शाहीन बनारसी
डेस्क: अमेरिका के कुछ जानेमाने विश्वविद्यालयों में पिछले कुछ दिनों से ग़ज़ा को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पुलिस और प्रशासन के लोग इन प्रदर्शनों को रोकने और प्रर्शनकारियों पर काबू पाने की कोशिश में हैं। सोशल मीडिया में इन विरोध प्रदर्शनों से जुड़े पोस्ट किए जा रहे हैं जिनमें लोग ‘इंतेफ़ादा’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। काफी लोगो को इस लफ्ज़ के मायने नही पता है।
इस शब्द का इस्तेमाल इसराइल के ख़िलाफ़ फ़लस्तीनियों के भीषण विरोध प्रदर्शनों के दौर को बताने के लिए होता है। पहला इंतेफ़ादा 1987 से लेकर 1993 तक हुआ था। वहीं, दूसरा इंतेफ़ादा 2000 से लेकर 2005 तक हुआ था। बीते साल सात अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले और फिर इसराइल की जवाबी कार्रवाई के बाद अब सोशल मीडिया पर ‘इंतेफ़ादा को विश्व भर में फैलेने’ की मांग हो रही है। सोशल मीडिया पर दुनिया भर के लोगों से अपील की जा रही है कि वो इसराइल का विरोध करें। इसके अलावा सोशल मीडिया पर ‘इलेक्ट्रॉनिक इंतेफ़ादा’ और ‘इंटेलेक्चुअल इंतेफ़ादा’ जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल हो रहा है और लोग इसराइली चीज़ों का बॉयकॉट करने की, उस पर प्रतिबंध लगाने की अपील कर रहे हैं।
ग़ज़ा में इसराइल के सैन्य अभियान का विरोध करने के लिए अमेरिका में छात्र अपनी पढ़ाई छोड़कर कक्षाओं से बाहर निकल रहे हैं। वो इन विरोध प्रदर्शनों के लिए बनाए गए अस्थायी टेंटों में इकट्ठा हो रहे हैं। अब तक यूनिवर्सिटी परिसरों से विरोध प्रदर्शनो में हिस्सा लेने वाले सैकड़ों छात्रों को गिरफ्तार किया जा चुका है। जिन विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं वो हैं न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, बर्कले में यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन।
इसके अलावा बॉस्टन के एमरसन कॉलेज और टफ्ट्स यूनिवर्सिटी और इसके नज़दीक के कैम्ब्रिज में मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में भी विरोध प्रदर्शन होने की ख़बर है। इन विरोध प्रदर्शनों के कारण कोलंबिया यूनिवर्सिटी मं कई छात्रों को स्स्पेंड कर दिया गया है जिसके बाद उनके ख़िलाफ़ उठाए गए कदम को वापिस लिए जाने या रद्द करने की मांग उठ रही है। दूसरी तरफ अमेरिका में पढ़ाई कर रहे कई यहूदी छात्रों ने कहा है बीते दिनों में यूनिवर्सिटी कैंपस का माहौल बदला है जिससे उनका डर बढ़ रहा है।
लेकिन दूसरे प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यहूदी छात्रों को परेशान करने के वाकये न के बराबर हैं। उनका दावा है कि जो लोग इस तरह की चिंता जता रहे हैं वो मामले को बढ़ा-चढ़ा कर बता रहे हैं और उनकी मांगों के विरोध में हैं। दूसरी तरफ़, एक्टिविस्ट विश्वविद्यालय परिसरों में ग़ज़ा में हो रहे ‘जनसंहार’ का विरोध करने की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है कि बड़े विश्वविद्यालय या कॉलेज ऐसी कंपनियों में छात्रों की नियुक्ति प्रक्रिया को रोकें जो या तो हथियारों के निर्माण में शामिल हैं या फिर ऐसी इंडस्ट्री में हैं जो इसराइल-ग़ज़ा युद्ध का समर्थन करती हैं।
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