तारिक़ आज़मी
वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद के मुताल्लिक जिला जज अदालत के द्वारा आये फैसले, जिसमे मस्जिद के दक्षिणी तहखानो को व्यास जी का कमरा घोषित कर पूजा की अनुमति दिया गया था, और जिला प्रशासन द्वारा आनन फानन में तहखाने को खुलवा कर फैसला आने के दिन ही देर रात से पूजा शुरू करवा दिया गया था। इसको लेकर मुस्लिम समाज में नाराज़गी आज देखने को मिली।
इस फैसले और प्रशासनिक आनन फानन से नाराज़ आलिम-ए-दींन और ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इन्तेज़ामियां मसाजिद कमेटी के आह्वाहन पर आज मुस्लिम समुदाय हेतु ‘बंद’ का एलान हुआ था। मुफ़्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने यह बंद की घोषणा किया था। जिसके बाद दारुल उलूम देवबंद ने भी बंद का समर्थन किया था।
बंद हुई शहर की रफ़्तार
इस बंद का व्यापक असर मुस्लिम बाहुल्य इलाको में दिखा। पुरे शहर और ग्रामीण इलाको में कोई भी मुस्लिम समाज के लोगो की दुकाने नही खुली थी। हाल ऐसा था कि चाय पान तक की दुकाने मुस्लिम समाज के लोगो ने बंद रखा। यही नही इस दरमियान नमाज़-ए-जुमा से लेकर नमाज़-ए-असर तक मुस्लिम समाज के लोगो ने दुआख्वानी किया। यह दुआख्वानी घरो में महिलाओं ने भी किया।
इस दौरान हर एक मस्जिद में विशेष प्रार्थना का आयोजन हुआ था। मस्जिदों में मुस्लिम समाज के लोगो ने ‘आयत-ए-करीमा’ का विर्द किया। यह दुआख्वानी दोपहर बाद नमाज़ जुमा शुरू हुई और शाम नमाज़-ए-असर तक जारी रही। तस्वीरे गवाह है कि दुआख्वानी में मुस्लिम समाज के लोगो ने किस तरह बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
मुर्री भी रही बंद
आज बुनकर बिरादरान ने मुर्री भी बंद रखा। पहली बार ऐसा हुआ कि बुनकर तंजीमो के समर्थन के बाद मुर्र बंद होने के साथ साथ बुनकर समुदाय आज कारोबार के अन्य कामो से भी विरत रहा और गद्दी भी बंद रखा। गद्दी बंद होने से बुनकर इलाकों की चहल पहल सन्नाटे में तब्दील हो गई थी।
बनारस ही नही मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर में भी दिखा बंद का असर
इस बंद का असर केवल बनारस में ही नही बल्कि आसपास के जनपदों में भी मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रो में व्यापक स्तर पर दिखाई दिया। जिसमे मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, भदोही, मिर्ज़ापुर और चंदौली से मिल रहे समाचारों के अनुसार मुस्लिम समाज के लोगो में बंद का व्यापक असर दिखाई दिया।
बोले एसएम यासीन ‘ये जुडिशियल डकैती है’
इस मुताल्लिक ज्ञानवापी मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इन्तेज़मियां मसाजिद कमेटी के जॉइंट सेक्रेटरी एसएम यासीन ने आज सुबह सोशल मीडिया पर एक सन्देश देकर कहा है कि ‘वैसे तो बाबरी मस्जिद के मुकदमात का फ़ैसला नवंबर 2019 में देते समय वह पांच जिनको लोग स्टेज पर “माई लार्ड या यौर वरशिप” कह कर पुकारते हैं, उन्हों ने न्याय की गरिमा को सबसे निम्न स्तर पर लाने की शुरूआत कर इनामात हासिल किया। उस मुल्क में जहाँ “अदले जहांगीरी” मशहूर हुआ करती थी, इस पतन का सिलसिला शुरू हो गया और आज भारत में उपस्थित “चाओज़” की ज़िम्मेदारी भी न्याय तंत्र ही है।‘
उन्होंने लिखा कि ‘हमारी मस्जिद ज्ञानबाफ़ी का मौजूदा संकट भी इसी न्याय तंत्र की देन है। एएसआई सर्वे का आदेश पहला कदम था। जिसे हमने ‘जुडीशियल कारसेवा’ का नाम दिया था। उसके बाद “जुडीशियल डकैती” भी हुई। जब एक “यौर वरशिप” लगभग दो वर्ष तक सुनने के बाद तीन दिन बाद 28/8/23 को निर्णय देने वाले थे, मुख्य “यौर वरशिप” ने स्वयम न्याय अपने हाथ में ले लिया। पहले ही दिन भरी सभा में पूछ लिया कि क्या “आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट” होसकता है। हम न्याय प्रिय लोगों को तभी एहसास हो गया कि अब डाका ज़रूर पड़ेगा।
एसएम यासीन ने कहा कि ‘आखिरकार 31 जनवरी रिटायर्मेंट से चन्द घंटे पूर्व “जुडीशियल डाका” का आदेश पारित हो ही गया। रात के अन्धेरे में वह बैरिकेडिंग भी कट गई। उन तमाम संवैधानिक अधिकारीगण की देख रेख में जिनहोंने सर्वोच्च न्यायालय में शपथ-पत्र देकर इस बैरिकेडिंग की बुनियाद रखी थी, और रात के अंधेरे में ही मूर्तियों को मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में संवैधानिक अधिकारियों के दिशा निर्देश पर दाखिला मिला। पूजा पाठ की घंटियां बजीं। यह भारतीय न्याय तंत्र के इतिहास का बदतरीन दिन भी इन बूढ़ी आंखों ने देखा। संविधान और संविधान पर विश्वास रखने वालों का बहुत बड़ा इम्तिहान है।‘
एसएम यासीन ने कहा कि ‘हम न्याय की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट भेजकर इतने महत्वपूर्ण विषय पर अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन यहां हम उन संविधान की शपथ लेने वालों से ज़रूर पूछना चाहेंगे कि तिलभांडेशवर मस्जिद में नमाज़ को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अमल दरामद में भी इतनी ही तत्परता दिखाते और रिटायर्मेंट से पूर्व जिला जज मुख्तार अंसारी की याचिका पर आदेश दे दिए होते और ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार से सटे कब्रों पर बन्द उर्स शुरू हो जाता। अगर एसा होता तो हमें इन सब की मानसिकता का परिचय कैसे होता और आज हम अपनी न्याय प्रणाली का मातम न मना रहे होते। संविधान और न्याय तंत्र के पतन का मातम मनाने को हम मजबूर है।’