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तेज़ी से बदल रही परिस्थितियों के बीच इजराइल-हमास संघर्ष में क्या होगा ईरान का अगला कदम, जाने क्यों बोला ईरान ‘अमेरिका चाहे तो सीधे तौर पर गज़ा-इसराइल संघर्ष में इजराइल के साथ खड़ा हो सकता है’

तारिक़ आज़मी

मध्य पूर्व में इस समय परिस्थितियां तेज़ी से बदल रही हैं, सऊदी अरब ने कहा है कि उसने ग़ज़ा में शांति लाने के लिए प्रयास तेज़ कर दिए हैं। सऊदी ने इस्लामिक देशों के संगठन की बुधवार को ग़ज़ा मुद्दे पर चर्चा के लिए बैठक भी बुलाई है। इन बढ़ती हलचलों के बीच, ईरान सधे हुए क़दम रख रहा है और सीधे और स्पष्ट संकेत भी दे रहा है। फिलहाल लेबनान-इसराइल बॉर्डर पर गतिविधियां तेज़ हुई हैं।

रविवार को ही हिज़बुल्लाह ने इसराइल की तरफ़ तीन मिसाइल हमले किए हैं। अब आगे जो भी होगा उसमें ईरान की भूमिका और अधिक अहम हो जाएगी। ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या ईरान सीधे तौर पर इस संघर्ष में शामिल हो सकता है? विश्लेषक मानते हैं कि जब तक ईरान के ठिकानों को सीधे तर पर निशाना नहीं बनाया जाएगा तब तक ईरान की सेना संघर्ष में तो सीधे शामिल नहीं होगी लेकिन हिज़बुल्लाह और सीरिया में सक्रिय समूहों के ज़रिये दख़ल देती रहेगी।

ईरान ये समझकर चल रहा है कि इसराइल हमास को आसानी से नहीं कुचल पाएगा। अभी भी हमास के पास काफ़ी रॉकेट हैं। हिजबुल्लाह के पास भी हज़ारों रॉकेट हैं।  यही नहीं सीरिया में भी सक्रिय समूह हैं। ईरान ये समझकर चल रहा है कि उसका पलड़ा भारी होगा क्योंकि अमेरिका सऊदी अरब, मिस्र या तुर्की जैसे अन्य देशों के साथ मिलकर भी कुछ नहीं कर पाएगा। ऐसे में ईरान तब तक इस संघर्ष में सीधे तौर पर शामिल नहीं होगा जब तक उसके ठिकानों को निशाना नहीं बनाया जाएगा।

दरअसल पूरा समीकरण समझने के लिए इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि फलिस्तीन में मस्जिद अल-अक्सा मुस्लिम समाज के लिए काफी अहम् है। वही मुस्लिम देशो की रहनुमाई का दावा टर्की काफी समय से करता आया है और खुद को सुल्तान अय्यूबी का असली वारिस भी लोगो के नज़र में दिखाता आया है। मगर रिचेप तय्यद अर्दोगन सिर्फ बयानों के अलावा और कोई इस्लामिक दुनिया के रहनुमाई का कदम नही उठाते ऐसा माना जाता रहा है। अर्दोगन ने पिछले जी-20 में भी अपने बयान को इस्लामोफोबिया के ऊपर ही केन्द्रित किया था।

इस बीच बीते रमजान माह के कई वीडियो मस्जिद अल अक्सा के वायरल हुवे जिसमे इजराइली फौजों पर मस्जिद के अन्दर मारपीट करने और नमाजियों से मारपीट करने के तथा उनको परेशान करने के आरोप लगे। ऐसे वीडियो की सोशल मीडिया पर बाढ़ सी आने के बाद मुस्लिम समुदाय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुद की रहनुमाई तलाश रहा है इसमें कोई दो राय नही है। ऐसे में हमास का इस्राइल पर हमला और फिर इसराइल का आम नागरिको पर जवाबी हमला इस्लामी देशो के नागरिको को काफी खला और उनके अन्दर आक्रोश उत्पन्न होने लगा है।

इसका थोडा मुहाजारा बीते शुक्रवार को दिखाई दिया जब इस्लामी देशो में नमाज़ के बाद इसराइल के विरोध में प्रदर्शन हुवे। ऐसे में ईरान का इस प्रकार से खुला समर्थन हमास को होने पर सबकी निगाहें इरान पर टिकी है। इसी बीच इसराइल ने फ़लस्तीनियों की एक बड़ी आबादी से ग़ज़ा को छोड़कर मिस्र की तरफ़ जाने के लिए कहा है। ईरान ये संदेश देना चाहता है कि ऐसे समय में जब अरब जगत के देश खुलकर फ़लस्तीनियों के साथ आने से हिचक रहे हैं।

ईरान दिखाना चाहता है कि वह अकेला ऐसा राष्ट्र है जो इसराइल को हिज़बुल्लाह या हमास को फिर से ताक़तवर करके काबू में कर सकता है। ईरान ने हाल के दिनों में संकेत भी दिए हैं कि अगर ग़ज़ा पर ज़मीनी हमला होता है तो वो दख़ल देगा।  अमेरिका से आँख से आँख मिला कर बात करने की कुअत रखने वाला ईरान अमेरिका को भी चेतावनी दे रहा है कि अमेरिका चाहे तो वह भी सीधे तौर पर ग़ज़ा संघर्ष में इसराइल की तरफ़ से शामिल हो सकता है।

अमेरिका के दो विमानवाहक पोतों के साथ बड़ा युद्धक बेड़ा इस समय मध्य पूर्व में है और अमेरिकी अधिकारियों ने बयानों में कहा है कि अमेरिका इसराइल की मदद करने के लिए पूरी तरह तैयार है। अमेरिका ने इसी बीच इसराइल के लिए हथियार भी भेजे हैं। हिब्रू मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक़ रविवार को भी अमेरिका से हथियार इसराइल पहुंचे हैं। ईरान ये साबित करना चाहता है कि वो फ़लस्तीनी मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठा रहा है और इस पर खुला स्टैंड ले रहा है। फ़लस्तीनी मुद्दा एक इस्लामिक मुद्दा है, ईरान हमास का खुला समर्थन करके ये संदेश भी दे रहा है कि अरब जगत के अन्य राष्ट्र अमेरिका के पीछे चलते हैं और वो कुछ नहीं कर पाएंगे और वह ही अकेला ऐसा बड़ा राष्ट्र है जो फ़लस्तीनियों के साथ खड़ा रहेगा।

संयुक्त अरब अमीरात और मोरक्को से राजनयिक संबंध बहाल होने के बाद सऊदी अरब और इसराइल के बीच अमेरिका की मध्यस्थता में इसराइल के साथ वार्ता किए जाने की ख़बरें भी आती रही हैं। हमास के हमले से पहले ही ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने सऊदी अरब को चेताते हुए कहा था कि इसराइल के साथ वार्ता भारी पड़ेगी। ऐसी रिपोर्टें हैं कि सऊदी अरब ने हमास के हमले और इसराइल के जवाबी हमले के बाद इसराइल के साथ वार्ता रोक दी है।

ऐसे में इस्लामिक देशो की बुद्धवार को होने वाली बैठक में यह तो करीब करीब निश्चित है कि फलिस्तीन के मुद्दे पर ईरान ही ‘बड़े भैया’ की भूमिका में खुद को रखेगा। इसके लिए टर्की अभी तक मुख्य दावेदार हुआ करता था। मगर नाटो देशो में शामिल हुवे टर्की को अमेरिका से अपने सम्बन्ध खुद की स्थिति को साफ़ करने में बाधा रहेगे। मगर साफ़ तो ये भी है कि अभी सीधे ईरान तब तक इस संघर्ष का हिस्सा नही बनेगा जब तक उसके ऊपर कोई अटैक नही होता है। मगर कही कोई हमला ईरान पर हुई तो फिर युद्ध की स्थिति काफी बदल जायेगी और ईरान सीधे सीधे इस युद्ध में कूद पड़ेगा, जो अमेरिका कभी नही चाहेगा। वही रूस अभी चुपचाप सारा तमाशा देख रहा है। क्योकि कही न कही से इजराइल-हमास संघर्ष के बीच युक्रेन कमज़ोर पडा है।

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