तारिक़ आज़मी
बिलकिस बानो……! यह नाम सुनते ही आपके ज़ेहन में रो रही एक महिला की तस्वीर उभर आती होगी। अमूमन नारी को नाज़ुक समझने वालो के लिए बिलकिस बानो ने खुद को यह साबित कर दिया कि नारी कमज़ोर नही होती है, बल्कि संघर्ष और मजबूती का नाम नारी है। शायद बिलकिस बानो जैसी मजबूत महिलाओं के लिए ही ‘मर्दानी’ शब्द बना होगा। संघर्ष की एक ऐसी मिसाल जिसके आगे फौलाद भी पिघल जाए वह नाम है बिलकिस बानो।
गुजरात दंगो की शिकार बिलकिस बानो ने दो दशक तक इन्साफ का संघर्ष किया। 27 फ़रवरी 2002 को ‘कारसेवकों’ से भरी साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में गोधरा के पास आग लगा दी गई थी। इसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। हर तरफ दंगाईयो ने कोहराम मचा रखा था। क़त्ल-ए-आम के इस दौर में दंगाइयों के हमले से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा और 15 दूसरे लोगों के साथ गांव से भाग गई थीं। उस वक्त वह पांच महीने की गर्भवती भी थीं।
बकरीद के दिन दंगाइयों ने दाहोद और आसपास के इलाकों में कई घरों को जला डाला था। तीन मार्च, 2002 को बिलकिस का परिवार छप्परवाड़ गांव पहुंचा और खेतों मे छिप गया। इस मामले में दायर चार्जशीट के मुताबिक़ 12 लोगों समेत 20-30 लोगों ने लाठियों और जंजीरों से बिलकिस और उसके परिवार के लोगों पर हमला किया। बिलकिस और चार महिलाओं को पहले मारा गया और फिर उनके साथ रेप किया गया। इनमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं। इस हमले में रंधिकपुर के 17 मुसलमानों में से सात मारे गए। ये सभी बिलकिस के परिवार के सदस्य थे। इनमें बिलकिस की भी बेटी भी शामिल थीं।
इसके बाद बिलकिस को गोधरा रिलीफ़ कैंप पहुंचाया गया। वहां से मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया। थाने में शिकायत दर्ज होने के बाद जांच शुरू हुई, यहाँ से बिलकिस की इन्साफ के लिए जंग शुरू हुई और सबसे बड़ा झटका बिलकिस को तब लगा जब गुजरात पुलिस ने सबूतों के अभाव में केस ख़ारिज कर दिया। इसके बाद बिलकिस मानवाधिकार आयोग पहुंचीं और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने क्लोज़र रिपोर्ट को ख़ारिज कर सीबीआई को मामले की नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया।
सीबीआई ने चार्ज़शीट में 18 लोगों को दोषी पाया था। इनमें पांच पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी शामिल थे जिन पर अभियुक्त की मदद करने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था। बिलकिस के साथ किस हद तक नाइंसाफी हुई और कितना संघर्ष करना पड़ा होगा उसका एक उदहारण सीबीआई की चार्जशीट में है जिसमे सीबीआई ने कहा कि मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम ठीक ढंग से नहीं किया गया ताकि अभियुक्तों को बचाया जा सके। सीबीआई ने केस हाथ में लेने के बाद शवों को क़ब्रों से निकालने का आदेश दिया। सीबीआई ने कहा कि पोस्टमॉर्टम के बाद शवों के सिर अलग कर दिए गए थे ताकि उनकी पहचान न हो सके।
बात यही नही रुकी, सीबीआई के चार्जशीट के बाद बाद बिलकिस बानो को जान से मारने की धमकी मिलने लगी। धमकियों की वजह से उन्हें दो साल में बीस बार घर बदलना पड़ा। बिलकिस ने इन्साफ के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। धमकियां मिलने और इंसाफ़ न मिलने की आशंका को देखते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपना केस गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में शिफ़्ट करने की अपील की। मामला मुंबई कोर्ट भेज दिया गया। सीबीआई की विशेष अदालत ने लगभग 6 साल तक बिलकिस बानो के संघर्ष के बाद जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी क़रार दिया। इन लोगों पर गर्भवती महिला के रेप, हत्या और गैरक़ानूनी तौर पर एक जगह इकट्ठा होने का आरोप लगाया गया था।
सात लोगों को सबूत के अभाव में छोड़ दिया गया। एक अभियुक्त की मुक़दमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। 2008 में फ़ैसला देते हुए सीबीआई की अदालत ने कहा कि जसवंत नाई, गोविंद नाई और नरेश कुमार मोढ़डिया ने बिलकिस का रेप किया जबकि शैलेश भट्ट ने सलेहा का सिर ज़मीन से टकराकर मार डाला। दूसरे अभियुक्तों को रेप और हत्या का दोषी करार दिया गया था। मगर इसके बाद 2022 में बिलकिस के साथ दरिंदगी करने वालों को रिहाई दे दिया गया। जिसके खिलाफ बिलकिस बानो ने दुबारा अदालतों का रुख किया और आखिर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी दोषियों को दुबारा जेल भेजने का आदेश दिया और राज्य सरकार के रिहाई का आदेश खारिज कर दिया।
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