शफी उस्मानी
डेस्क: मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इस्लामिक क़ानून एक पति को बहुविवाह का अधिकार तो देता है लेकिन उन्हें अपनी सारी पत्नियों के साथ एक समान व्यवहार करना पड़ता है। जस्टिस आरएमटी टीका रमण और जस्टिस पीबी बालाजी की पीठ ने क्रूरता के आधार पर शादी को निरस्त करने के एक फ़ैमिली कोर्ट के आदेश को भी बरक़रार रखा।
वहीं, मामले में पत्नी ने अपने पति, सास और ननद पर प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया था। महिला ने कहा कि जब वह गर्भवती थीं, तब उनके पति और ससुरालवालों ने उनकी देखभाल नहीं की और उन्हें ऐसा खाना दिया गया जिससे उन्हें एलर्जी थी। महिला ने कहा कि जब उनका मिसकैरिज हुआ तो उनकी ननद ने उन्हें प्रताड़ित किया। पति ने इन सभी आरोपों को खारिज किया। लेकिन कोर्ट ने सभी उपलब्ध सामग्रियों को रिकॉर्ड पर लेने के बाद ये माना कि पत्नी अपने आरोपों को साबित करने में सफल रही।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘हमारी नज़र में पति ने दोनों पत्नियों के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं किया और पहली पत्नी ने साफ़ तौर पर ये दिखाया कि उनके पति ने क्रूरता की और उनका भरण-पोषण नहीं कर सके। इसलिए हम फ़ैमिली कोर्ट की ओर से शादी को रद्द करने के फ़ैसले को सहित मानते हैं और इसमें कोई दखल देने की ज़रूरत नहीं है।’
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