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नालियों में गोबर भरने वाले भैंस डेरी संचलको से परेशान नागरिकों ने स्थानीय सभासद व पुलिस से लगाई मदद की गुहार

सरताज खान

लोनी: लोनी नगर पालिका क्षेत्र की अधिकांश कॉलोनियो में भैंस दूध डेरी संचालको द्वारा अपने पशुओं का गोबर नाले-नालियों में बाहने की समस्या का गंभीर प्रकरण एक बार फिर खुलकर सामने आया है। शुक्रवार को वार्ड 41 के दर्जनों नागरिकों ने गोबर से अटे खड़े नाले-नालियों की समस्या समाधान को लेकर जहां क्षेत्रीय सभासद से गुहार लगाई है वहीं उन्होंने नालियों में गोबर बहाने का विरोध करने पर उनके संचालको द्वारा गाली गलौज, मारपीट करने व जान से मारने की धमकी दिए जाने का आरोप लगाते हुए संबंधित थाने पर लिखित शिकायती पत्र दिया है।

नाले-नालियों में गोबर बहाने की समस्या से दुखी आ चुके वार्ड की बलराज नगर व रणबीर नगर कॉलोनी वासियों ने सभासद अंकुश जैन को दिए गए अपने शिकायती पत्र में उल्लेख किया है कि उनकी कॉलोनियों में अनिल जाट, मंजू, काले पंडित व सोमपाल डेरी वाले आदि अपने पशुओं का तमाम गोबर नालियों में बहा देते हैं। गोबर से अटे खड़े नाले-नालियों की पानी निकासी ठप हो जाने से उनका गंदा पानी कॉलोनी के मुख्य मार्ग पर भरा रहता है। नतीजन जहां आम नागरिकों का वहा से आना-जाना दुभर बना हुआ है वहीं दूसरी ओर दुर्गंध भरे इस पानी के कारण वहा मच्छरों की फौज पनपती रहती है जिससे विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारी का खतरा बना रहता है। इन डेरी संचालकों की उक्त अनियमित कार्य प्रणाली का विरोध किया जाता हैं तो यह गाली-गलौज व मारपीट पर उतरु हो जाते हैं। यही नहीं यह इस बाबत कोई कार्रवाई करने पर जानसे मारने की धमकी देते है।

पीड़ित नागरिकों ने सभासद अंकुश जैन से उक्त मामले में आवश्यक कार्रवाई किए जाने की गुहार लगाई है। सभासद ने जहां प्रकरण में नगर पालिका के संबंधित अधिकारियों से मिलकर समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया है वहीं दूसरी ओर अपनी शिकायत को लेकर थाने पहुंचे लोगों की शिकायत के मामले का स्थानीय थाना प्रभारी को संज्ञान देते हुए सभासद उन्हे आवश्यक कार्रवाई किए जाने के लिए कहा है।

कार्यवाही के नाम पर होती है खानापूर्ति, ठोस कार्रवाई की है जरूरत

गौरतलब हो कि लोनी नगर पालिका क्षेत्र की अधिकांश कॉलोनी में भैंस डेयरी संचलको द्वारा अपने पशुओं का गोबर नाले नालियों में बहा दिया जाता है जो आम नागरिकों के लिए एक पहाड़ जैसी समस्या बनी हुई है। या यूं कहे कि वह नरकीय जीवन जीने को मजबूर है। ऐसा भी कतई नहीं है कि उक्त समस्या की बाबत संबंधित विभागीय अधिकारियों/कर्मचारियों को शिकायत ना की जाती हो मगर या तो उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता है या यदि कभी कोई कार्रवाई अमल में लाई भी जाती है तो वह मात्र “ऊंट के मुंह में जीरा” वाली कहावत को चरितार्थ करने जैसी साबित होती है। सच तो यह है कि जबतक संबंधित विभाग द्वारा उक्त गंभीर प्रकरण में एक योजना के तहत कोई ठोस कार्रवाई अमल में नहीं लाई जाएगी तबतक ऐसे गाय और भैंस दूध डेरी संचालको पर अंकुश लगा पाना मुश्किल काम है जो क्षेत्र वासियों के बीच कभी भी किसी बड़ी अनहोनी का कारण बन सकता है।

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