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ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण: मुस्लिम पक्ष की याचिका किया अदालत ने स्वीकार, कल सुबह भी जारी रहेगी हाई कोर्ट में सुनवाई, पढ़े अदालत ने क्या दिया नसीहत और किस पक्ष ने क्या रखा अपनी दलील

तारिक़ आज़मी

डेस्क: ज्ञानवापी मस्जिद तहखाने में मंदिर पक्ष को पूजा का अधिकार देने के आदेश के मुखालिफ ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इन्तेज़मियां मसाजिद कमेटी के जानिब से दाखिल याचिका पर हाई कोर्ट इलाहाबाद में आज सुनवाई हुई। आज की सुनवाई में अदालत ने सभी पक्षों को सख्त नसीहत बयानबाजी न करने के लिए दिया है। आज बेंच ने मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर संशोधन अर्जी को मंजूर कर लिया, मामले पर बुद्धवार को सुबह 10 बजे फिर सुनवाई होगी।

सभी पक्षों को बतौर नसीहत अदालत ने वकीलों से कहा कि ‘आप लोग टीवी पर बाजीमारें या स्टेटमेंट मत दीजिए।  मामला तय कैसे जाए फिर कहिए। एक बार मामला अदालत में विचाराधीन होने के बाद उस पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए।  आपके बड़े-बड़े लोग स्टेटमेंट दे रहे हैं।  उन्हें मना करिए।’ अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि ‘आपके सूट मामले को उलझा रहे हैं। मूल मुद्दे पर निर्णय नहीं हो पा रहा है। ये सब पब्लिसिटी स्टंट है।’

आज पेश हुई दलीलों में मस्जिद कमेटी के जानिब से पेश हुवे वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी अंतरिम प्रार्थना के बारे में अदालत को अवगत करारे हुवे कहा कि एक बार मुकदमा मंजूर हो जाए तभी अंतरिम आवेदन की इजाजत दी जा सकती है। जिस पर अदालत ने कहा कि 17 जनवरी को तय आवेदन पर एक बार निस्तारण होने के बाद उस पर दोबारा कैसे विचार किया जा सकता है? इस पर अधिवक्ता  नकवी ने 17 जनवरी का आदेश पढ़कर अदालत को सुनाया।

एड0 नकवी ने कहा 9सी का निपटारा 17 जनवरी को कर दिया गया। क्या जज के पास उस आवेदन पर फैसला करने की कोई शक्ति है, जिसका निपटारा पहले ही हो चुका है। कानून पर विचार किए बिना आदेश पारित किया गया। जिस तरह से डीएम को आदेश दिया गया, उसे 7 घंटे से पहले कैसे लागू किया गया। इस पर अदालत ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि कब्जा रिसीवर ने ले लिया था। क्या नमाज पढ़ी जा रही थी। क्या याचिकाकर्ता ने इस बात से इनकार किया है कि उस जगह पर नमाज नहीं पढ़ी जाती थी? इस पर अधिवक्ता नकवी ने अदालत में दलील पेश करते हुवे कहा कि आवेदन की सामग्री को पढ़ रहा हूं जो केवल कब्जे के बारे में बात करता है न कि किसी द्वारा की गई पूजा के बारे में, यह स्थान याचिका के निरंतर कब्जे में है।

दीन मोहम्मद बनाम सम्राट मामले में पक्षकारों की स्थिति को लेकर चर्चा भी हुई। जिस पर अदालत ने कहा प्रतिवादी के कब्जे में कभी छेड़छाड़ नहीं की गई, लेकिन यह याचिकाकर्ता की दलीलों के खिलाफ है। 1993 किसी ने पूजा करने से नहीं रोका, इस पर एड0 नकवी ने तथ्य पेश करते हुवे अपनी दलील में कहा कि डीएम को रोका गया, वाराणसी में कानून-व्यवस्था बनाए रखने को कहा गया। एक डीड है जिसमें उत्तरदाता कह रहे हैं कि वे कोई प्रार्थना नहीं कर रहे हैं। 31 साल के बाद यह मुकदमा दायर करने का कोई अवसर नहीं है।

इस दरमियान वाद संख्या 610/1991 की विवेचना की गई। एड0 नकवी ने दलील पेश किया कि एक व्यक्ति ने अपने अधिकारों को त्याग दिया है तो वह 2023 में इसका दावा कैसे कर सकता है। मुकदमा अक्टूबर 2023 में दायर किया गया था और इसे 16 अक्टूबर के आदेश के माध्यम से जिला न्यायाधीश (डीजे) को स्थानांतरित कर दिया गया था। जिला न्यायाधीश न्यायिक अनियमितता कर रहे हैं। जिस पर अदालत ने कहा कि पक्षकार आवेदन के संबंध में, मुद्दों को अभी तक तैयार नहीं किया गया है क्योंकि यह उसी से संबंधित है। इस पर दलील देते हुवे एड0 नकवी ने कहा कि वादी में आरोप लगाया गया है कि कुछ अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ कुछ आरोपों की सराहना नहीं की जा सकती है।  श्री रस्तोगी के पक्षकार आवेदन पर 17 जनवरी के आदेश में चर्चा की गई थी। एड0 नकवी ने 17 जनवरी का आदेश फिर से पढ़ा और दलील दिया कि आदेश 7 नियम 11, 31 जनवरी को  ऑपरेटिव हिस्से में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि डीएम को आदेश कैसे दिया जाएगा। प्रमाणित प्रति के बिना डीएम मौके पर कैसे पहुंचे?

एड0 नकवी के इस दलील पर अदालत ने पूछा ‘कैसे साबित करें कि संपत्ति पर आपका कब्ज़ा था?’ इसके जवाब में एड0 नकवी ने कहा कि वादी ने यही कहा है। विवादित संपत्ति प्रतिवादी के कब्जे में नहीं है। डीएम ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया। डीएम को आदेश के बारे में कैसे पता चला। डीएम ने अवमानना की। इस पर अदालत ने कहा कि ‘क्या मुकदमे में पारित कोई अंतरिम आदेश अवमानना हो सकता है, यह देखना होगा।‘ इसके बाद मोहम्मद असलम उर्फ़ भूरे बनाम यूपी राज्य कानून और व्यवस्था की स्थिति के बारे में बात करते हुवे एड0 नकवी ने फैसला पढ़ा। जिस पर अदालत ने सवाल किया कि ‘क्या सुप्रीम कोर्ट संपत्ति पर मुकदमा चलाने पर रोक लगाता है?’  बेंच ने यह भी पूछा कि क्या 17 जनवरी के आदेश के बाद उत्तरदाताओं द्वारा कोई और आवेदन दायर किया गया था।

इस पर एड0 नकवी ने कहा कि 1993 की घटना को 1991 के मुकदमे में कभी रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। अदालत का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर मुद्दे तय होने के बाद फैसला किया जाएगा। एड0 नकवी ने कहा कि निचली अदालत बुनियादी कानून की सराहना करने में विफल रही। जिस पर अदालत ने कहा कि मुझे दिखाये कि आपका कब्ज़ा है, मैं आपकी अपील स्वीकार कर लूंगा। नकवी जी, दीन मोहम्मद केस से आपको कोई मदद नहीं मिलेगी।’ इस पर एड0 नकवी ने अपनी दलील रखते हुवे कहा कि 1993 के संबंध में कोई प्रशासनिक आदेश नहीं है। मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता पुनीत गुप्ता ने वैधता का हवाला देते हुए आदेश पर सवाल उठाए। उन्होंने दलील दिया कि निचली अदालत द्वारा पारित आदेश बिना कारण के है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

इस पर हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने दलील देते हुवे कहा कि यहां दिए गए तर्कों को अपील में प्रस्तुत नहीं किया गया है और अपीलकर्ता द्वारा अंतिम तिथि के आदेश का भी पालन नहीं किया गया है। 31 जनवरी के आदेश का आधार 17 जनवरी है। जिस पर अदालत ने जैन से सवाल पूछा कि जिला जज ने किस आवेदन पर आदेश पारित किया? जिसका जवाब देते हुवे जैन ने कहा कि 17 जनवरी के आदेश को कोई चुनौती नहीं दी गई। आवेदन 9सी की अनुमति के संबंध में कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई। 17 जनवरी के बाद कोई आवेदन दायर नहीं किया जाना था। दोनों पक्षों को सुनने के बाद निर्देश जारी किया गया। 9सी आवेदन पर 17 जनवरी को फैसला किया गया और एक रिसीवर नियुक्त किया गया।

इस पर अदालत ने कहा कि पहली प्रार्थना मंजूर कर ली गई, क्या न्यायाधीश ने दूसरी प्रार्थना पर स्वत: संज्ञान लिया। क्या मौखिक प्रस्तुति पर कोई आदेश पारित किया जा सकता है? जिस पर एड0 जैन ने कहा कि जिला न्यायाधीश द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई की गई और फिर उन्होंने आदेश पारित किया है। इस पर अदालत ने सवाल किया कि ‘क्या निस्तारित आवेदन पर आदेश पारित किया जा सकता है?’ इसके प्रतिउत्तर में एड जैन ने कहा कि इस शक्ति का प्रयोग एक न्यायाधीश द्वारा धारा 151 सीपीसी के तहत किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि क्या सोमनाथ व्यास ने 1993 की घटना के बाद 1991 के मुकदमे में संशोधन किया था।।। आपके अधिकार समाप्त हो गए हैं, फिर आप मुकदमा कैसे बरकरार रख सकते हैं? आरोप राज्य सरकार के ख़िलाफ़ हैं लेकिन वे मुकदमे में पक्षकार नहीं हैं। आपके सूट मामले को उलझा रहे हैं। मूल मुद्दे पर निर्णय नहीं हो पा रहा है। ये सब पब्लिसिटी स्टंट है। इस मामले को लेकर कितने मुकदमे लंबित हैं? इन सभी मुद्दों को एक साथ जोड़ देना चाहिए। इस पर एड0 जैन ने कहा कि  यह लगातार गलत हो रहा है, इसीलिए नया मुकदमा दायर किया गया है। इस पर अदालत ने कहा कि वाद में अपीलकर्ता को सामने नहीं लाया गया है। संपत्ति राज्य के नियंत्रण में है।

बेंच ने मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर संशोधन अर्जी को मंजूर कर लिया। मामले पर कल सुबह 10 बजे सुनवाई होगी। अदालत ने वकीलों से कहा कि आप लोग टीवी पर बाजी मारें या स्टेटमेंट मत दीजिए।  मामला तय कैसे जाए फिर कहिए।  एक बार मामला अदालत में विचाराधीन होने के बाद उस पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए। आपके बड़े-बड़े लोग स्टेटमेंट दे रहे हैं। उन्हें मना करिए।

अदालत ने एड जैन को कहा कि यह आपके पिता की जानकारी में था लेकिन उन्होंने मुकदमे में कोई संशोधन दायर नहीं किया।  अब 31 साल बाद किस बात ने आपको मुकदमा दायर करने के लिए प्रेरित किया? आपने काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के पक्ष में अपना अधिकार त्याग दिया है। आपका सूट कैसे रखरखाव योग्य है? जिस पर जैन ने कहा कि मैं केवल यह पूछ रहा हूं कि आखिरकार जब काशी विश्वनाथ ट्रस्ट का कब्जा हो जाए, तो मुझे भी पूजा करने की अनुमति दी जाए। इस पर अदालत ने कहा कि आपके मुकदमे अधिक जटिलताएँ पैदा कर रहे हैं।  आपकी प्रार्थना कैसे स्वीकार की जा सकती है? कितने मुकदमे लंबित हैं? जिस पर जैन ने कहा कि 8 याचिका है मेरे तरफ से पेंडिंग है।

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