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ज्ञानवापी मस्जिद ASI सर्वे प्रकरण: DM साहब.., पुलिस कमिश्नर साहब.., TRP के चक्कर में ये मीडिया झूठे  दावो के साथ जो सनसनी फैला रहा है, इसके परिणामो का ज़िम्मेदार कौन होगा ? क्या लगेगी इस पर लगाम?

तारिक़ आज़मी

टीआरपी की दौड़ और सनसनी फैलाने की चाहत रखने वाला आज का भोपू यानी मीडिया आज कल बनारस की गलियों में टहलता हुआ दिखाई दे रहा है। ये यहाँ से बनारस की प्राचीनता, इसकी एकजुटता, यहाँ की गंगा जमुनी तहजीब जिसको तानी बाने का रिश्ता नाम दिया गया, या फिर बनारसी साडी अथवा लंगड़ा आम के मशहूर होने को दिखाने नहीं आये है। ये दुनिया में इस बात का भोपू बजाने के लिए आये है कि ज्ञानवापी मस्जिद का एएसआई सर्वे चल रहा है। नफरती तकरीरो से भरे इनके कार्यक्रम आज दोपहर से ब्रेकिंग के माध्यम से सनसनी फैला रहे है।

दरअसल ज्ञानवापी मस्जिद में आज सर्वे का दूसरा दिन था। सर्वे करने वाली एएसआई टीम के साथ वादिनी मुकदमा के अधिवक्ता और पैरोकार सहित मस्जिद कमेटी के लोग शामिल थे। सर्वे दोपहर 12:30 तक चला और सर्वे टीम वापस अपने गंतव्य तक कल रविवार को आगे का सर्वे करने के लिए चली गई। जैसा कि हमको पुख्ता जानकारी मिल रही है सर्वे टीम के सहयोगियों से सभी कागज़ात मौके पर ही अपने कब्ज़े में ले ले रही है। ताकि गोपनीयता बनी रहे।

मगर मणिपुर और हरियाणा पर ख़ामोशी बरतने वाले, एक प्रोपेगंडा के तहत हर मामले में हिन्दू-मुस्लिम एंगल पर घंटो बहस करके नफरतो को बढाने वाले मीडिया ने शांति और सौहार्द के साथ चल रहे इस सर्वे में अपनी टंगड़ी अड़ा कर घंटो बहस हिन्दू मुस्लिम एंगल पर करके माहोल को अजीब बनाने का प्रयास कर रखा है। इसकी शुरुआत सबसे पहले कल शुक्रवार को एबीपी ने उस दावे के साथ किया था जब उसका प्रयागराज से रिपोर्टर मोइन आता है और यहाँ खड़े होकर मस्जिद में नमाज़ पढने और मुफ़्ती बातिन नोमानी पर भड़काने वाली तक़रीर करने का आरोप लगा देता है। जबकि संवैधानिक मूल्यों के तहत अभिव्यक्ति की आज़ादी के तहत दिली तक़रीर लाउडस्पीकर पर प्रशासन ने भी सुनी और वाराणसी के प्रशासन को यह भड़काऊ न लगी। मगर ABP को यह भड़काऊ लग गई क्योकि टीआरपी बटोरने का इससे बढ़िया एंगल मिल ही नही सकता है।

आज भी शुरुआत वही ABP के द्वारा हुई। दोपहर 12:23 पर इसका भोपू चालू होता है और इसके सूत्र बताने लगते है कि तहखाने (इसको व्यास जी का कमरा भी कहा जाता है) के अन्दर 4 फिट की मूर्ति और कलश तथा 2 फिट का त्रिशूल मिल गया। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने कह रखा है कि ‘पत्रकार अपने सूत्र बताने के लिए बाध्य नही है’ तो इसका फायदा उठाने में इसको हर्ज नही लगा। जबकि ज़रा सी लापरवाही एक बड़े विवाद का कारण बन सकती है, ये इस मीडिया हाउस को शायद अहसास नही है।

जबकि दैनिक भास्कर ने साफ़ साफ़ इस बात को लिखा कि वादिनी पक्ष (इसको भास्कर हिन्दू पक्ष कह कर अपनी खबरों में सम्बोधित कर रहा है) के वकील के हवाले से अपनी खबर में लिखा है कि अधिवक्ता का दावा है कि तहखाने में पिलरो के अवशेष मिले है। देखा देखि पुण्य और देखा देखि पाप के तर्ज पर लाइव हिंदुस्तान ने अपनी खबर को दोपहर 2:03 पर अपडेट किया और वादिनी पक्ष के सूत्रों का हवाला देते हुवे लिखा कि ‘ज्ञानवापी सर्वे के दूसरे दिन मुस्लिम पक्ष ने तहखाने का ताला खोल दिया और एएसआई टीम ने सफाई के बाद सर्वे शुरू किया। इस दौरान मुस्लिम और हिंदू पक्ष एएसआई की टीम के साथ मौजूद रहे। वहीं हिंदू पक्ष से जुड़े सूत्रों ने दावा किया है कि तहखाने में एक चार फीट की मूर्ति मिली है, जिस पर कुछ कला कृतियां है। जो कमल के फूल और हिंदू प्रतीक चिन्ह प्रतीत हो रहे हैं। साथ ही कहा है कि मूर्ति के अलावा एक दो फीट का त्रिशूल भी मिला है। इसके अलावा कलश मिले और दीवार पर कमल के फूल बने भी दिखे।‘

अब सवाल ये है कि ये सूत्र है कौन ? क्या मीडिया को इन सूत्रों पर लगाम लगाने की कोशिश करना नही चाहिए जो सुप्रीम कोर्ट ने निर्देशों की अवहेलना करने पर तुले हुवे है। इन सबके बीच IBC24 ने अलग ही दावा कर डाला। उसने अपनी खबर में लिखा है कि ‘लंच के बाद दोबारा 2:30 बजे सर्वे शुरू हुआ। इसमें दूसरे तहखानों की जांच के साथ ही सभागार के अंदर बारीकियों से सर्वे हुआ। अधिवक्‍ता अनुपम द्विवेदी ने कहा कि एएसआई ने ज्ञानवापी के तहखानों की जांच शुरू की है। वहां हिन्दू मंदिर के निशान मिले हैं।‘ जबकि अनुपम द्विदेदी के बयान का कोई वीडियो साक्ष्य हमको उपलब्ध नही हुआ है।

एक वीडियो में साफ़ साफ़ अधिवक्ता ने कहा है कि सर्वे में मैं खुद गया था अन्दर, मूर्ति मिलने के सवाल पर वह खुद अचंभित हो जाते है और कहते है कि ‘सर्वे के दरमियान मैं वहाँ खुद गया था अन्दर, मूर्ति तो वहाँ नही मिली हाँ कुछ खम्भे मिले है, जो कि वह भग्ना अवशेष है।’ अब बात ये है कि एक पिलर जिसको वादी पक्ष अब ‘भग्नावशेष’ होने का दावा करेगा और प्रतिवादी उसको पिलर का टुकड़ा होने का दावा करेगा तो ये मामला अदालत का है। फिर कैसे मंदिर के अवशेष और मूर्ति वाली बाते हो गई? क्या कुछ भी सूत्र का हवाला देकर झूठ फैला दिया जायेगा? फैक्ट चेक का दावा करने वाला ये डिजिटल मीडिया खुद की खबर का फैक्ट चेक कितना करेगा ये तो नही पता।

अब सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ टीआरपी की भूख लिए मुद्दों से भटकाते मीडिया को इस प्रकार से सडको पर ट्रायल करके खुद ही अदालत और खुद को ही गवाह बन कर घुमने देने से शहर की अमन-ओ-फिजा को खेलने का मौका मिलता रहेगा। रात होते होते प्राइम टाइम पर ये परदेसी बाबुओ की मंडली लग गई और एक से बढ़कर एक बयानबाजी होना शुरू हो गई। उनके इस नफरती खेल का शिकार कोई अमन पसंद शहर हो जायेगा इसका उनको अंदाजा ही नही है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में जिस तरीके से बाते हुवे और मुल्क की सबसे बड़ी अदालत ने जो दिशा निर्देश जारी किया क्या उसका अवलोकन इन नफरती भोपुओ ने किया।

क्या है हकीकत

वादिनी पक्ष के तरफ से सर्वे में गए एक अधिवक्ता का वीडियो बयान भी है जिसमे उन्होंने कहा कि ‘देखिये हमने मूर्ति वगैरह तो नही देखा है अपनी आँखों से, हाँ पिलर के कुछ टुकड़े मिले है।’ इसको इतना बढ़ा चढ़ा कर नफरती बीज बोने वाले दिखा रहे है। उनको इसकी आज़ादी कैसे मिली हुई है। कैसे सूत्रों के नाम पर कुछ भी कह दो इसकी आज़ादी मिली हुई है। कैसे इनको नियंत्रित किया जाये ये प्रशासन को सोचना चाहिए।

क्या बोली मस्जिद कमेटी

इस सम्बन्ध में मस्जिद कमेटी के एस0एम0 यसीन ने कहा कि ‘हम ऐसे बयानबाजी से बुहत आहत है। हमारी भावनाओं से बार बार खिलवाड़ किया जा रहा है। हमने इस सम्बन्ध में जिलाधिकारी को अपनी बाते बता दिया है। हम कानूनी कार्यवाही के लिए भी अपने अधिवक्ताओं से विचार विमर्श कर रहे है। कल के सर्वे का हम इंतज़ार कर रहे है, अगर ऐसा ही माहोल रहा तो हम अपने शहर को साम्प्रदायिकता के आग में नही झोकने देंगे और सख्त कदम उठायेगे। हमारे अधिवक्ताओं की टीम इसके ऊपर लीगल कार्यवाही की तैयारी कर रही है।’

बैठक में व्यस्तता के कारण नही हो सकी जिले के ज़िम्मेदार अधिकारियो से बात

हमने इस सम्बन्ध में जिलाधिकारी एस0 राजलिंगम और वाराणसी पुलिस कमिश्नर अशोक मुथा जैन से बात करने का प्रयास किया। मगर दोनों ही शीर्ष अधिकारी किसी आवश्यक बैठक में होने के कारण उनसे बात नही हो पाई। एएसआई टीम से भी संपर्क स्थापित नही हो पाया। जैसे ही जिम्मेदारो का बयान हमारे पास आता है हम उसको खबर के साथ अपडेट कर देंगे।

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