तारिक़ आज़मी
डेस्क: चम्बल के बीहड़ो में कभी किलिंग मशीन के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाली दस्यु सुंदरी कुसुमा की कहानी किसी फ़िल्मी स्टोरी से कम नही है। कुसुमा नाइन वह डाकू थी जिसने फुल्लन देवी से दुश्मनी मोल लिया था। दुश्मनी भी ऐसी वैसी नहीं, बल्कि एक ऐसी दुश्मनी जो दो डाकुओ के बीच थी और इसमें सियासी चाले भी शतरंज के बिसात की तरह चली गई। जिसमे कई शह हुई तो कई बार एक दुसरे को मात देने के चक्कर में खून भी आपस में बहे। आज हम आपको उसी कुसुमा नाइन के सम्बन्ध में बता रहे है।
माधव के प्यार में खोई कुसुमा अपना घर, परिवार, पढ़ाई छोड़ कर माधव के साथ दिल्ली भाग गई। कुसुमा के पिता गांव के प्रधान थे। पुलिस के साथ उनकी अच्छी खासी पहचान थी। प्रधान ने पुलिस में शिकायत की तो पुलिस ने कुसुमा को ढूंढ़ना शुरू कर दिया। पुलिस ने माधव और कुसुमा को दिल्ली में पकड़ लिया। इसके बाद कुसुमा को सही सलामत माता-पिता के सुपुर्द कर दिया गया। वहीं दूसरी ओर पुलिस ने माधव पर डकैती का केस लगाकर उसे जेल भेज दिया। इसके बाद माधव और कुसुमा के रास्ते अलग-अलग हो गये ऐसा कुसुमा के परिजनों ने सोच लिया था।
गांव का प्रधान होने के चलते कुसुमा के पिता को बदनामी का डर था। इसके कारण पिता ने कुसुमा की शादी पड़ोस के गांव करेली में रहने वाले केदार नाई नाम के व्यक्ति से करवा दी। कुसुमा को ससुराल भेज दिया गया। दूसरी तरफ माधव मल्लाह जेल से छूटकर डाकुओं के गैंग में शामिल हो जाता है और उसके सर पर कुसुमा का इश्क सवार था। माधव जिस गैंग में शामिल हुआ वह फूलन देवी का गैंग था। फूलन की गैंग में अधिकतर मल्लाह जाति के लोग थे इसलिए माधव मल्लाह फूलन के करीबी विक्रम मल्लाह की मदद से गैंग का हिस्सा बना था।
धीरे धीरे माधव ने अब गैंग में अच्छी जगह बना ली। जिसके बाद अपने इश्क को पाने के लिए माधव अपने साथियों के साथ कुसुमा के ससुराल पहुंचा, और कुसुम के पति केदार और ससुराल वालों की जमकर पिटाई करके कुसुमा को अपने साथ बीहड़ों में ले आया। यहां कुसुमा की मुलाकात माधव के गैंग की प्रमुख फूलन देवी से होती है। गैंग में हर कोई फूलन की सुनता था। माधव भी फूलन की जी हजूरी किया करता था। इन सब के चलते कुसुमा खुद को उपेक्षित महसूस करने लगी। कुसुमा के अंदर पनप रही उपेक्षा की यह भावना धीरे-धीरे बगावत में बदल रही थी।
फूलन और लालाराम की पुरानी दुश्मनी थी। लालाराम को मारने के लिए फूलन ने कुसुमा को उसके पास भेजा लेकिन बगावत की भावना से भरी कुसुमा ने अपने ही गैंग को धोखा दे दिया और लालाराम से हाथ मिला लिया। कुसुमा की अब सबसे बड़ी दुश्मन फूलन देवी थी। फूलन से बदला लेने के लिए कुसुमा किसी भी हद तक जा सकती थी। बदले की भावना में वो माधव को भुला चुकी थी। लालाराम और फूलन की गैंग के बीच अक्सर मुठभेड़ होती रहती थी। ऐसी ही एक मुठभेड़ में विक्रम और माधव मारे गए। इस घटना के बाद कुसुमा की लालाराम की गैंग में पहुच बढ़ गई।
इसी दरमियान फूलन देवी ने अपना बदला लेने के लिए बेहमई काण्ड किया। 14 मई 1981 को फूलन देवी ने बेहमई गांव में 22 ठाकुरों को एक लाइन में खड़ा कर तब तक गोलियां चलाई जब तक कि एक-एक की मौत नहीं हो गई। पूरे देश में इस नरसंहार की चर्चा थी। इस घटना का बदला अब लालाराम लेना चाहता था। इसके लिए लालाराम ने कुसुमा को हर तरह के हथियार चलाना सिखाया। लाला राम के साथ मिलकर उसने अपहरण की कई वारदातों को अंजाम दिया जिनमें से एक अपहरण ‘सीमा परिहार’ का भी था। सीमा परिहार बाद में बीहड़ो में काफी मशहूर भी हुई।
इसी बीच साल 1982 में राजेंद्र चतुर्वेदी के प्रयासों से फूलन देवी आत्मसमर्पण कर देती है। फूलन देवी के जेल जाने के बाद बीहड़ों में महिला डाकू के नाम पर सिर्फ एक ही रह गई थी, वह थी कुसुमा नाइन। कुसुमा इतनी बेखौफ हो गयी थी कि पुलिस अधिकारीयों का भी अपहरण करने से पीछे नहीं हटती थी। इस दरमियान कुसुमा काफी क्रूर हो गई और उसने जालौन जिले में एक महिला को उसके बच्चे समेत जिंदा जला दिया। यही नही 1984 में मईअस्ता गाँव में कुसुमा नाइन बेहमई नरसंहार का बदला लेने अपने साथियों के साथ गई। कुसुमा ने मईअस्ता गांव में मल्लाह जाति के लोगों को निशाना बनाया। उसने गांव के 15 मल्लाह जाति के लोगों को कतार में खड़ा किया और बेहमई नरसंहार की तरह एक-एक पर तब तक गोलियां चलाईं जब तक उनकी मौत नहीं हो गई। इतना ही नहीं इन लोगों के घर को भी जला दिया गया। कुसुमा ने 2 लोगों की तो ऑंखें तक नोंच ली थी और उन्हें दर्द में जिन्दा छोड़ दिया था।
डाकुओं के गैंग में अपनी इस क्रूरता के चलते कुसुमा के साथी उसे यमुना-चम्बल की शेरनी कहने लगे। कुसुमा लालाराम से भी आगे निकल गई थी जिसकी वजह से दोनों के बीच मनमुटाव बढ़ता जा रहा था। एक दिन लालाराम की कुसुमा से किसी बात को लेकर बहस हो गई तब उसने लालाराम की गैंग छोड़ दी। इसी दरमियान कुसुमा की मुलाकात रामाश्रय तिवारी उर्फ़ फक्कड़ बाबा से होती है। फक्कड़ बाबा को डाकुओं का गुरु कहा जाता था। कुसुमा लालाराम की गैंग से निकलने के बाद दिशा विहीन थी तो जाकर फक्कड़ बाबा की गैंग में जा मिली। कुसुमा का नाम पहले से ही बीहड़ों में मशहूर था इसके चलते उसने बहुत जल्द फक्कड़ बाबा की गैंग में अपनी अलग जगह बना ली और फक्कड़ बाबा की राइट हैंड बन गई। फक्कड़ बाबा के साथ मिलकर कुसुमा ने कई अपहरण की वारदातों को अंजाम दिया। अपहरण की इन वारदातों में एडीजी हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण काफी मशहूर रहा इसके लिए आगे चलकर कुसुमा और फक्कड़ बाबा को सजा भी हुई।
कुसुमा की हिम्मत दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी। एक मुठभेड़ में उसने 3 पुलिस कर्मियों की ह्त्या कर दी थी। कुसुमा लेटर पैड के माध्यम से फिरौती की मांग किया करती थी। फिरौती न मिलने पर लाश घर भिजवा देती थी। इसी तरह पैसे न मिलने पर उसने एडीजी हरदेव उसने आदर्श शर्मा को गोली मारकर उनके शव को इटावा शहर के सहसो गांव के पास सड़क पर फेंक दिया था। इस घटना के बाद पुलिस के लिए पानी सिर से ऊपर चला गया था। पुलिस ने स्पेशल टीम बनाकर कुसुमा को बीहड़ों में ढूंढ़ना शुरू कर दिया।
कुसुमा पर 35 हज़ार का ईनाम रखा गया था। पुलिस ने कुसुमा और फक्कड़ बाबा को बीहड़ों में खूब ढूंढा लेकिन कोई सफलता हासिल नहीं हुई। कुसुमा और फक्कड़ बाबा को यह अच्छी तरह पता था कि, अब ज्यादा समय तक बीहड़ों में छुप पाना संभव नहीं है। दोनों ने निर्णय लिया आत्मसमर्पण का। पहले दोनों ने अपनी गैंग के सदस्यों के साथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया था लेकिन मुख्यमंत्री की व्यस्तता के चलते ये नहीं हो पाया। फिर साल 2004 में दोनों ने मध्यप्रदेश के भिंड जिले में अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। बाद में कुसुम नाइन और फक्कड़ बाबा को उम्र कैद की सजा हुई।
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