तारिक़ आज़मी
डेस्क: वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद का एएसआई सर्वे के खर्च का मुद्दा आज हाई कोर्ट के चौखट पर पहुच गया है। ज्ञानवापी मस्जिद की व्यवस्थाओं को देखने वाली संस्था अंजुमन मसाजिद इंतेजामिया कमेटी की जानिब से आज हाई कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर अदालत से इल्तेजा किया है कि ‘जिला जज द्वारा एएसआई सर्वे का आदेश ही अवैध है और इस अर्जी को रिकार्ड में लिया जाए।’
बताते चले कि ज्ञानवापी मस्जिद का एएसआई सर्वे प्रकरण वर्त्तमान में हाई कोर्ट की चौखट पर है। हाई कोर्ट इस मामले में सुनवाई पूरी कर चूका है और 3 अगस्त को इस सम्बन्ध में अपना फैसला सुना सकता है। पिछले दिनों अंजुमन मसाजिद इंतेजामिया कमेटी जो ज्ञानवापी मस्जिद सहित शहर की 22 एतिहासिक मस्जिदों की देखभाल करता है ने एक गम्भीर प्रश्न एएसआई पर ही उठा दिया था। गौरतलब हो कि 21 जुलाई शुक्रवार को जिला जज अदालत ने एएसआई सर्वे की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे एएसआई के द्वारा करने का निर्देश जारी किया था। इस निर्देश के आने पर अंजुमन मसाजिद इन्तेज़मियां कमेटी ने एक हाई कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुवे ‘अवमानना’ की अर्जी सुप्रीम कोर्ट को प्रदान किया था। जिस पर सुनवाई करते हुवे सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई सर्वे पर रोक लगाते हुवे मामले की सुनवाई के लिए हाई कोर्ट इलाहाबाद को निर्देशित कर दिया था।
अंजुमन मसाजिद इंतेजामिया कमेटी के संयुक्त सचिव एस0 एम0 यासीन ने इस सम्बन्ध में बताया था कि ‘21 जुलाई शुक्रवार को देर शाम लगभग 4:30 बजे अदालत का एएसआई सर्वे का आदेश आता है। आदेश की प्रति किसी को नही मिल पाती है मगर इसकी प्रतियां लोगो को सोशल मीडिया के माध्यम से देश के कोने कोने में पहुच जाती है। उसके दुसरे दिन शनिवार को माह का चौथा शनिवार होने के कारण अदालत की छुट्टी थी। जिसके कारण प्रति किसी को मिलना संभव नही था। 23 जुलाई रविवार के दिन जब सभी दफ्तर बंद होते है तो उस दिन एएसआई वाराणसी कमिश्नर को पत्र जारी कर 24 जुलाई सोमवार से सर्वे करने हेतु सुरक्षा की मांग करती है। आखिर किस त्वरित गति से एएसआई को उक्त आदेश प्राप्त हो गया?’
एस0एम0 यासीन ने गम्भीर प्रश्न उठाते हुवे कहा था कि ‘नियमो के तहत सर्वे का शुल्क और पुलिस सुरक्षा यदि आवश्यक होती है तो उसका शुल्क वादी मुकदमा को जमा करना पड़ता है। बीते सोमवार को हमने अदालत से इस सम्बन्ध में प्रश्नोतरी प्राप्त किया गया जिसमे इस बात को अदालत ने स्पष्ट रूप से बताया है कि उक्त सर्वे हेतु किसी प्रकार का कोई शुल्क जमा नही किया गया है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एएसआई ऐसे तूफानी रफ़्तार से अपनी टीम आगरा, पटना और दिल्ली से इकठ्ठा करके मिली जानकारी के अनुसार आदेश के एक दिन बाद ही वाराणसी आ जाती है। क्या एएसआई ने अनुमानित शुल्क वादी मुकदमा को बताया और सर्वे के सम्बन्ध में सभी पक्षों को जानकारी प्रदान किया? ऐसी स्थिति में आखिर हम कैसे उनकी निष्पक्षता पर विश्वास कर ले?’’
इस सम्बन्ध में कानून के जानकारो और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से हमने जानकारी इकठ्ठा किया था। हाई कोर्ट इलाहाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता और हमारे कानूनी सलाहकार एड0 नसीम अहमद सिद्दीकी ने हमसे बात करते हुवे बताया कि ‘अदालत द्वारा इस मामले में धारा 75 के तहत एएसआई सर्वे का आदेश दिया है। वही सिविल प्रोसीजर के आदेश 20 रूल 11 के तहत इस सर्वे हेतु लगी टीम के ऊपर होने वाला सरकारी खर्च और यदि पुलिस बल की मांग होती है तो पुलिस बल का शुल्क वादी/वादिनी मुकदमा को वहन करना होता है और नियमो के तहत पहले शुल्क का भुगतान होता है उसके बाद सर्वे की कार्यवाही शुरू होती है। इस मामले में जैसा अदालत के प्रश्नोतरी से साफ़ होता है कि ऐसा कोई भी प्रिसिजर फालो नही किया गया है। अगर ऐसा है तो फिर एएसआई सर्वे कैसे हो सकता है?’
अदालत से क्या इल्तेजा किया मस्जिद कमेटी ने
अपनी अर्जी में मस्जिद कमेटी ने अदालत से इल्तेजा करते हुवे कहा है कि ‘विद्वान जिला न्यायाधीश द्वारा पारित आक्षेपित आदेश के मात्र अवलोकन से यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होता है कि आदेश पूरी तरह से मौन है और जिला न्यायाधीश ने एएसआई से सर्वेक्षण की अनुमानित लागत भी नहीं ली है। न ही वादी को सर्वे का खर्च जमा करने का कोई निर्देश दिया गया है। एएसआई केंद्रीय सरकार द्वारा संचालित संगठन है और उनका खर्च राज्य के खजाने द्वारा वहन किया जाना है, इन परिस्थितियों में एएसआई वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता, वह भी पांच व्यक्तिगत व्यक्तियों द्वारा दायर सिविल मुकदमे में और इसमें कोई सार्वजनिक हित शामिल नहीं है। इन परिस्थितियों में विद्वान जिला न्यायाधीश, वाराणसी का आदेश स्पष्ट रूप से अवैध है और उन्होंने यह बताए बिना कि वैज्ञानिक सर्वेक्षण की लागत कौन वहन करेगा, अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है।‘
बड़ा सवाल
अदालत में मस्जिद कमेटी के इस अर्जी को रिकार्ड में लेने की इल्तेजा किया गया है। यह अर्जी ऐसे वक्त आई है जब कल इस मामले में हाई कोर्ट का फैसला आने की सम्भावना है। वही मिली जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार के जानिब से पेश हुवे अधिवक्ता ने अपने जिराह में अदालत से इस बात को साफ़ साफ कहा था कि हमारे (सरकार) के लिए दोनों पक्ष (मंदिर और मस्जिद) समान है। ऐसे स्थिति में यदि सरकार के द्वारा व्यक्तिगत याचिका पर होने वाला खर्च वहन करने की बात आती है तो यह निश्चित रूप से एक बड़ा प्रश्न होगा।
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