अनुराग पाण्डेय
डेस्क: मणिपुर में कुकी-जो आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ‘आईटीएलएफ’ ने अपने समुदाय के प्रभुत्व वाले जिलों में ‘स्व-शासन’ करने की घोषणा किया है। इस बात का दावा आईटीएलएफ के महासचिव मुआन टॉम्बिंग ने बुद्धवार 15 नवंबर को द हिंदू में दिए गए एक बयान में किया है और कहा है कि केंद्र सरकार के ‘चयनात्मक न्याय’ के मद्देनजर उन्हें यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
द हिंदू में छपी खबर के मुताबिक मुआन टॉम्बिंग उनसे कहा है कि आदिवासी समुदाय का एक अलग मुख्यमंत्री होगा और समुदाय के उन सरकारी अधिकारियों को जिम्मेदारियां दी जाएंगी, जिन्हें 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद राज्य की राजधानी इंफाल से बाहर कर दिया गया था। टॉम्बिंग ने कहा कि अगस्त में संसद में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा कुकी-जो लोगों को ‘बाहरी’ कहा गया था। उन्होंने भविष्य में शाह से मिलने से इनकार कर दिया।
मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 180 से अधिक लोगों की जान चली गई है। यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था। मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।
इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। आईटीएलएफ ने बीते 3 मई से गृह मंत्रालय (एमएचए) के अधिकारियों के साथ कई दौर की बातचीत की है। पिछले हफ्ते इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारियों की एक टीम और गृह मंत्रालय के सलाहकार (पूर्वोत्तर) एके मिश्रा ने चुराचांदपुर में आईटीएलएफ नेताओं से मुलाकात की थी। इससे पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित 10 कुकी-जो विधायकों ने अलग प्रशासन की मांग की थी।
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