तारिक़ आज़मी
वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे मुकदमो में एक और मुकदमा कल दाखिल हुआ है। इस वाद में वाद मित्र लखनऊ निवासिनी आकांक्षा तिवारी है। इस सम्बन्ध में जन उद्धोष सेवा संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलदीप तिवारी ने बताया कि उक्त वाद जन उद्धोष सेवा संस्थान के तरफ से दाखिल हुआ है। जिसमे वाद मित्र आकांक्षा तिवारी है। और केस टायटल नंदी जी महाराज विराजमान बनाम यूनियन आफ इंडिया वगैरह है।
उन्होंने कहा कि ‘इनका ज्ञान कितने निम्न स्तर का है कि उन्हें याद नही कि 1830 में नेपाल नरेश ने यह नन्दी उपहार में दिया था, जिसको स्थापित करते समय अँग्रेजों ने “बांटो और राज करो” की नीति से काम लेकर उसका मुख मस्जिद की ओर उत्तर को बल पूर्वक करवा दिया। यह बाते मौखिक नही है बल्कि मुकदमा सं0 62/1936 में दाखिल पत्रावली के अनुसार है।’ उन्होंने लिखा है कि ‘खेद पूर्वक लिख रहा हूं कि एक जिलाधिकारी ने ज्ञानवापी मस्जिद से सम्बन्धित पुरानी फाइल लिखित आदेश द्वारा न्यायालय से अपने पास म॔गा लिया था, जिसमें बहुत पुराने पुराने अंग्रेजी, उर्दू, फारसी के दस्तावेज़ थे।, यह फाइल फिर न दिखी।‘
एसएम यासीन ने लिखा है कि ‘मुकदमा नंबर 610/1991 में वादी पंडित सोमनाथ व्यास ने भी इसको ज़ाहिर किया था। काश वह फाइल आज ज़िन्दा रहती तो हमारे वज़ू के हौज़ और फव्वारा की असलियत सब के सामने होती।‘ बाबरी मस्जिद का ज़िक्र करते हुवे एसएम यासीन ने अपने पोस्ट में लिखा है कि ‘बाबरी मस्जिद का फैसला आस्था के आधार पर हो गया और निर्णयक पांचो महान विधिवेता निहाल भी हो गए। हमारे जैसे लाखों करोड़ों मुसलमानों ने सब्र से काम लिया कि चलो अब आगे किसी नई जगह पर ऐसा कुछ नहीं होगा और मुसलमान शान्तिपूर्वक देश की मुख्य धारा से जुड़कर अपनी इबादतों में मशगूल हो जाएंगे।’
बाबरी मस्जिद जज्मेंट्स के आधार पर एसएम यासीन ने लिखा है कि ‘क्योकि बाबरी फैसले ने अपने निर्णय में Places of Worship Act 1991 को भी समाहित कर लिया था। आज के माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय भी उन पांच जजों में थे। लेकिन बहुत से निर्णयों ने हमारी अवधारणा बदल दिया।‘ जस्टिस संजय कौल के विदाई समारोह में उनके भाषण का ज़िक्र करते हुवे एसएम यासीन ने लिखा कि ‘अभी हाल में सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने विदाई समारोह में कहा है कि ”दूसरे से उम्मीद करने वाले खुद हिम्मत दिखाएं।” उस समारोह में मुख्य न्यायाधीश महोदय भी मौजूद थे।‘
एसएम यासीन ने कहा कि ‘मेरा मानना है कि फ़ैसला और इन्साफ में एक रूपता होना चाहिए। जिसका अभाव साफ दिखाई देता है। देश विदेश में भाषण और उसी के अनुरूप फैसलों में अंतर होता है। अगर फैसले संविधान और कानून के आधार पर होते तो आज कोई मसला न होता। आज हम बनारस अदालतों से लेकर हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में लगभग 24 मुख्य मुकदमात से न जूझ, रहे होते। अगर इन मुकदमात की शाखों को मिला लीजिए तो यह तादाद 40 पार करेगी। अभी गत सप्ताह हमने एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी के साथ देश विदेश के पत्रकारों से यह लिस्ट साझा किया तो सभी आश्चर्य में थे। कुछ ने सुझाव दिया कि आक्रामक होईए, कानून का सहारा लेकर मुकदमा दायर करने वालों को अदालत में लाइए।
एसएम यासीन ने कहा कि ‘हमारे कहने पर कि अदालत उन्ही मुकदमाबाज़ों का साथ देगी। जवाब था कि कम से कम सब नंगे तो हो जाएंगे। शायद ऐसा कहने वाले सही हैं। अब डिफेंस नुकसानदेह हो रहा है। हो सकता है कि अफेंस से मुकदमात से नजात मिले। अब तो हमारी पीठ दीवार से लग चुकी है। एक शायर से माफी के साथ कहुगा कि “ऐ वतन, ख़ाके वतन। वह भी तुझे दे देंगे, बच गया है जो भी लहू इन मुक़दमात के बाद।” देश के सभी लोगों के साथ मैं मुकदमाबाजों से भी विनती कर रहा हूं कि हमारी तकलीफ को समझें। हम भी आप का ही एक हिस्सा हैं।‘
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