तारिक़ आज़मी
डेस्क: महज़ पांच साल के गठन के बाद ही मिजोरम की सियासत में जोरम पीपुल्स मूवमेंट पार्टी को अपार सफलता मिली है। इस पार्टी के मुखिया लालडूहोमा एक आईपीएस से सियासत में आये और अब मिजोरम के मुख्यमंत्री बनने वाले है। जोरम पीपुल्स मूवमेंट पार्टी ने मिजो नेशनल फ्रंट को करारी शिकस्त दी है और विधानसभा के 40 में से 27 सीट जीत चुकी है।
उन्होंने 1984 में सर्विस से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए और उसी साल लोकसभा के लिए चुने गए। 1988 में, कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद वे दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित होने वाले पहले सांसद बने। जेडपीएम के गठन से पहले, उन्होंने 2003 में अपनी एक और पार्टी जोरम नेशनलिस्ट पार्टी बनाई और इसके विधायक बने। जिसके बाद जेडपीएम की शुरुआत 2017 में छह छोटे क्षेत्रीय दलों और सिविल सोसायटी समूहों के एक साझा मंच देने के रूप में हुई थी।
2018 में विधानसभा चुनावों के दौरान ये तक ये मान्यता प्राप्त पार्टी नहीं थी, लेकिन इस मंच के 38 स्वतंत्र उम्मीदवार थे, जिनमें से आठ विधायक बन गए। इससे वो विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की स्थिती में आ गए। 2019 में, चुनाव आयोग ने जेडपीएम को एक पार्टी के रूप में मान्यता दी। लालडुहोमा 2021 में सेरछिप सीट से निर्दलिय से ZPM पार्टी में आधिकारिक रूप से आ गए, लेकिन इसके चलते वे फिर से ‘दलबदल’ कानून में फंस गए और विधायकी गंवानी पड़ी। इस सीट पर फिर उप-चुनाव हुआ जिसमें लालडुहोमा की जीत के साथ जेडपीएम का पहला विधायक विधानसभा में पहुंचा।
चुनावों में जोरम पीपुल्स मूवमेंट्स और लालडूहोमा ने कांग्रेस और MNF दोनों के खिलाफ दशकों की सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाया। उन्होंने MNF पर बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA का हिस्सा बनकर अपना क्षेत्रीय चरित्र खो देने का आरोप लगाया। इस बीच मणिपुर हिंसा से आहात कुकी समुदाय भाजपा से नाराज़ था तो साथ ही मुख्यमंत्री से भी नाराज़ था। जिसका पूरा फायदा लालडूहोमा ने उठाया। उन्होंने चुनाव में किसानो के मुद्दे, भ्रष्टाचार के मुद्दे और युवाओं के मुद्दे को मुख्य बनाया। आखिर उनका यह चुनावी संघर्ष सफलता के कगार पर पहुच गया।
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