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ज्ञानवापी मस्जिद के ASI सर्वे पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक से किया इंकार, ASI सर्वे के दरमियान कोई खुदाई नही होगी और न संरचना को पहुचेगा नुकसान, जिला जज ने रिपोर्ट हेतु दिया ASI को 1 माह का समय, पढ़े क्या पेश हुई सुप्रीम कोर्ट में दलील और क्या कहा अदालत ने

तारिक़ आज़मी/शाहीन बनारसी/शफी उस्मानी

डेस्क: वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने आज मस्जिद कमेटी के तरफ से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुवे सर्वे रोकने से मना कर दिया है। मगर कुछ बड़ी शरायत भी अदालत ने एएसआई के सामने रखा है। बताते चले कि हाई कोर्ट के आये आदेश के बाद कल रात ही अंजुमन इन्तेज़मियां मसाजिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया था और याचिका दाखिल कर हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दिया था।

The Supreme Court refused to ban the ASI survey of Gyanvapi Mosque, no excavation will be done during the ASI survey and no damage will be done to the structure, the District Judge gave 1 month time to the ASI for the report, read what was presented in the Supreme Court What else did the court say

बताते चले कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे किए जाने का वाराणसी की अदालत ने 21 जुलाई को आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि चार अगस्त तक रिपोर्ट कोर्ट में जमा करें। इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मस्जिद का सर्वे शुरू किया था। पर पहले सुप्रीम कोर्ट, फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाने तक सर्वे पर रोक लगाई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद सर्वे पर रोक लगाने से इंकार किया था। आज वाराणसी की जिला जज अदालत ने एएसआई को अपना सर्वे कर रिपोर्ट देने का एक महीने का समय दिया है।

क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट में आज

सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को रोकने से इनकार तो किया है मगर एएसआई पर कई बंदिशे भी लगाया है। एएसआई की जानिब से दिए गए इस अंडरटेकिंग को रिकॉर्ड पर लेते हुए कि साइट पर कोई खुदाई नहीं की जाएगी और संरचना को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा, अदालत ने सर्वेक्षण करने की अनुमति दी है। अदालत ने साफ़ साफ़ कहा है कि साईट पर किसी प्रकार की कोई खुदाई नही होगी और न ही संरचना को किसी प्रकार की कोई क्षति पहुचेगी।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा पारित आदेश में कहा गया, ‘सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा एएसआई की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि संपूर्ण सर्वेक्षण, स्थल पर किसी भी खुदाई के बिना और संरचना को कोई नुकसान पहुंचाए बिना पूरा किया जाएगा।” पीठ ने आदेश में कहा, ‘सीपीसी के आदेश 26 नियम 10ए के तहत पारित विद्वान ट्रायल जज के आदेश को इस स्तर पर प्रथम दृष्टया क्षेत्राधिकार के बिना नहीं कहा जा सकता है।‘

पीठ ने कहा कि वैज्ञानिक आयोग का साक्ष्य मूल्य मुकदमे में परीक्षण के लिए खुला है और जिरह सहित आपत्तियों के लिए खुला है। इसलिए, आयुक्त की एक रिपोर्ट, अपने आप में, विवादग्रस्त मामलों का निर्धारण नहीं करती है। पीठ ने कहा, ‘अदालत द्वारा नियुक्त आयुक्तों की प्रकृति और दायरे को ध्यान में रखते हुए, हम हाईकोर्ट के दृष्टिकोण से अलग होने में असमर्थ हैं, खासकर अनुच्छेद 136 के तहत अधिकार क्षेत्र में।‘ एएसआई की अंडरटेकिंग के अलावा, न्यायालय ने निर्देश दिया कि एएसआई सर्वेक्षण ‘गैर-आक्रामक’ प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाना चाहिए। एएसआई द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट ट्रायल कोर्ट को भेजी जाएगी और उसके बाद जिला न्यायाधीश द्वारा पारित किए गए निर्देशों का पालन किया जाएगा।

पीठ मस्जिद समिति द्वारा दायर दो विशेष अनुमति याचिकाओं (एसएलपी) पर विचार कर रही थी-पहली हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें सीपीसी के आदेश 11 नियम 11 के तहत दायर उनकी याचिका, को खारिज कर दिया गया था। दूसरी, एएसआई को संरचना के सर्वेक्षण की अनुमति देने वाले आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई। आदेश 7 नियम 11 मुद्दे के संबंध में पहली एसएलपी पर, पीठ ने हिंदू वादी को नोटिस जारी किया और मामले को बाद की तारीख पर सुनवाई के लिए पोस्ट किया। एएसआई के उपक्रम को दर्ज करते हुए, दूसरे एसएलपी का निपटान ऊपर उल्लिखित निर्देशों के अनुसार किया गया था।

 क्या हुई अदालत में जिरह

सीजेआई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ताओं के वकील सीनियर एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी से कहा कि हाईकोर्ट ने एएसआई के हलफनामे को रिकॉर्ड पर ले लिया है, जिसमें कहा गया है कि वे कोई खुदाई नहीं कर रहे हैं। इस पर अधिवक्ता अहमदी ने दलील देते हुवे कहा कि यह प्रक्रिया पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 द्वारा वर्जित है। ‘सर्वेक्षण का आदेश देकर, और इतिहास में पीछे जाकर कि 500 साल पहले क्या हुआ था, क्या आप पूजा स्थलों का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं अधिनियम?’

The Supreme Court refused to ban the ASI survey of Gyanvapi Mosque, no excavation will be done during the ASI survey and no damage will be done to the structure, the District Judge gave 1 month time to the ASI for the report, read what was presented in the Supreme Court What else did the court say

इस जिरह पर सीजेआई ने कहा कि मुकदमे के सुनवाई योग्य होने से संबंधित मुख्य मामले की सुनवाई करते समय इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा। अहमदी ने आग्रह किया कि सर्वेक्षण ‘पूरी तरह से भाईचारे, धर्मनिरपेक्षता और पूजा स्थल अधिनियम की वस्तुओं के बयानों पर प्रभाव डालता है।‘ सीजेआई ने कहा, ‘लेकिन मिस्टर अहमदी, यह आयुक्त की नियुक्ति का एक अंतरिम आदेश है। सुप्रीम कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए? हम रखरखाव, आयोग के सबूतों पर आपत्तियों से संबंधित सभी मुद्दों को खुला रखेंगे। ये ऐसे मामले हैं जिन पर अंततः मुकदमे में बहस होनी चाहिए।‘ जिस पर एड0 अहमदी ने दलील दिया कि ‘लेकिन इसकी प्रवृत्ति है।’

सीजेआई ने कहा कि ‘यहां तक कि अयोध्या मामले में, एएसआई सर्वेक्षण के साक्ष्य मूल्य पर बहुत तर्क दिया गया था। ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें अंतिम सुनवाई में संबोधित किया जाना है कि सर्वेक्षण का साक्ष्य मूल्य क्या है। हम संरचना की रक्षा करेंगे।‘ अहमदी ने अपनी जिरह के दरमियान अदालत में सवाल किया कि ‘क्या आप एएसआई से सर्वेक्षण करने के लिए कहेंगे?’ उन्होंने तर्क दिया कि ‘अगर मैं यह मामला बनाता हूं कि मुकदमा चलने योग्य नहीं है, तो सर्वेक्षण का सवाल कहां है? मैं कह रहा हूं कि जब रखरखाव पर गंभीर संदेह हो तो सर्वेक्षण न करें।‘

हालांकि सीजेआई ने यह भी कहा कि सिविल कोर्ट की अंतरिम आदेश पारित करने की शक्ति केवल इसलिए वर्जित नहीं है क्योंकि सुनवाई योग्या होने पर सवाल उठाया गया है। उन्होंने बताया कि दो अदालतों ने मुकदमे की स्थिरता के पक्ष में फैसला दिया है। सीजेआई ने आश्वासन दिया, ‘हम संरचना की रक्षा करके आपकी चिंताओं की रक्षा करेंगे।‘ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई खुदाई नहीं की जाएगी और एएसआई हाईकोर्ट के समक्ष अपनाए गए रुख का पालन करेगा।

अधिवक्ता अहमदी ने अदालत इल्तेजा करते हुवे कहा कि ‘ये धूर्त तरीके हैं। प्रक्रिया ऐसी है कि आप अतीत के घावों को फिर से खोल रहे हैं। जब आप एक सर्वेक्षण शुरू करते हैं, तो आप अतीत के घावों को उजागर कर रहे हैं। और यह वही चीज़ है जिसे पूजा स्थल प्रतिबंधित करना चाहते हैं।’, अहमदी ने अपने तर्कों को सारांशित करते हुए बताया कि इसी तरह का आदेश 1991 में दायर एक मुकदमे में पारित किया गया था, जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि (1994) 2 एससीसी 48 के रूप में रिपोर्ट किए गए आदेश में संरचना के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले एक आदेश पारित किया गया था।

अहमदी ने अदालत में अपनी दलील देते हुवे कहा कि इसके अलावा, मस्जिद के अंदर ‘शिवलिंग’ होने का दावा करने वाली संरचना की कार्बन-डेटिंग की अनुमति देने वाले आदेश के खिलाफ एक अलग एसएलपी दायर की गई है, जिसे मई में सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित रखा था। यूपी सीएम के बयान का हवाला देते हुवे अहमदी ने पीठ का ध्यान केद्रित करवाया। अहमदी ने सीएम के बयान वाला एक पेपर कोर्ट को सौंपा और उसे कोर्ट में नहीं पढ़ा। अहमदी ने कहा, ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था। मुख्यमंत्री ने यह बयान तब दिया जब मामला काफी गर्म था और लंबित था। राज्य को तटस्थ और गैर-पक्षपातपूर्ण माना जाता है।‘

मस्जिद कमेटी कल से होगी सर्वे में शामिल

सुप्रीम कोर्ट से आज के हुक्म आने के बाद अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी कल से एएसआई सर्वे में शामिल होगी। उक्त बात की जानकारी संस्था के जॉइंट सेक्रेटरी एस0एम0 यासीन ने एक बयान जारी करते हुवे दिया है। गौरतलब हो कि संस्था ने आज हुवे सर्वे का बायकाट किया था।

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