शाहीन बनारसी
वराणसी: रबी-उल-अव्वल के मुकद्दस मौके परशहर की हर मुस्लिम बाहुल्य गली दुल्हन की तरह सजी हुई है। कही नात शरीफ पढ़ी जा रही है तो कही तक़रीर का सिलसिला जारी है। कही लंगर चल रहे है तो कही तबर्रुक के तौर पर मिठाई तकसीम हो रही है। कही बेला की खुशबु है तो किसी सु चमेली की खुशबु है। रंगबिरंगी रौशनी से शहर जगमग जगमग कर रहा है। बिना सोचे ही दिल से सदा बुलंद हो रही है “मरहबा या रसूल अल्लाह, या हबीब अल्लाह।” रबी-उल-अव्वल की 12 तारीख को ही नबी-ए-करीम (स0) इस्लाम ही नही बल्कि पुरे आलम के नूर बनकर आए।
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