ईदुल अमीन
डेस्क: ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में हाई कोर्ट इलाहाबाद के आदेश की मुखालिफत करते हुवे मस्जिद की देख रेख करने वाली संस्था अंजुमन इन्तेज़मियां मसाजिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ‘प्लेस आफ वर्शिप एक्ट 1991’ का उलंघन उक्त आदेश में होने की बात कही गई है।
मस्जिद समिति की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी ने कहा कि एसएलपी, जो आज सूचीबद्ध है, वह सबसे पुराने मुकदमे (1991 के मुकदमे) को बनाए रखने योग्य रखने वाले हाईकोर्ट के आदेश के संबंध में है। उन्होंने कहा कि एचसी के आदेश के खिलाफ बाद के मुकदमों (2021 में दायर और बाद में पूजा के अधिकार की मांग) से संबंधित अन्य एसएलपी दायर की गई हैं, जो सूचीबद्ध नहीं हैं।
वादी पक्ष की ओर से सीनियर एडवोकेट सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले आयुक्त की नियुक्ति में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। मुकदमों के संबंध में अंजुमन इंतेजेमिया मसाजिद कमेटी वाराणसी द्वारा दायर की गई पिछली याचिकाएं शीर्ष न्यायालय के समक्ष लंबित हैं। पीठ ने वर्तमान मामले को संबंधित मामलों के साथ टैग करने का निर्णय लिया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता राज्य की ओर से और सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे क्रमशः दो निजी उत्तरदाताओं की ओर से पेश हुए।
इस याचिका में कहा कहा गया है कि वाराणसी सिविल कोर्ट के समक्ष लंबित हिंदू पक्षों द्वारा सिविल मुकदमों का बैच पूजा स्थल अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित नहीं है। 1991 में हिंदू उपासकों और देवताओं की ओर से दायर यह मुकदमा ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने का अधिकार और विवादित स्थल पर मंदिर की बहाली की मांग करता है।
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