शाहीन बनारसी
डेस्क: मणिपुर पुलिस ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) की उस फैक्ट-फाइंडिंग टीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, जिसने मणिपुर का दौरा करने के बाद राज्य में जारी जातीय संघर्ष के मीडिया कवरेज पर एक एडिटर्स गिल्ट ने रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट के अनुसार, एफआईआर में पहले सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की वो धारा 66ए लागू की गई थी, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
बताते चले कि धारा 66ए को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किये जाने के बाद कई बार अदालत ने राज्यों की पुलिस से कहा है कि इस धारा के तहत लोगों पर आरोप लगाना बंद करें, लेकिन पुलिस ने अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया है। रद्द की गई धारा के तहत ऑनलाइन ‘आपत्तिजनक’ सामग्री पोस्ट करने वाले व्यक्ति को तीन साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अब इस धारा को हटा दिया गया है, साथ ही टीम के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की एक धारा के साथ समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, उपासना स्थल को क्षतिग्रस्त या अपवित्र करने, किसी बयान से सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देने और जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का इरादा रखने संबंधित धाराएं लगाई हैं।
इस सम्बन्ध में समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुवे सीएम एन0 बीरेन सिंह का कहना है कि राज्य सरकार ने ‘एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, जो मणिपुर राज्य में और अधिक संघर्ष पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।’ इस बीच, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए इस कदम के खिलाफ एक बयान जारी कर कहा है, ‘राज्य सरकार का यह तरीका देश के शीर्ष मीडिया निकाय को डराने-धमकाने के समान है।’ उधर, एडिटर्स गिल्ड ने कैप्शन में हुई त्रुटि को मानते हुए ट्विटर पर कहा था, ‘फोटो संपादन में हुई त्रुटि के लिए हमें खेद है।’
क्या लिखा एडिटर्स गिल्ड ने अपनी रिपोर्ट में
मणिपुर से आ रही संघर्ष की कई ख़बरें और रिपोर्ट्स ‘एकतरफा’ थीं। गिल्ड की रिपोर्ट में कहा गया था कि इंफाल स्थित मीडिया ‘मेईतेई मीडिया में तब्दील हो गया था। जातीय हिंसा के दौरान मणिपुर के पत्रकारों ने एकतरफा रिपोर्ट लिखीं। सामान्य परिस्थितियों में रिपोर्ट्स को संपादकों या स्थानीय प्रशासन, पुलिस और सुरक्षा बलों के ब्यूरो प्रमुखों द्वारा क्रॉस-चेक और देखा जाता है, हालांकि संघर्ष के दौरान ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं था।’
आगे कहा गया, ‘ये मेईतेई मीडिया बन गया था… ऐसा लगता है कि संघर्ष के दौरान मणिपुर मीडिया के संपादकों ने सामूहिक रूप से एक-दूसरे से परामर्श करके और एक समान नैरेटिव पर सहमत होकर काम किया, मसलन किसी घटना की रिपोर्ट करने के लिए एक समान भाषा पर सहमति, भाषा के विशिष्ट तरह से इस्तेमाल या यहां तक कि किसी घटना की रिपोर्टिंग नहीं करना। गिल्ड की टीम को बताया गया कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वे पहले से ही अस्थिर स्थिति को और अधिक भड़काना नहीं चाहते थे।’
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