मिस्बाह बनारसी
डेस्क: इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस (आईएचसी) ने विध्वंस की कार्रवाई का सामना कर रही नई दिल्ली की मध्यकालीन सुनहरी मस्जिद के लिए आवाज उठाई है। द हिंदू के मुताबिक, आईएचसी ने मस्जिद न ढहाए जाने की मांग की है। इस आशय का एक प्रस्ताव आईएचसी द्वारा अपने सम्मेलन में पारित किया गया है।
इतिहासकारों की प्रमुख संस्था ने मस्जिद के पक्ष में एक बयान जारी करते हुए कहा, ‘भारतीय इतिहास कांग्रेस नई दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) से दृढ़ता से आग्रह करती है कि वह इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संरचना को हटाने के अपने प्रस्ताव पर आगे न बढ़े।’ यह प्रस्ताव एनडीएमसी द्वारा जारी एक सार्वजनिक अधिसूचना के जवाब में आया है, जिसमें यातायात की स्थायी गतिशीलता सुनिश्चित करने के लिए सुनहरी बाग मस्जिद को ध्वस्त करने का आवेदन विरासत संरक्षण समिति (एचसीसी) को भेजे जाने की बात कही गई थी।
ध्वस्तीकरण के इस प्रस्ताव को लेकर भारतीय इतिहास कांग्रेस ने आपत्ति जताते हुए कहा था, ‘सुनहरी बाग मस्जिद एक मुगलकालीन संरचना है, जो अभी भी इस्तेमाल में है। एकीकृत भवन उपनियमों के अनुलग्नक II, खंड 1।12, ग्रेड III भवनों की परिभाषाओं के अनुसार, इस श्रेणी में शामिल इमारतें ‘शहर के परिदृश्य के लिए महत्वपूर्ण’ हैं; जो वास्तुशिल्प सौंदर्य, समाजशास्त्रीय रुचि को जागृत करती हैं, इलाके के चरित्र को निर्धारित करने में योगदान देती हैं और क्षेत्र के एक विशेष समुदाय की जीवनशैली का प्रतिनिधि हो सकती हैं। वास्तव में, हाल के दिनों में हमारी मध्ययुगीन वास्तुकला विरासत को नष्ट करने के लगातार प्रयास हो रहे हैं।’
इस संस्था को लगता है, ‘शहर के इतिहास के एक कालखंड की निशानी के रूप में इसके मूलभूत महत्व के अलावा, इसके बाद इसका नई दिल्ली के निर्माण के दौरान का इतिहास भी प्रासंगिक है। गोल चक्कर पर इसका स्थान नई दिल्ली की नगरीय योजना की स्मृतियां जिंदा रखता है।’ आईएचसी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार्य बताते हुए मूर्खतापूर्ण करार दिया। संस्था ने एक लिखित बयान में कहा, ‘सभी इमारतें, चाहे उनकी प्रकृति कुछ भी हो, यदि 200 वर्ष से अधिक पुरानी हैं, तो उन्हें स्मारक संरक्षण अधिनियम की शर्तों के तहत सख्ती से संरक्षित किया जाना चाहिए और यदि ये धार्मिक संरचनाएं हैं, तो उनके चरित्र में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए; और, जहां पूजा बंद हो गई है, उसे बहाल नहीं किया जाना चाहिए।’
इतिहासकारों की संस्था ने कहा कि ‘ऐसा लगता है कि यह स्मारक संरक्षण अधिनियम और अन्य मौजूदा कानूनों द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को सौंपा गया दायित्व भी है। इसलिए यह सभी संबंधित पक्षों पर कर्तव्य है कि वह निर्धारित सिद्धांत का सख्ती से पालन करें और किसी भी धार्मिक या धर्मनिरपेक्ष स्मारक की संरचना और चरित्र को बदलने की कोशिश न करें।’ आईएचसी ने आगे कहा, ‘यह अपील मथुरा और वाराणसी में मस्जिदों के संबंध में काफी प्रचार-प्रसार के तहत हो रहीं कुछ न्यायिक कार्यवाहियों को देखते हुए विशेष रूप से आवश्यक है।’
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