तारिक़ आज़मी
वाराणसी: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने सोमवार को ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ी अपनी सर्वे रिपोर्ट वाराणसी ज़िला अदालत को सौंप दी है। ज्ञानवापी मस्जिद का इंतज़ाम देखने वाली संस्था अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद कमेटी के वक़ील अख़लाक़ अहमद ने बताया कि ‘एएसआई की पूर्ण रिपोर्ट एक सील बंद लिफाफे में सौंपी गयी है। अदालत 21 दिसंबर को फ़ैसला जारी करके बताएगी कि ये रिपोर्ट दोनों पक्षों के साथ किस तरह साझा की जाएगी।’
इसके बाद इस साल जुलाई में वाराणसी की एक अदालत ने एएसआई को मस्जिद की वैज्ञानिक ढंग से जांच करने का निर्देश दिया ताकि ये पता लगाया जा सके कि ये मस्जिद एक मंदिर पर बनाई गई थी या नहीं। यह मामला हाई कोर्ट होते हुवे सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ तक पंहुचा और मामले में अदालतों के हुक्म पर विभिन्न शरायतो के साथ सर्वे का हुक्म ASI को दिया। शर्तो और अदालत में दिले ASI के शपथ पत्र के अनुसार सर्वे के दरमियान किसी तरीके की खुदाई या तोड़फोड़ नही होगी। समस्त सर्वे साइंटिफिक होगा और ‘NonInvasive’ होगा। मगर मस्जिद कमेटी द्वारा जारी किये गए समय समय पर तस्वीरे इसकी पुष्टि करती रही कि ASI शरायत के मुखालिफ है।
आज ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने दो तस्वीरे उन मजारो की जारी किया है। जो मलबो के नीचे दब गई थी। सैकड़ो वर्ष पुराने यह दोनों मजारे मस्जिद के चारदीवारी के पीछे है। एसएम यासीन ने तस्वीरो को जारी करते हुवे कहा है कि अल्लाह हर तरीके से हमारे साथ है। ASI ने गलत काम किया, मगर हमारे दोनों बुज़ुर्गान की मजारे ज़ाहिर हो गई और हम सब यहाँ अब अक्सर हाजिरी लगाते है। इंशा अल्लाह जल्द ही उर्स भी शुरू होगा।
एसएम यासीन ने लिखा है कि ‘बहरहाल यह सब अदालत देखेगी। हम उनके साथ मुकदमा दाखिल करने वालों के भी शुक्रगुज़ार हैं कि उनके कारण हमारे दो बुजुर्गान की क़बरे, जो सैकड़ों वर्षो से मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास मिट्टी में दफन थीं, वह खुदाई में स्पष्ट हो गई। पहले उर्स होता था, अंग्रेजों ने बन्द करा दिया। हालांकि अदालत ने हमारे अधिकार को स्वीकार किया है। हम उर्स का अधिकार लेकर रहेंगे।‘
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