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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, बच्चे गोद लेने का भी अधिकार देने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, पढ़े क्या है आज आये इस फैसले में मुख्य बाते

शाहीन बनारसी

डेस्क: सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सेम सेक्स मैरिज को क़ानूनी मान्यता दिए जाने की मांग को लेकर दायर की गई 21 याचिकाओं पर फ़ैसला सुनाते हुए चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि अदालत क़ानून नहीं बना सकती है बल्कि केवल उसकी व्याख्या कर सकती है और स्पेशल मैरिज ऐक्ट में किसी तरह का बदलाव करना संसद का काम है।

Supreme Court’s refusal to give legal recognition to gay marriage, Supreme Court’s refusal to give the right to adopt children, read what are the main points in today’s decision.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने के पक्ष में थे, वहीं तीन जज जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस रवींद्र भट्ट इसके विरोध में थे। इसलिए समलैंगिक जोड़ों को ये अधिकार भी नहीं मिलेगा। फ़ैसले की शुरुआत में ही चीफ़ जस्टिस ने बताया कि इस केस में चार जजमेंट हैं। चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली इस पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे।

  • चीफ़ जस्टिस ने केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ये सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के ख़िलाफ़ किसी तरह का भेदभाव न हो।
  • चीफ़ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिक होना एक प्राकृतिक बात है और ये सदियों से अस्तित्व में रहा है। ये चलन न तो शहरी और न ही अभिजात्य वर्ग से जुड़ा है।
  • जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा है कि समलैंगिक जोड़ों को कुछ सुनिश्चित अधिकार दिए जाने के मुद्दे पर वो चीफ़ जस्टिस की दलील से सहमत हैं।
  • उन्होंने कहा, “विषमलिंगी और समलिंगी शादियों को एक ही सिक्के के दो पहलू के तौर पर देखा जाना चाहिए।”
  • उन्होंने कहा कि समलैंगिक शादियों को क़ानूनी मान्यता देना वैवाहिक बराबरी की दिशा में कदम उठाना होगा।
  • अपने फ़ैसले के ऑपरेटिव हिस्से को पढ़ते हुए जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि वो कुछ मुद्दों पर चीफ़ जस्टिस से सहमत और असहमत हैं।
  • इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपने फ़ैसले में चीफ़ जस्टिस ने कहा कि ये संसद को तय करना है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट में किसी बदलाव की ज़रूरत है या नहीं।
  • उन्होंने कहा, ‘ये अदालत क़ानून नहीं बना सकती है। अदालत किसी क़ानून की केवल व्याख्या कर सकती है और उसे लागू कर सकती है।‘
  • जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का वो बयान दर्ज किया है कि केंद्र समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों पर फ़ैसला करने के लिए एक कमेटी बनाएगी।
  • साथ ही चीफ़ जस्टिस ने केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को समलैंगिकों के प्रति आम लोगों को संवेदनशील बनाने की दिशा में कदम उठाने का भी निर्देश दिया और ये भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि समलैंगिक बच्चों को तब तक लिंग परिवर्तन कराने के लिए ऑपरेशन कराने की इजाजत नहीं दी जा सकती है जब तक कि वे इसके परिणामों को समझने वाली उम्र में न पहुंच जाएं।
  • चीफ़ जस्टिस ने पुलिस को ये भी निर्देश दिया है कि संबंधों को लेकर किसी समलैंगिक जोड़े के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने से पहले पुलिस शुरुआती जांच करेगी।
  • उन्होंने कहा कि समलैंगिकता कोई शहरी संकल्पना नहीं है और न ही उच्च वर्ग तक की सीमित है।
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