शाहीन बनारसी
डेस्क: शनिवार को संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार मामलों की समिति की एक अहम बैठक हुई। इस बैठक में समिति ने गज़ा के अस्पताल में बम धमाके और फ़लस्तीनी नागरिकों को घर छोड़कर पलायन के लिए मजबूर किए जाने की आलोचना की और कहा कि ग़ज़ा तक बिना रुकावट जल्द से जल्द मदद पहुंचाए जाने की ज़रूरत है। बैठक में इसराइल और फलिस्तीन के प्रतिनिधि मौजूद थे।
इस बैठक में फ़लस्तीनी प्रतिनिधि सहर सलेम ने कहा कि इसराइल ग़ज़ा में ‘फ़लस्तीनियों का जनसंहार’ कर रहा है। इसराइल ने फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर ‘तबाही मचाई है और जनसंहार किया है।’ संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार मामलों की समिति की बैठक में इसराइल और हमास के बीच ग़ज़ा में चल रहे संघर्ष पर चर्चा हुई। फ़लस्तीनी प्रतिनिधि सहर सलेम ने कहा, ‘पिछले 11 दिनों से पूरी दुनिया ये देख रही है कि गज़ा पट्टी पर फ़लस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ इसराइल ने किस तरह की तबाही को अंजाम दिया है।’ अपनी बात रखते वक़्त वो बेहद भावुक हो गईं।
उन्होंने कहा, ‘इसराइल ने 3,000 लोगों को मारा है जिनमें से 1,000 बच्चे हैं।’ हालांकि, फ़लस्तीनी अधिकारियों ने शनिवार को मरने वालों की संख्या 4300 से ज़्यादा बताई थी। फ़लस्तीनी प्रतिनिधि ने कहा, ‘इसराइल ने गज़ा में किसी एक परिवार को भी नहीं बख्शा है। जिन्हें वो मार नहीं सके, उन्हें घायल किया, जिन्हें वो घायल न कर सके उन्हें घरों से विस्थापित होने को मजबूर कर दिया। और जिन्हें लगा कि उन्हें अल अहली अस्पताल में सुरक्षित ठिकाना मिल गया है, उनका नरसंहार कर दिया।’ उन्होंने सवाल किया, ‘क्या ये करके इसराइल को अब और सुरक्षित महसूस हो रहा है? क्या इसराइल को बिना शर्त समर्थन देने के लिए इतनी मौतें काफ़ी नहीं हैं?’
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ग़ज़ा में लोगों पर इसराइल ने तब बम बरसाए गए जब वो अपने घरों में थे या फिर किसी सुरक्षित जगह की तलाश में थे। उन्होंने कहा, ‘ये तब हुआ जब इसराइल ने गज़ा का इलाक़ा खाली करने को आदेश दिया था और हज़ारों लोग पनाह लेने के लिए सुरक्षित जगह की तलाश में थे और उनके पास जाने को कोई सुरक्षित जगह नहीं थी।’ फ़लस्तीनी प्रतिनिधि सहर सलेम ने कहा, ‘इसराइल ने ग़ैरक़ानूनी तरीके से ग़ज़ा के सभी लोगों को सज़ा दी है।’
उन्होंने कहा कि ‘उसने जानबूझकर ग़ज़ा के लिए खाना, पानी और बिजली की सप्लाई काट दी है। उन्होंने ग़ज़ा को आने वाली मदद का रास्ता भी रोक दिया। उन्होंने पूरी की पूरी रिहाइशी बस्तियां ज़मींदोज़ कर दी हैं। उन्होंने घरों, स्कूलों, अस्पतालों पर सीधे हवाई हमला किया है। उन्होंने राहतकर्मियों को टार्गेट कर उन्हें मारा है, लगातार होती बमबारी के बीच राहत पहुंचाना मुश्किल हो गया है। ग़ज़ा में न बिजली है, न पानी, इलाज के उपकरणों की कमी है, खाने के सामान की गंभीर कमी है, अस्पताल घायलों से पटे पड़े हैं, घायलों के लिए दवाएं नहीं है। मुर्दाघर लाशों से भर गए हैं, वहां जगह नहीं बची है, सामूहिक कब्रों में शवों को दफनाया जा रहा है।’
उन्होंने कहा कि ‘इसराइल ने ग़ज़ा के 22 अस्पतालों को खाली करने का आदेश दिया है। इस आदेश को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीमार और घायलों के लिए मौत की सज़ा करार दिया। ग़ज़ा में 20 लाख लोग रहते हैं जिनमें से आधे बच्चे हैं। लेकिन इसराइल वहां इस तरह की बमबारी कर रहा है जैसे ग़ज़ा में कोई इंसान नहीं है, और इस तरह दिखा रहा है कि ग़ज़ा में हर कोई मारे जाने योग्य है। तबाही का मंज़र ऐसा है जिसे ‘कुछ नुक़सान’ कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। इसराइली गुनाहों को ये कह कर छिपाना कि फ़लस्तीनी आम नागरिकों की मौत के लिए वो ज़िम्मेदार नहीं हैं, अमानवीय, गैर ज़िम्मेदाराना और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन है।’
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से इसराइल के ‘अपराधों के ख़िलाफ़ और फ़लस्तीनियों के जनसंहार के ख़िलाफ़’ खड़े होने अपील की। बैठक में सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र में इसराइल की युवा प्रतिनिधि कार्मेली ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा ग़ज़ा की सीमा से सटे केरेम शलोम किबुत्ज़ में अपने गांव का हाल याद किया और कहा कि चर्चा की शुरुआत वो अपनी ज़िंदगी की कहानी से करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि उनकी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के बीच गुज़रा है। कार्मेली ने कहा कि उनका मानना है कि ज़िंदगी डर के माहौल में नहीं गुज़रनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘हिब्रू भाषा में केरेम शलोम का मलतब शांति के रखवाले होता है लेकिन हमारे जीवन में शांति नहीं बल्कि ख़तरे अधिक थे। मेरा बेडरूम एक बम शेल्टर में था क्योंकि मेरा घर ग़ज़ा के बेहद क़रीब था। ग़ज़ा से ताबड़तोड़ रॉकेट शेलिंग होने पर सायरन बजता था तो हमें सुरक्षित स्थान में पनाह लेने के लिए कुछ सेकंड का ही वक्त मिलता था। बीते 18 सालों से गज़ा पट्टी की सीमा से सटे इलाक़ों में रहने वाले समुदायों के लिए ये आम बात है। लेकिन मैंने ख़तरों के बावजूद इसी समुदाय में रहना पसंद किया क्योंकि ज़िंदगी रुकने का नाम नहीं।’
उन्होंने कहा कि ‘हमने ज़िंदगी चुनी थी, आतंक नहीं। लेकिन सात अक्तूबर को हम पर हमास के आतंकवादियों ने उस वक्त हमला किया जब हम यहूदी पर्व सबात मना रहे थे। उन्होंने हम पर हमला किया, वो हथियार लेकर आए, उन्होंने लोगों को मारा और 200 से अधिक लोगों को बंधक बनाकर अपने साथ ले गए। उन्होंने तबाही मचाई और किसी के लिए मानवता नहीं दिखाई। उन्होंने बुज़ुर्गों, बच्चों, महिलाओं, अक्षम लोगों के साथ जो किया उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इसराइल हमास नाम के आतंकी संगठन के साथ युद्ध कर रहा है, वो आम लोगों या किसी ख़ास व्यक्ति के ख़िलाफ़ नहीं है।’
उन्होंर क्षस कि ‘हमास ने इसराइल के 200 से अधिक लोगों को अगवा कर बंधक बनाया है। ये अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन है। उनमें से कईयों को मेडिकल मदद चाहिए।’ उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वो ‘हमास की कड़ी शब्दों में निंदा करें’, हमास से सभी बंधकों को छुड़ाने में मदद करें और खुद की रक्षा करने के इसराइल के अधिकार का समर्थन करें। उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा कुछ भी हुआ तो वो हमास के उद्देश्य पूरे करने जैसा होगा और आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई को नुक़सान पहुंचाएगा। आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में इसराइल पहली कतार में खड़ा है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उसकी मदद करने की ज़रूरत है।’
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