आदिल अहमद
डेस्क: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता की इस दलील पर सवाल उठाया कि सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम में संसद द्वारा 1981 में किए गए संशोधन को स्वीकार नहीं किया है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने बुधवार को कहा कि सरकार ऐसा कोई रुख नहीं अपना सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘भले ही कोई भी सरकार भारत संघ के मुद्दे का प्रतिनिधित्व करती हो, संसद का मामला शाश्वत, अविभाज्य और अटूट है’ और सरकार को संशोधन के साथ खड़ा होना होगा।
मालूम हो की 1967 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार नहीं है क्योंकि इसे केंद्रीय विधायिका द्वारा अस्तित्व में लाया गया था। हालांकि, 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन द्वारा अल्पसंख्यक दर्जा बहाल किया गया था, लेकिन इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई, जिसने जनवरी 2006 में संशोधन रद्द कर दिया। एएमयू और यूपीए सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की। लेकिन एनडीए सरकार ने 2016 में शीर्ष अदालत को सूचित किया कि वह पिछली सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले रही है।
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