शाहीन बनारसी
डेस्क: आज पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंद्रा गाँधी की जयंती है। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री के ‘आपातकाल’ को काला अध्याय अगर माना जाता है तो वह सिक्के का एक पहलू नही बल्कि एक पहलू की हलकी सी झलक है। मगर अगर इंद्रा गाँधी के पुरे जीवन पर नज़र डाले तो दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला के तौर पर देखा जा सकता है। शायद ‘मर्दानी’ जैसे शब्द इंद्रा गांधी जैसी शख्सियत के लिए बने हुवे है।
इन्दिरा गाँधी का जन्म 19 नवंबर 1917 में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। उत्तर प्रदेश के तात्कालीन इलाहाबाद यानी वर्त्तमान प्रयागराज का ये राजनैतिक घराना तमाम ऐश-ओ-इशरत का घरना था। कहा जा सकता है कि मुह में चांदी के चम्मच थे। मगर इंद्रा गाँधी ने इन सबके बावजूद संघर्ष में ज़िन्दगी बसर किया। उनके दादा मोती लाल नेहरू थे। इंद्रा का पूरा नाम इंद्रा नेहरू था। इनका मोहन दास करम चंद गांधी से कोई खून का रिश्ता नही था। इनके पति फ़िरोज़ गांधी पारसी परिवार से थे जिसके टायटल नेम गाँधी इंद्रा गांधी के नाम में लगा है।
शिक्षा और जीवन काल
31 अक्टूबर 1984 को अपने अंगरक्षकों के द्वारा ही गोली मार कर हत्या किये जाने से पूर्व इंद्रा गांधी वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं। इनके दादा मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे। 1934–35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।
इंद्रा गाँधी ऑक्सफोर्ड से वर्ष 1941 में भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं। 1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं। लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष के0 कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। इंद्रा गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी।
उन्होंने अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिति में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया। उन्होंने एवं काँग्रेस पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं जिसमें आगे चलकर सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई। सन्दर्भ हेतु कोचानेक,स्टेनली की पुस्तक ‘Gandhi’s Peromid the new Congress’ को पढ़ा जा सकता है।
पाकिस्तान के दो हिस्से किये और 92 हजार सैनिको सहित पकिस्तान को आत्मसमर्पण करवाया
भारत के पूर्व में स्थित पूर्वी पाकिस्तान, यानी पाकिस्तान का वो हिस्सा जिसे आज बांग्लादेश कहा जाता है। पूर्वी पाकिस्तान में बंग-बंधु के नाम से जाने-जाने वाले नेता शेख मुजीबुर्रहमान को 1970 के चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल हुई थी। लेकिन पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहिया खान और चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने शेख मुजीबुर्रहमान को पाकिस्तान की कमान सौंपने से इनकार कर दिया। इस रवैये से नाराज शेख मुजीबुर्रहमान ने 7 मार्च 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। पूर्वी पाकिस्तान गुस्से से उबल रहा था और मुजीबुर्रहमान समर्थक सड़कों पर उतर आए।
इस दरमियान याहिया खान और ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने मिल कर एक षड़यंत्र रचा जो था आपरेशन चंगेज़ खान। मगर उनको शायद ये नही पता था कि यह उनका आपरेशन उनके ही पोस्टमार्टम में तब्दील हो जायेगा क्योकि सत्ता में इंद्रा गाँधी थी। 3 दिसंबर 1971 को 5 बजकर 47 मिनट पर ऑपरेशन चंगेज खान के जरिए पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारतीय वायु सेना के कई अग्रणी बेसों पर लगातार आक्रमण शुरु कर दिया। भारत के 11 एयरबेसों अमृतसर, अंबाला, आगरा, अवंतीपुर, बीकानेर, हलवाड़ा, जोधपुर, जैसलेमर, पठानकोठ, भुज, श्रीनगर को निशाना बनाया गया। रनवे के पास बम गिरने से गहरे गड्ढे हो गए थे। लोगों ने इसे आतिशबाजी समझा था, लेकिन दूसरे दिन अखबारों से उन्हें पाकिस्तान द्वारा हमला करने की जानकारी हुई थी।
भारतीय वायुसेना के एयरस्ट्रिप पर पाकिस्तान ने 14 दिनों में 35 बार भुज एयरफील्ड पर 92 बमों और 22 रॉकेटों से हमला किया था। इसकी चपेट में भुज स्थिक एयरस्ट्रिप आ गई और इसके असर से भारतीय लड़ाकू विमानों का उड़ान भरना नामुमकिन हो गया। इस एयरबेस के कमांडर स्क्वाड्रन लीडर विजय कुमार कार्णिक थे। इसके बाद तो पाकिस्तान की शामत ही आ गई और उस आपरेशन चंगेज़ खान के मुहतोड़ जवाब देते हुवे भारत ने 8 दिसंबर 1971 की रात के दरमियान भारत-पाक युद्ध का बिगुल फुक दिया। उसके बाद भारत ने पाकिस्तान को वह पटखनी दिया जिसको पाकिस्तान ता-क़यामत तक नही भूल सकता है। आखिर में पाकिस्तान को अपने 92 हज़ार सैनिको के साथ आत्मसमर्पण करना पड़ा और बांग्लादेश अलग आज़ाद मुल्क बन गया। Hero Dilip की पुस्तक “Apocalyptic Realm”, एयर चीफ मार्शल पीसी लाल की पुस्तक ‘My years wit the IAF’ से संदर्भ ग्रहण किया जा सकता है।
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