तारिक आज़मी
डेस्क: इसराइल और हमास के बीच जब तक युद्धविराम चला, तब तक किसी तरह का संघर्ष न होना एक कूटनीतिक उपलब्धि थी। अब, सात दिनों के पॉज़ यानी अस्थाई युद्धविराम के बाद इसराइल और हमास बहुत बड़ी सैन्य और राजनीतिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। एक तरफ जहा यह हमास के लिए यह यह बचे रहने की लड़ाई है। वही दूसरी तरफ नेतान्याहु के लिए भी यह युद्ध कम महत्वपूर्ण नही है। क्योकि उनको अपने देश में ही विरोध का सामना करना पड़ सकता है। हमास के तुलना में कही ज्यादा सैन्य शक्ति रखने वाले इसराइल के लिए अब यह युद्ध और भी अधिक पेचीदा हो गया है।
इसके तहत दक्षिणी और मध्य ग़ज़ा में ऐसे क्षेत्रों और स्थानों की स्पष्ट और सटीक रूप से जानकारी देनी चाहिए, जहां लोग सुरक्षित रहकर जंग के दायरे से बच सकते हैं। ब्लिंकन के मुताबिक़, ग़ज़ा के अंदर नागरिकों को विस्थापित होने से बचाना चाहिए। इसके लिए अस्पतालों, बिजली घरों और पानी की सुविधाओं जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों को नुक़सान से बचाना होगा। साथ ही, विस्थापित होकर दक्षिणी ग़ज़ा गए नागरिकों को जल्द से जल्द उत्तर में लौटने का विकल्प देना चाहिए। ग़ज़ा में स्थायी आंतरिक विस्थापन नहीं होना चाहिए।
जंग की शुरुआत में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन इसराइल आए थे। इसराइल को सांत्वना देने के साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि न्याय की चाह में ‘ग़ुस्से में अंधे न हो जाएं’, जैसा कि अमेरिका ने 11 सितंबर, 2001 को हुए अल क़ायदा के हमलों के बाद किया था। ब्लिंकन की टिप्प्णियों से यह पता चलता है कि बाइडन को लगता है कि जिन नेतन्याहू के साथ उनके सहज रिश्ते नहीं रहे हैं, उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी। इसराइल ने इस युद्ध के जो लक्ष्य तय किए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए ज़रूरी है कि वह अपने आक्रमण का अगला चरण दक्षिणी ग़ज़ा में हमास की मौजूदगी पर केंद्रित रखे।
लेकिन जब उसने उत्तरी ग़ज़ा पर हमला किया था तब उसने फ़लस्तीनी नागरिकों को सुरक्षा के लिए दक्षिणी ग़ज़ा की ओऱ जाने के लिए कहा था। अस्थायी युद्धविराम ख़त्म होने के कुछ घंटों बाद ही मिस्र की सीमा के साथ लगती ग़ज़ा की दक्षिणी सीमा के पास रफ़ाह में रह रहे फ़लस्तीनियों की इसराइली हवाई हमलों में जान चली गई। इसराइल दक्षिणी ग़ज़ा में इन्फ्रास्ट्रक्चर को तबाह किए बिना यह दावा नहीं कर सकता कि उसने यहां से हमास का ख़ात्मा कर दिया है। उसका मानना है कि यहां याह्या सिनवार और अन्य नेता घनी आबादी वाले इलाक़े के नीचे बनी सुरंगों में हैं। उनके साथ में हमास के लड़ाके भी हैं।
अगर इसराइल उसी रणनीति का इस्तेमाल करने जा रहा है, जो उसने उत्तरी ग़ज़ा में अपनाई थी तो हजारों और नागरिक मारे जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस पहले से ही ग़ज़ा के लोगों की दुर्दशा को भयंकर मानवीय तबाही बता चुके हैं। मिस्र और अन्य देशों को डर है कि दक्षिण में रह रहे 20 लाख आम लोगों पर इसराइली सेना का दबाव बढ़ा तो वे सिनाई मरूस्थल से उनकी सीमाओं की ओर जाने को मजबूर हो जाएंगे। इससे मध्य पूर्व के सामने फ़लस्तीनी शरणार्थियों के रूप में एक नया संकट उभर आएगा।
अगर यह माना जाए कि इसराइल ने अमेरिका से वादा किया है कि फ़लस्तीनी नागरिकों को सुरक्षा के लिए कुछ ख़ास क्षेत्रों में जाने के लिए कहा जाएगा, तो भी, जिस तरह से इसराइल टैंकों, हवाई हमलों और भारी तोपों के साथ युद्ध कर रहा है, उससे इस योजना के सफल होने के बजाय नाकाम साबित होने की आशंका ज़्यादा है और अगर इसराइल अराजकता विरोधी हल्की रणनीति अपनाते हुए बिना भारी सुरक्षा के अपने सैनिकों की मदद से ज़मीन पर आगे बढ़ता है तो अब तक के मुक़ाबले उसके कहीं ज़्यादा सैनिक हताहत होंगे।
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