तारिक़ आज़मी संग शाहीन बनारसी
वाराणसी: पुरानापुल पुल्कोहना स्थित ईदगाह में बुनकर बिरादराना तंज़ीम बाईसी के द्वारा आयोजित होने वाली अगहनी जुमा की नमाज़ के मुताल्लिक एक बैठक मोहल्ला काजिसादुल्लापूरा स्थित बुनकर बिरादराना तंजीम बायिसी के पूर्व सरदार स्व0 हाजी अब्दुल कलाम के आवास हुई। इस बैठक में तय हुआ कि 8 दिसंबर गुजिस्ता जुमे वाले रोज़ ‘मुर्री बंद’ रहेगी और अगहनी जुमे की नमाज़ हर साल की तरह अदा की जायेगी। वाराणसी में आयोजित होने वाली यह अगहनी जुमे की नमाज़ बुनकर बिरादरान की तंजीम बाईसी आयोजित करती है। जो गंगा जमुनी तहजीब यानी साझी विरासत की एक बड़ी मिसाल है।
क्यों मनाया जाता है सांझी वरासत की मिसाल अगहनी जुमा
पुरे दुनिया में अगहनी जुमा की विशेष नमाज़ केवल बनारस में मनाया जाता है, जिसको सांझी वरासत की जीती जागती मिसाल दुनिया कहती है। ये विशेष नमाज़ हिंदी के माह अगहन में पड़ने वाले जुमे के रोज़ पढ़ी जाती है। इस सम्बन्ध में तंजीम बाईसी के सरदार हाजी मोइनुद्दीन उर्फ कल्लू हाफिज़ से हुई हमारी बातचीत में जो कुछ निकल कर सामने आया उसके अनुसार अगहन के इस पवित्र महीने में पूरा बुनकर समाज अगहनी जुमे की नमाज हर साल ईदगाह में अदा करता है। ये सिलसिला लगभग 452 साल पहले से चला आ रहा है।
उन्होंने बताया कि उस वक़्त मुल्क के हालात ठीक नहीं थे। किसान तबका परेशान था क्योकि बारिश नही हो रही थी। बारिश न होने के कारण खेती नही हो पा रही थी। मुल्क में अकाल की स्थिति पड़ गई थी। तब बुनकर समाज ने अपना कारोबार बंद कर इकठ्ठा हो कर अगहन के महीने में ईदगाह में नमाज़ अदा किया, और अल्लाह से किसान भाइयो के लिए दुआ किया। इसके बाद अल्लाह का करम हुआ और जम कर बारिश हुई। किसानो में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। तब से ये परंपरा को बुनकर बिरादराना तंजीम बायीसी निभा रही है।
इस सम्बन्ध में हमसे बात करते हुवे बाईसी के सदस्य और पार्षद हाजी ओकास अंसार ने बताया कि ये अगहनी जुमा की नमाज़ गंगा जमुनी तहजीब की एक जीती जागती मिसाल है। सदियो पहले जब मुल्क के हालात ख़राब थे, सभी वर्ग के लोग परेशान और बदहाल थे, तब उस बदहाली और परेशानी को दूर करने के लिए बुनकर समाज के लोग ‘मुर्री बंद’ कर ईदगाह में नमाज़ अदा करने जुटे और उन्होंने दुआए किया। दुआ को असर हुआ और चारो तरफ खुशहाली आई। जिसके बाद किसान और बुनकर दोनों के कारोबार में बरक्कत हुई।
उन्होंने बताया कि उसके बाद ये एक परंपरा बन गई और हर वर्ष अगहन के महीने में ‘मुर्री बंद’ कर अगहनी जुमे की नमाज़ होती है। इस नमाज़ के दिन किसान भाई बरकत के लिए खुद की उगाई हुई गन्ने की फसल लेकर आते है और दूकान लगाते है। ये दुकाने हिन्दू भाइयो की होती है और नमाज़ पढ़ कर निकलने वाले नमाज़ी इस गन्ने को खरीद कर घर लेकर जाते है। यही हमारा हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब यानि साझी वरासत है। हर वर्ष इस दिन होने वाली तकरीरो में तमाम आलिम आकर तक़रीर करते है। सभी अपनी तक़रीर में आपसी भाईचारगी और मिल्लत बनाये रखने की अपील करते है। ताकि शहर बनारस के तानी बाने का रिश्ता कायम रहे।
दरअसल ये अगहनी जुमे की नमाज़ साझी वरासत की एक बड़ी मिसाल है। आपसी एकता के इस धागे में सभी हिन्दू मुस्लिम एक साथ पिरोये हुवे है। अगहनी जुमे की नमाज़ के बाद गन्ने खरीद कर घर ले जाते नमाजियों की कतार और जब नमाज़ होती है उस वक्त आसपास के दुकानदारों की ख़ामोशी। दुआख्वानी के वक्त दुकानदार भी ऐसे दिखाई देते है जैसे वह भी प्रार्थना कर रहे हो। इस प्रकार की मिसाले दुनिया में बहुत कम दिखाई देती है। सांझी वरासत की इस मिसाल को आज भी सजो कर रखने वालो को एक सलाम तो बनता है।
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