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4 राज्यों के विधानसभा चुनावो में मिली भाजपा को बड़ी सफलता, तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पाया बहुमत, तो तेलंगाना में बढाया अपना कद, पढ़े चुनावो के नतीजे और सफलता के राज़

तारिक़ आज़मी

डेस्क: 5 राज्यों में हुवे विधानसभा चुनावो को कांग्रेस बनाम भाजपा चुनावो की तरह देखा जा रहा था। जिसमे तेलंगाना चुनावो को अतिमहत्वपूर्ण समझा जा रहा था और तेलंगाना को दक्षिण का आखरी दरवाज़ा माना जा रहा था। एक बड़ा उलटफेर हुआ और कांग्रेस ने बीआरएस को एक बड़ा झटका देते हुवे बहुमत हासिल कर लिया है। यहाँ कांग्रेस को यहाँ 119 विधानसभा सीट में से कुल 64 सीट पर सफलता मिल चुकी है। वही बीआरएस अब तक 35 सीट पर जीत हासिल कर चुकी है। जबकि 4 पर बढ़त बनाये हुवे है। जबकि भाजपा को यहाँ इस बार 8 सीट हासिल हुई है। एक सीट पर सीपीआई को सफलता हासिल हुई है।

यह चार राज्यों का चुनाव भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा है। तेलंगाना में भाजपा का वोट प्रतिशत जहा बढा है तो वही उसकी सीट भी बढ़ी है। भाजपा को यहाँ 8 सीट मिली है। जबकि 7 सीट पर एआईएमआईएम को सफलता मिली है। इस राज्य में भाजपा का मत प्रतिशत बढने के साथ सीट में इजाफा होना एक बड़ी उपलब्धी भाजपा मान सकती है। इसके पूर्व यहाँ से भाजपा के केवल एक प्रत्याशी टी राजा सिघ को सफलता मिली थी, जिनको बाद में भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। मगर चुनावो के पहले भाजपा में उनकी वापसी हो गई थी।

यहाँ बात प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़ की है। भूपेश बघेल अपने जीत पर आश्वस्त थे। कांग्रेस से लेकर समस्त एग्जिट पोल भी बघेल की जीत सुनिश्चित कर रहे थे। मगर भीतर खाते भाजपा के ज़मीनी कार्यकर्ताओं की मेहनत सफल हुई और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका लगा है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस महज़ 32 सीट पर सिमट रही है। जिसमे से 26 सीट कांग्रेस जीत चुकी है और 7 सीटो पर बढ़त बनाये हुवे है। वही यहाँ भाजपा को 58 सीटो का भारी बहुमत मिला है। जिसमे में समाचार लिखे जाने तक 54 सीट जीत चुकी है, जबकि 4 पर उसकी बढ़त कायम है। यहाँ कांग्रेस के लिए एक और बड़ा झटका उनके डिप्टी सीएम का चुनाव हार जाना है।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की तमाम घोषणाओं और खुल कमलनाथ के बागेश्वर बाबा के चरणों में पहुचने के बाद भी शिवराज सिह मामा की लाडली बहना योजना ने उनको बड़ी सफलता दिलवाया है। कमलनाथ वैसे शिवराज के लिए एक लकी प्रतिद्वंदी साबित हुवे है। क्योकि 2018 में सत्ता मिलने के बाद कमलनाथ उस सत्ता को संभाल नही पाए और खुद की पार्टी में फुट के बाद वह सत्ता से भी बेदखल हो गए और शिवराज सिंह चौहान समस्त अटकलों को दरकिनार करते हुवे एक बार फिर से सत्ता में आये।

सत्ता में आने के बाद शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहना योजना ने कमाल किया और शिवराज को महिला मतदाताओं का प्रचंड साथ मिला। ये मत इतना अधिक बढ़ा कि शिवराज की सफलता अन्य सफलताओं से कही अधिक थी। तमाम बदलाव की अटकलों के बावजूद भी महज़ 15 दिनों में शिवराज ने चुनावी माहोल अपने पक्ष में करने के लिए 160 सभाए और रैलियाँ कर डाला। आखिर माहोल ऐसा उनके पक्ष में हुआ कि प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा को यहाँ एक बार फिर सत्ता हासिल हुई है। इस जीत ने एक बात तो साबित कर दिया कि मध्य प्रदेश में शिवराज के टक्कर का कोई नेता विपक्ष के पास तो नही है। कमलनाथ को उतनी सीट भी हासिल न हुई, जितनी सीट पिछली बार वह लेकर आये थे।

मध्य प्रदेश में कमलनाथ की कांग्रेस को 31 सीटो पर जीत हासिल हुई है। जबकि 31 सीटो पर बढ़त के साथ कुल 62 सीट पाती दिखाई दे रही है। वही साथ एक बात और भी है कि इन 62 सीटो में भी कुछ सीट ऐसी है जिसमे बढ़त काफी कम मतो से है। ये कमलनाथ और कमलनाथ की कांग्रेस के औंधे मुह गिरने की कहानी बयान करने वाला एक आकड़ा है। वही शिवराज की भाजपा ने 98 सीट पर जीत हासिल किया है जबकि 69 सीट पर बढ़त बनाये हुवे है। इस प्रकार भाजपा को मध्य प्रदेश में 167 सीट का प्रचंड बहुमत मिल गया है।

बात अगर राजस्थान की करे तो तमाम एग्जिट पोल और खुद को एकजैक्ट पोल की उपाधि देने वालो ने कांटे की टक्कर बताया था। घरेलु सिलेंडर से लेकर स्वास्थ्य योजनाओं का ज़िक्र करते गहलोत को ऐसी असफलता की उम्मीद शायद कभी नही रही होगी। या फिर यह भी कहा जाये कि खुद भाजपा को ऐसी प्रचंड सफलता की उम्मीद नही रही होगी। कई बागियों से घिरी भाजपा का खेल उसके बागी बिगाड़ते दिखाई दे रहे थे तो वही गहलोत का खेल उनके बागी बिगाड़ बैठे। पुराने वायदों से मुह मोड़ना और पेपर लीक ने राजस्थान का रिवाज कायम रखा और सत्ता भाजपा के पास बहुमत के साथ चली गई है। बेशक वसुंधराराजे या कोई और की जद्दोजेहद भाजपा के अंदर खेमे में हो रही हो। मगर भाजपा की यह एक बड़ी जीत है।

राजस्थान में भाजपा को कुल 115 सीट मिल रही है, जिसमे उसने 99 पर जीत हासिल कर लिया है और समाचार लिखे जाने तक 13 पर बढ़त बनाये हुवे है। जबकि कांग्रेस के खाते में 56 सीट आ चुकी है और 13 पर उसकी बढ़त है। इस प्रकार से कांग्रेस को महज़ 69 सीट पर पर संतोष करके विपक्ष की भूमिका निभानी पड़ेगी और आंकलन करना होगा कि अगर चुनाव एकजुट होकर जैसे लड़ा वैसे पायलेट और गहलोत एकजुट होकर सरकार चलाते तो शायद राजस्थान अपना रिवाज ज़रूर बदल देता। मगर ऐसा हुआ नही और 5 साल तेरा फिर 5 साल मेरा का तीन दशको से चला आ रहा रिवाज कायम है।

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