है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एएसआई ऐसे तूफानी रफ़्तार से अपनी टीम आगरा, पटना और दिल्ली से इकठ्ठा करके मिली जानकारी के अनुसार आदेश के एक दिन बाद ही वाराणसी आ जाती है। क्या एएसआई ने अनुमानित शुल्क वादी मुकदमा को बताया और सर्वे के सम्बन्ध में सभी पक्षों को जानकारी प्रदान किया? ऐसी स्थिति में आखिर हम कैसे उनकी निष्पक्षता पर विश्वास कर ले?’’
मस्जिद कमेटी द्वारा उठाया गया गम्भीर सवाल और कानूनी सलाह का देखे वीडियो
एस0एम0 यासीन ने हमको अदालत से मांगी गई प्रश्नोतरी की प्रति प्रदान किया है। जिसमे स्पष्ट होता है कि किसी प्रकार का उक्त सर्वे हेतु शुल्क अदालत में जमा नही किया गया है। साथ ही मस्जिद कमेटी का दावा है कि उनको सर्वे की सुचना भी एएसआई द्वारा प्रदान नही किया गया। एसएम यासीन ने बताया कि ‘प्रशासन ने उनको 23 जुलाई के रात को एक बैठक में बताया कि कल सुबह से सर्वे होना है। एएसआई की टीम वाराणसी आ चुकी है। आप लोग सहयोग करे। जिसके बाद हमने लिखित रूप से इस बात को साफ़ किया कि हम शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए सर्वे का विरोध तो नही करेगे, मगर सर्वे का बायकाट करेगे। जो हमने किया भी।’ उन्होंने कहा कि एएसआई मामला सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात जानते हुवे भी सर्वे के लिए सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का इंतज़ार नही कर रहा था। बेहद जल्दबाजी में एएसआई सर्वे करना चाहता था। तो फिर क्या ये निष्पक्ष एएसआई का कोई उदाहरण हुआ।
क्या कहते है कानून के जानकार?
हमने इस सम्बन्ध कई अधिवक्ताओं से बात किया और इसके तहत कानूनी नजरिया जानना चाहा तो सभी ने लगभग एक ही बात बताया कि कानून के मद्देनज़र सभी एक समांन है। ऐसे सर्वे के लिए वादी मुकदमा को शुल्क जमा करना होता है। जिसकी सुचना अदालत को प्रदान करना होता है। यदि अदालत को आज तक यानी 31 जुलाई तक सर्वे का शुल्क जमा होने की सुचना नही मिली है तो ऐसे कैसे सर्वे हो जायेगा।
वाराणसी कोर्ट में सिविल मामलो के एक्सपर्ट माने जाने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कृष्ण दत्त त्रिपाठी ने कहा कि ‘कानूनन किसी सर्वे के लिए होने वाले खर्च को वादी मुकदमा वहन करता है। जिसमे सर्वे कर्मियों और अधिकारियो के सर्वे में लगने वाले दिनों का वेतन और यदि आवश्यकता पुलिस बल की होती है तो पुलिस का खर्च भी वादी को ही वहन करना होता है। जैसा बताया जा रहा है कि कि अदालत में शुल्क नही जमा है तो यह कानून की दृष्टि से न्यायोचित नही है।’
वाराणसी कोर्ट के एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता शिशिर सिंह ने कहा कि ‘किसी सर्वे हेतु सभी पक्षों को सूचित किया जाना नितांत आवश्यक होता है। 21 जुलाई को देर शाम आदेश आया, 22 जुलाई को अदालत में छुट्टी थी और 23 जुलाई को रविवार की छुट्टी थी। तो प्रश्न है कि क्या सभी पक्षों को इस सर्वे हेतु सूचित किया गया था?’
हाई कोर्ट इलाहाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता ए0टी0 पाण्डेय ने हमसे बात करते हुवे बताया कि ‘कानून के तहत शुल्क अनुमानित सर्वे करने वाली समिति वादी मुकदमा को बताती है, जिसका भुगतान वादी मुकदमा को करना होता है। जिसके बाद सर्वे करने के लिए गठित समिति सभी पक्षकारो को लिखित सुचना प्रदान करती है। इस मामले में जैसा जानकारी हासिल हो रही है, यह कुछ भी नही हुआ, जो पूरी तरह से कानून के खिलाफ है। सिविल प्रोसीजर ही फालो नही हुआ है।’
हाई कोर्ट इलाहाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता और हमारे कानूनी सलाहकार एड0 नसीम अहमद सिद्दीकी ने हमसे बात करते हुवे बताया कि ‘अदालत द्वारा इस मामले में धारा 75 के तहत एएसआई सर्वे का आदेश दिया है। वही सिविल प्रोसीजर के आदेश 20 रूल 11 के तहत इस सर्वे हेतु लगी टीम के ऊपर होने वाला सरकारी खर्च और यदि पुलिस बल की मांग होती है तो पुलिस बल का शुल्क वादी/वादिनी मुकदमा को वहन करना होता है और नियमो के तहत पहले शुल्क का भुगतान होता है उसके बाद सर्वे की कार्यवाही शुरू होती है। इस मामले में जैसा अदालत के प्रश्नोतरी से साफ़ होता है कि ऐसा कोई भी प्रिसिजर फालो नही किया गया है। अगर ऐसा है तो फिर एएसआई सर्वे कैसे हो सकता है?’
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