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इंदिरा गांधी की जयंती पर विशेष: ‘शक्ति का नाम नारी है’ को चरितार्थ करती एक शख्सियत जिसने पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया जो वह ता-क़यामत नही भूल सकता, पढ़े इन्दिरा गांधी

शाहीन बनारसी

डेस्क: आज पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंद्रा गाँधी की जयंती है। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री के ‘आपातकाल’ को काला अध्याय अगर माना जाता है तो वह सिक्के का एक पहलू नही बल्कि एक पहलू की हलकी सी झलक है। मगर अगर इंद्रा गाँधी के पुरे जीवन पर नज़र डाले तो दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला के तौर पर देखा जा सकता है। शायद ‘मर्दानी’ जैसे शब्द इंद्रा गांधी जैसी शख्सियत के लिए बने हुवे है।

इंद्रा गाँधी ने अपने जज्बे और विदेश निति पर ज़बरदस्त नियंत्रण सहित एक हिम्मत के साथ हमारे दुश्मन मुल्क को ऐसा सबक सिखाया जिसको हमारे इतिहास के पन्नो ने सुनहरे अक्षरों में लिखा है तो वही पाकिस्तान के लिए ऐसी चोट के तौर पर देख सकते है जिसको वह ता-क़यामत नही भूल सकता है। हम आज आपको तवारीखी उन पन्नो को बताते है जिसके ऊपर वक्त की धुल डाल कर खत्म करने की कोशिशे जारी है। मगर बेशक अगर बुराई को बुरा कहने की हिम्मत है, तो किसी ऐसे कार्य जिसने एक मिसाल कायम कर दिया हो को अच्छा कहने का जज्बा होना चाहिए।

हम जो कुछ आज आपको इंद्रा गांधी के मुताल्लिक बताने जा रहे है वह सभी किताबो के झरोखों से है जिसके बारे में तफसील लेख के अंत में है। जिसको तनिक भी शंका होगी उन किताबो को पढ़ सकता है। ये लफ्ज़ ख़ास तौर पर हमारे लिखने का मकसद ये है कि आज कल आपकी लिखी हुई इबरत को कोई पढ़ कर जज नही करता है बल्कि लिखने वाले के नाम में मज़हब देख कर उसकी इबरत को झूठा साबित करने के लिए व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान बघार देता है। ऐसे में उन किताबो का बयान करना ज़रूरी हो जाता है जिसको मैंने महीनो से पढ़ा और जहा से जानकारियों को इकठ्ठा करके आपके खिदमत में लेकर हाज़िर हुई हु।

क्या है इंद्रा गांधी के नाम में ‘गांधी’ टायटल का सही राज़

इन्दिरा गाँधी का जन्म 19 नवंबर 1917 में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। उत्तर प्रदेश के तात्कालीन इलाहाबाद यानी वर्त्तमान प्रयागराज का ये राजनैतिक घराना तमाम ऐश-ओ-इशरत का घरना था। कहा जा सकता है कि मुह में चांदी के चम्मच थे। मगर इंद्रा गाँधी ने इन सबके बावजूद संघर्ष में ज़िन्दगी बसर किया। उनके दादा मोती लाल नेहरू थे। इंद्रा का पूरा नाम इंद्रा नेहरू था। इनका मोहन दास करम चंद गांधी से कोई खून का रिश्ता नही था। इनके पति फ़िरोज़ गांधी पारसी परिवार से थे जिसके टायटल नेम गाँधी इंद्रा गांधी के नाम में लगा है।

भले लोग फ़िरोज़ नाम को आज यह साबित करे कि वह मुस्लिम समुदाय का नाम है मगर पारसी समुदाय में अधिकतर नाम ऐसे ही होते है। साथ ही फ़िरोज़ गाँधी और उनके पिता जहागीर गाँधी एक पारसी थे, इसके सबूत प्रयागराज के पारसी कब्रिस्तान में आज भी मौजूद है। यहाँ ख्याल ये रखे कि पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार दफना कर किया जाता है। दरअसल इस धर्म को एक पंथ के तौर पर माना जाता है और यह मूल रूप से इरान के लोग है जो 8वी शताब्दी में भारत आये थे। पारसी एक ईश्वरवाद को मानते है और अपने आराध्य को ‘होरमज्द’ कहते है। इस धर्म की उत्पत्ति ईसा से 600 वर्ष पूर्व के करीब की है जिसके लिखित इतिहास मौजूद है। इस धर्म की शुरुआत पैगम्बर जरथुस्त्र ने किया था और इसकी धार्मिक पुस्तक ‘ज़न्द अवेस्ता’ है। इस धर्म में अंतिम संस्कार करने के लिए शव को ‘टावर आफ साइलेंस’ (एक ऊँची इमारत) पर रख दिया जाता है जहा गिद्ध शव को खा जाते है। मगर जिन शहरों में ‘टावर आफ साइलेंस’ नही है वहा विशेष कब्रस्तान है। इसकी पुष्टि पारसी लेखक रिविनता रोशन की पुस्तक ‘The Zarathushti World’ और दीना गुज्दर की पुस्तक ‘The last of the Zoroastrians’ से किया जा सकता है। साथ ही फ़िरोज़ गाँधी जिनके पिता जहागीर गाँधी और माता रत्तिमई के सम्बन्ध में फ्रैंक कथेरिन की पुस्तक ‘Indira: The life of Indira Neharu Gandhi’ का अवलोकन किया जा सकता है।  

शिक्षा और जीवन काल

31 अक्टूबर 1984 को अपने अंगरक्षकों के द्वारा ही गोली मार कर हत्या किये जाने से पूर्व इंद्रा गांधी वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं। इनके दादा मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे। 1934–35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हे ‘प्रियदर्शिनी’ नाम दिया था। इसके पश्चात यह इंग्लैंड चली गईं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठीं, परन्तु यह उसमे विफल रहीं और ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में कुछ महीने बिताने के पश्चात, 1937 में परीक्षा में सफल होने के बाद इन्होंने सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। जहा उनकी मुलाकात फिरोज़ गाँधी से हुई थी। जिन्हे वह इलाहाबाद वर्त्तमान प्रयागराज से जानती थीं और जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। अंततः 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी आदि धर्म ब्रह्म-वैदिक समारोह में इनका विवाह फिरोज़ गांधी के साथ हुआ, फ़िरोज़ गांधी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, ख्याति प्राप्त पत्रकार और फिलासफर थे।

इंद्रा गाँधी ऑक्सफोर्ड से वर्ष 1941 में भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं। 1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं। लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष के0 कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। इंद्रा गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी।

उन्होंने अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिति में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया। उन्होंने एवं काँग्रेस पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं जिसमें आगे चलकर सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई। सन्दर्भ हेतु कोचानेक,स्टेनली की पुस्तक ‘Gandhi’s Peromid the new Congress’ को पढ़ा जा सकता है।

पाकिस्तान के दो हिस्से किये और 92 हजार सैनिको सहित पकिस्तान को आत्मसमर्पण करवाया

भारत के पूर्व में स्थित पूर्वी पाकिस्तान, यानी पाकिस्तान का वो हिस्सा जिसे आज बांग्लादेश कहा जाता है। पूर्वी पाकिस्तान में बंग-बंधु के नाम से जाने-जाने वाले नेता शेख मुजीबुर्रहमान को 1970 के चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल हुई थी। लेकिन पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहिया खान और चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने शेख मुजीबुर्रहमान को पाकिस्तान की कमान सौंपने से इनकार कर दिया। इस रवैये से नाराज शेख मुजीबुर्रहमान ने 7 मार्च 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। पूर्वी पाकिस्तान गुस्से से उबल रहा था और मुजीबुर्रहमान समर्थक सड़कों पर उतर आए।

आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह पर आमादा लोगों पर जमकर अत्याचार किए। लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और अनगिनत महिलाओं की आबरू लूट ली गई। पाकिस्तान के अत्याचार से भाग-भाग कर लोग भारत आने लगे और शरर्णार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही थी। तब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ से पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई करने को कहा लेकिन मानेकश़ॉ ने इससे साफ इनकार कर दिया। जिसका फायदा ये हुआ कि भारतीय सेना को युद्ध में उतरने के लिए तैयारी करने का अतिरिक्त समय मिल गया। नतीजा जब पाकिस्तान ने हवाई हमला किया तो उसका मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी की जा चुकी थी।

इस दरमियान याहिया खान और ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने मिल कर एक षड़यंत्र रचा जो था आपरेशन चंगेज़ खान। मगर उनको शायद ये नही पता था कि यह उनका आपरेशन उनके ही पोस्टमार्टम में तब्दील हो जायेगा क्योकि सत्ता में इंद्रा गाँधी थी। 3 दिसंबर 1971 को 5 बजकर 47 मिनट पर ऑपरेशन चंगेज खान के जरिए पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारतीय वायु सेना के कई अग्रणी बेसों पर लगातार आक्रमण शुरु कर दिया। भारत के 11 एयरबेसों अमृतसर, अंबाला, आगरा, अवंतीपुर, बीकानेर, हलवाड़ा, जोधपुर, जैसलेमर, पठानकोठ, भुज, श्रीनगर को निशाना बनाया गया। रनवे के पास बम गिरने से गहरे गड्ढे हो गए थे। लोगों ने इसे आतिशबाजी समझा था, लेकिन दूसरे दिन अखबारों से उन्हें पाकिस्तान द्वारा हमला करने की जानकारी हुई थी।

लेखिका शाहीन बनारसी एक युवा पत्रकार है

भारतीय वायुसेना के एयरस्ट्रिप पर पाकिस्तान ने 14 दिनों में 35 बार भुज एयरफील्ड पर 92 बमों और 22 रॉकेटों से हमला किया था। इसकी चपेट में भुज स्थिक एयरस्ट्रिप आ गई और इसके असर से भारतीय लड़ाकू विमानों का उड़ान भरना नामुमकिन हो गया। इस एयरबेस के कमांडर स्क्वाड्रन लीडर विजय कुमार कार्णिक थे। इसके बाद तो पाकिस्तान की शामत ही आ गई और उस आपरेशन चंगेज़ खान के मुहतोड़ जवाब देते हुवे भारत ने 8 दिसंबर 1971 की रात के दरमियान भारत-पाक युद्ध का बिगुल फुक दिया। उसके बाद भारत ने पाकिस्तान को वह पटखनी दिया जिसको पाकिस्तान ता-क़यामत तक नही भूल सकता है। आखिर में पाकिस्तान को अपने 92 हज़ार सैनिको के साथ आत्मसमर्पण करना पड़ा और बांग्लादेश अलग आज़ाद मुल्क बन गया। Hero Dilip की पुस्तक “Apocalyptic Realm”, एयर चीफ मार्शल पीसी लाल की पुस्तक ‘My years wit the IAF’ से संदर्भ ग्रहण किया जा सकता है।

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