तारिक़ आज़मी
डेस्क: साइबर अपराध से जुडा एक शब्द ‘डिजिटल गिरफ़्तारी’। अमूमन सायबर क्राइम में इस शब्द के मकड़जाल में किसी कम पढ़े लिखे को फसते हुवे नहीं पाया गया है। मगर पढ़े लिखे इस झांसे में आ सकते है। जिसमे काल करने वाला व्यक्ति अपने आपको कोई बड़ा अधिकारी बता कर आपको ‘डिजिटल अरेस्ट’ किये जाने की बात कहता है और कहता है कि आप लगतार कैमरे के नज़र में रहे।
नोएडा और फ़रीदाबाद के मामले में भी यही हुआ। डिजिटल गिरफ्तारी के मामले में घोटालेबाज एक वर्चुअल लॉकअप भी बनाते हैं और गिरफ्तारी ज्ञापन पर हस्ताक्षर को भी डिजिटल बना दिया जाता है। इनसे बचने के लिए आपको थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है। किसी भी अनजान नंबर से आने वाली कॉल की जानकारी पर भरोसा न करें। किसी भी जांच एजेंसी का अधिकारी आपको मोबाइल फोन कैमरे पर बने रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। आप स्पष्ट रूप से समझ में कि ‘डिजिटल गिरफ़्तारी’ जैसी कोई प्रक्रिया कानून में नही है।
इस तरीके के अपराध का शिकार अक्सर पढ़े लिखे और समझदार लोग हो जाते है। ताज़ा मामला ही आप देख ले कि एक महिला अधिवक्ता को सायबर ठगों ने अपना शिकार बना लिया और उससे दस लाख रूपये वसूल लिए। मामला बेंगलुरु जहा महिला अधिवक्ता को ‘डिजिटल अरेस्ट’ की बात कही गई और फिर जालसाजों ने ‘नारकोटिक्स’ टेस्ट के बहाने महिला वकील को कैमरे के सामने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया। इसके बाद उसने महिला से 10 लाख रुपये से ज्यादा ऐंठ लिए।
पुलिस ने बताया कि शुक्रवार, 5 अप्रैल को आरोपियों ने महिला को फोन किया और खुद को मुंबई में सीमा शुल्क विभाग का अधिकारी बताया। इसके बाद उन्होंने दावा किया कि उनके नाम पर सिंगापुर से एक एमडीएमए पैकेज भेजा गया था। इसके बाद उसने वीडियो कॉल पर महिला से कहा कि उसे ‘नारकोटिक्स टेस्ट’ कराना होगा। इसी जांच के नाम पर आरोपियों ने महिला से जबरदस्ती कपड़े उतरवाए और इसका वीडियो रिकॉर्ड कर लिया।
महिला ने ईस्ट सीईएन पुलिस को बताया कि यह घटना दो दिनों तक चलती रही। इसके बाद उन्होंने महिला को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया कि अगर उसने उनके खाते में 10 लाख रुपये ट्रांसफर नहीं किए तो वे इस वीडियो को ऑनलाइन अपलोड कर देंगे। जालसाजों की धमकी से महिला वकील डर गई और आरोपी के खाते में पैसे ट्रांसफर कर दिए। बाद में महिला ने रविवार 7 अप्रैल को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
फिलहाल पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, जबरन वसूली और धोखाधड़ी से संबंधित कानूनों के तहत मामला दर्ज किया है। साथ ही उनकी पहचान और गिरफ्तारी के लिए आरोपियों के मोबाइल नंबरों और बैंक खातों की तकनीकी निगरानी शुरू कर दी गई है। हम अपने सभी सुधि पाठको को आगाह करते है कि ऐसे धोखेबाजो से बचे और ऐसी किसी भी परिस्थिति में स्थानीय पुलिस से संपर्क करे। एक बार आपको फिर बताते चलते है कि कानून में ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसा कोई शब्द या प्रक्रिया नही है। सावधान रहे और सुरक्षति रहे।
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