तारिक खान
डेस्क: चुनाव आयोग ने गुरुवार, 14 मार्च को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक कर दी है। इसके बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर एक पोस्ट के जरिए भारतीय जनता पार्टी पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। जयराम रमेश ने X पर लिखा, ‘1,300 से अधिक कंपनियों और व्यक्तियों ने चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा दिया है, जिसमें 2019 से बीजेपी को 6,000 करोड़ से अधिक का दान शामिल है।’
जयराम रमेश ने दावा किया है कि ऐसी कई कंपनियों के मामले हैं जिन्होंने चुनावी बॉन्ड दान किया है और इसके तुरंत बाद सरकार से भारी लाभ प्राप्त किया है।
जयराम रमेश ने बीजेपी पर हफ्ता वसूली का भी आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, “बीजेपी की हफ्ता वसूली रणनीति सरल है- ईडी/सीबीआई/आईटी के माध्यम से किसी लक्ष्य पर छापा मारना, और फिर कंपनी की सुरक्षा के लिए हफ्ता (“दान”) मांगना।” उन्होंने कहा कि टॉप 30 दानदाताओं में से कम से कम 14 पर छापे मारे गए हैं।
3। “रिश्वत लेने का नया तरीका”
जयराम रमेश ने बताया कि आंकड़ों से एक पैटर्न बनता दिख रहा है, जहां केंद्र सरकार से कुछ मदद मिलने के तुरंत बाद कंपनियों ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से एहसान चुकाया है।
4। “शेल कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग”
जयराम रमेश ने कहा कि ‘चुनावी बॉन्ड योजना के साथ एक बड़ा मुद्दा यह है कि इसने यह प्रतिबंध हटा दिया कि किसी कंपनी के मुनाफे का केवल एक छोटा प्रतिशत ही दान किया जा सकता है, जिससे शेल कंपनियों के लिए काला धन दान करने का रास्ता खुल गया। ऐसे कई संदिग्ध मामले हैं, जैसे कि क्विक सप्लाई चेन लिमिटेड द्वारा 410 करोड़ रुपये का दान दिया गया है, एक कंपनी जिसकी पूरी शेयर पूंजी MoCA फाइलिंग के अनुसार सिर्फ 130 करोड़ रुपये है।‘
इसके साथ ही उन्होंने मिसिंग डाटा का भी मुद्दा उठाया है। उन्होंने कहा, ‘एसबीआई द्वारा उपलब्ध कराया गया डेटा केवल अप्रैल 2019 में शुरू होता है, लेकिन एसबीआई ने मार्च 2018 में बॉन्ड की पहली किश्त बेची। इस डेटा से कुल 2,500 करोड़ रुपये के बॉन्ड गायब हैं। मार्च 2018 से अप्रैल 2019 तक इन गायब बॉन्ड्स का डेटा कहां है? उदाहरण के लिए, बॉन्ड की पहली किश्त में बीजेपी को 95% धनराशि मिली। बीजेपी किसे बचाने की कोशिश कर रही है?’
बात दें की चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा डाटा सार्वजनिक किया है। शीर्ष अदालत ने फरवरी में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि ये संविधान के तहत सूचना के अधिकार, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
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