तारिक़ आज़मी
डेस्क: इसराइल और हमास के बीच कैदियों और अग़वा किए गए लोगों की अदला-बदली के साथ-साथ चार दिनों के लिए संघर्ष विराम स्थानीय समय अनुसार सुबह 7 बजे से शुरू होगा। यानी भारतीय समय के अनुसार यह समय लगभग 11 बजे का रहेगा। बन्दियो की अदला बदली दोपहर बाद होगी, याने भारतीय वक्त के मुताबिक शाम तक। इस बीच इसराइली सेना ने अपनी कैद से रिहा करने वाले जिन फलिस्तिनियो की लिस्ट जारी किया है उन 300 फलिस्तीनी में सबसे कम उम्र का 14 वर्ष का बालक है और अधिकतर की उम्र 17-18 साल है। सबसे अधिक की उम्र 58 वर्ष है।
इसराइल ने इन 300 फ़लस्तीनी क़ैदियों के अपराधों और कथित अपराधों की सूची भी जारी की है जिन्हें रिहा किया जा सकता है। इन अपराधों में हत्या की कोशिश, बम फेंकना, विस्फोटक या ज्वलनशील पदार्थ बनाने, पत्थर फेंकने, शत्रु संगठन से संबंध, और गंभीर शारीरिक नुकसान आदि हैं। इससे पहले हुई कैदियों की अदला-बदली से इतर इस लिस्ट में ऐसे लोग नहीं है जो इसराइली लोगों की हत्या करने के मामलों में दोषी ठहराए गए हैं।
इससे पहले इतने बड़े स्तर पर क़ैदियों की अदला-बदली साल 2011 के अक्टूबर में हुई थी जब हमास ने इसराइली सैनिक गिलाद शलित को पांच साल तक कैद में रखने के बाद रिहा किया था। उनके बदले में 1,027 फ़लस्तीनी कैदियों को छोड़ा गया था। इनमें से कुछ कैदियों को हत्या जैसे मामलों में भी दोषी ठहराया गया था। इनमें याहया सिनवार भी शामिल हैं जो ग़ज़ा पट्टी में हमास के नेता हैं और 7 अक्टूबर के हमले के लिए ज़िम्मेदार ठहराए गए हैं।
इसराइल की जेलों में कैद फ़लस्तीनी लोगों की संख्या में तेजी से इज़ाफा होता दिख रहा है। फ़लस्तीनी मानवाधिकार संस्था अद्दामीर के मुताबिक़, छह नवंबर तक इसराइली नियंत्रण वाली जेलों में कैद फ़लस्तीनी लोगों की संख्या 7,000 पहुंच गयी है। इनमें 80 महिलाएं और 18 साल की उम्र से कम 200 बच्चे शामिल हैं। इस संस्था के मुताबिक़, सात अक्टूबर के बाद से 3,000 से ज़्यादा फ़लस्तीनियों को गिरफ़्तार किया गया है। इसराइल ने साल 2021 में अद्दामीर समेत पांच अन्य फ़लस्तीनी सिविल राइट्स समूहों को आतंकी संगठन के रूप में परिभाषित किया है।
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय राइट्स ग्रुप इस तरह के दर्जे को अस्वीकार नहीं करते हैं। इसराइली मानवाधिकार संगठन बेतसेलेम के मुताबिक़, सितंबर, 2023 के अंत में इसराइल प्रिज़न सर्विसेज़ ने सुरक्षा कारणों से 146 फ़लस्तीनी नाबालिग़ों को हिरासत या कैद करके रखा हुआ है। इसके साथ ही इसराइली कारागार सेवा इसराइल में अवैध रूप से होने की वजह से 34 फ़लस्तीनी नाबालिग़ों को हिरासत में रखे हुए है। फ़लस्तीनी राइट्स संगठन फ़लस्तीन प्रिज़नर्स क्लब के मुताबिक़, हमास के छापे के बाद इसराइली जेलों में छह कैदी मारे जा चुके हैं जिनमें से 5 लोगों को सात अक्टूबर के बाद गिरफ़्तार किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र वर्षों से इसराइली रवैये का आलोचक रहा है। यूएन का कहना है कि फ़लस्तीनियों ने इसराइली कब्ज़े के दौरान अरसे से ‘स्वतंत्रतता के अभाव’ को झेला है। फ़्रांसेस्का अल्बनीज़ इसराइली कब्ज़े वाले फ़लस्तीन में यूएन की विशेष प्रतिनिधि हैं। उन्होने एक अब्यान में कहा है कि ‘वर्ष 1967 से बच्चों समेत 800,000 लाख फ़लस्तीनियों को इसराइल सेना अलग-अलग दौर में बंदी बनाया गया है। उन्हें इसराइल ने अधिकृत वेस्ट बैंक में नहीं जाने दिया गया है लेकिन वे जॉर्डन गई हैं और वहां छह महीने तक लोगों के इंटरव्यू किए हैं।’ हालांकि इसराइल ने उनकी रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र और सेव द चिल्ड्रेन नामक गैर-सरकारी संस्था के मुताबिक हर वर्ष 500 से 700 फ़लस्तीनी बच्चों को इसराइली सेना हिरासत में लेती है।
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