फारुख हुसैन
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फ़ैसले में गुरुवार को कहा कि अनुच्छेद 370 के रद्द किए जाने की आलोचना करना कोई अपराध नहीं है। अदालत ने महाराष्ट्र के एक प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम पर दर्ज मुक़दमे को रद्द करते हुए यह बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि पुलिस को भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर संवेदनशील होना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि सरकार के खिलाफ हर आलोचना या विरोध को अगर धारा 153-ए के तहत अपराध मान लिया जाएगा, तो देश में लोकतंत्र नहीं बचेगा। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि 5 अगस्त, 2019 को ‘काला दिवस’ बताना विरोध और पीड़ा की अभिव्यक्ति है।
इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले हजाम के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि प्रोफेसर की टिप्पणी समाज के विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य और दुर्भावना को बढ़ावा दे सकती है। बताते चले कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त, 2019 को संसद में अनुच्छेद 370 को रद्द करने का एलान किया था।
सरकार के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी। अब से लगभग तीन महीने पहले 11 दिसंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाया कि अनुच्छेद 370 को हटाया जाना ठीक था।
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