तारिक़ खान
डेस्क: मणिपुर में पिछले तीन महीने से चल रही जातीय हिंसा की शुरुआत 3 मई से हुई है। इस हिंसा में कुकी जनजाति और मैतेई समुदाय के बीच जातीय हिंसा ने प्रदेश को लगभग दो हिस्सों में बांट कर रख दिया है। जानकरी के अनुसार दोनों समुदाय के बीच विभाजन इस कदर है कि पहाड़ों पर कुकी और इंफाल घाटी में मैतेई एक दूसरे इलाके में आ जा नहीं सकते। वही सदन में भी सरकार ने बफर ज़ोन का ज़िक्र किया है।
इस बीच अब नगा जनजाति के लोग भी सड़क पर उतर गए हैं। बताए चले कि बहु-जनजातीय आबादी वाले इस राज्य के तामेंगलोंग, चंदेल, उखरुल और सेनापति ज़िले में नगा जनजाति का दबदबा है। नगा लोगों की थोड़ी आबादी राजधानी इंफाल से लेकर बाकी के पहाड़ी ज़िलों में भी बसी है। बीते बुधवार को नगा जनजाति के हज़ारों लोगों ने अपनी दो प्रमुख मांगों को लेकर प्रदर्शन आयोजित किया। मणिपुर के नगाओं का साफ कहना है कि भारत सरकार को किसी भी जनजाति के लिए अलग से कोई व्यवस्था करते वक्त उनके हितों और ज़मीन का ध्यान रखना होगा।
मणिपुर में बसे नगा जनजातियों की शीर्ष संस्था यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) के बैनर तले निकाली गई रैलियों में दो प्रमुख मांगों को उठाया गया। यूएनसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन भेजा है जिसमें 3 अगस्त 2015 को भारत सरकार और अलगाववादी संगठन एनएससीएन-आईएम (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड) के इसाक-मुइवा गुट के साथ हुए फ्रेमवर्क समझौते का मुद्दा उठाया गया है।
ज्ञापन में कहा गया है कि फ्रेमवर्क समझौते के बाद चली लंबी शांति वार्ता का शीघ्र निष्कर्ष निकाला जाए। और यह सुनिश्चित किया जाए कि ‘किसी अन्य समुदाय” की मांगों को संबोधित करने के प्रयास में कोई नगा हित या भूमि प्रभावित नहीं होगी। यूएनसी के अध्यक्ष एनजी। लोरहो ने एक बयान में कहा कि, ‘मणिपुर में हमारी 20 नगा जनजातियां हैं। लिहाजा किसी अन्य समुदाय की मांगों को संबोधित करने का प्रयास करते समय नगा भूमि के विघटन या किसी भी ऐसे कार्य को नगा लोग स्वीकार नहीं करेंगे जो नगा जनजाति के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।’
बताते चले मणिपुर में बीजेपी का शासन है लेकिन हिंसा के कारण कुकी आबादी वाले पहाड़ी ज़िलों पर सरकार की पकड़ ढीली हो गई है। हिंसा भड़के 100 से भी ज़्यादा दिन हो चुके हैं लेकिन मुख्यमंत्री एन0 बीरेन सिंह अब तक कुकी इलाकों का दौरा नहीं कर पाए हैं। कुकी जनजाति द्वारा अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग ने नगा जनजाति को भी अपनी मांग रखने के लिए मौका दे दिया है। नगा लोगों को इस बात का डर सताने लगा है कि अगर केंद्र सरकार ने कुकी इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था के नाम पर किसी तरह का कोई कदम उठाया तो अंतिम चरण में चल रही नगा शांति वार्ता को नुकसान हो सकता है। लिहाज़ा ‘नगा बहुल क्षेत्रों” में बुधवार को रैलियां निकाली गईं जो एक तरह से भारत सरकार को संदेश देने की कोशिश बताई जा रही है।
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