ईदुल अमीन
डेस्क: ज्ञानवापी मस्जिद के चल रहे वाद में से एक वाद की सुनवाई करते हुवे जिला जज अदालत द्वारा मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा पाठ शुरू करवाने के आदेश और इसके बाद प्रशासन द्वारा आदेश आते ही रातो रात पूजा पाठ शुरू करवाने पर मुस्लिम संगठनो ने सवाल उठाये है और अपनी नाराजगी दर्ज करवाया है। इस क्रम में आज आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और अन्य मुस्लिम संगठनो के नेताओं ने संयुक्त पत्रकार वार्ता कर इसकी निंदा किया है।
संयुक्त बयान में कहा गया है कि ‘इसी तरह आरक्योलोजीकल सर्वे की रिपोर्ट का भी हिंदू पक्ष ने प्रेस में एकतरफ़ा तौर पर रहस्योदघाटन करके समाज में बिगाड़ पैदा किया है हालाँकि अभी अदालत में न तो इस पर कोई बहस हुई है और न ही उस की पुष्टि। अभी इस रिपोर्ट की हैसियत मात्र एक दावे की है। ज़िला अदालत के आदेश को प्रशासन ने जिस जल्दबाज़ी में लागू किया उस का स्पष्ट मक़सद मुस्लिम पक्ष के इस अधिकार को प्रभावित करना था कि वो हाईकोर्ट से तुरंत कोई रिलीफ़ न हासिल कर सके। इसी तरह हमारा मानना है कि ज़िला अदालत को भी मुस्लिम पक्ष को अपील का मौक़ा देना चाहिए था जो कि उस का क़ानूनी अधिकार था।‘
इस संयुक्त बयान में कहा गया है कि ‘समस्या केवल ज्ञानवापी मस्जिद तक सीमित नहीं है, बल्कि जिस तरह मथुरा की शाही ईदगाह, दिल्ली की सुनहरी और अन्य मस्जिदों और देश भर में फैली हुई अनगिनत मसजिदों और वक़्फ़ की जायदादों पर लगातार निराधार दावे किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट इबादतगाहों से जुड़े 1991 के क़ानून पर चुप्पी साधे हुई है, उसने देश के मुसलमानों को गहरी चिंता में डाल दिया है। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अदालतें समाज के पीड़ित और प्रभावित लोगों के लिए आख़िरी सहारा होती हैं, लेकिन अगर वो भी पक्षपातपूर्ण रवैय्या अपनाने लगें तो फिर इन्साफ़ की गुहार किस से लगाई जाएगी।‘;
बयान में कहा गया है कि ‘ऐसा लगता है कि सुप्रीमकोर्ट के सीनियर वकील श्री दुषयंत दवे जी की अदालतों के बारे यह राय सही है कि देश की अदालतें बहुसंख्यक वर्ग की मुहताज बनती जा रही हैं और वे प्रशासन द्वारा क़ानूनों के खुले उल्लंघन पर मूक दर्शक बनी रहती हैं। एक बहुत ही सीनीयर वकील का देश की न्याय व्यवस्था पर यह गंभार टिप्पणी एक विध्वंसक भविष्य की ओर इशारा कर रही है। अदालतों के एक के बाद एक कई फ़ैसले देश के अल्पसंख्यकों और पीड़ित वर्गों के इसी एहसास को बल दे रहे हैं जिसकी अभिव्यक्ति वकील महोदय ने उपर्युक्त शब्दों में की है।‘
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