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मदर्स डे पर बोल शाहीन के लब आज़ाद है तेरे: ‘चलती फिरती आँखों से अजां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है….!’

शाहीन बनारसी

मां….! महज़ छोटे से इस लफ्ज़ में संसार बसता है। जिसके पास माँ है उसके पास दुनिया है और जिसके माँ नहीं, उसके पास ये दुनिया भी हो तो उसका सब कुछ अधुरा रहता है। आज मदर्स डे है। सोचा माँ की अजमत बयां करू मगर अभी से ही शाहीन के लफ्ज मोहताज़ हो रहे है और शाहीन की कलम की स्याही मुंह मोड़ रही है। आज दुनिया भर के लोग माँ की मुहब्बत में डूबे दिखाई दे रहे है। कुछ माँ के साथ घूम रहे है, कुछ बेहतरीन तोहफे तलाश रहे है और तो कुछ व्हाट्सएप्प स्टेटस पर माँ के लिए शेरो शायरी लिख रहे है।

मगर मेरा मानना है कि दुनिया में मिली इस जन्नत को उसकी अहमियत बताने के लिए कोई भी बच्चा किसी मदर्स डे का मोहताज नहीं है। माँ एक ऐसी रहमत, अज़मत और जन्नत है जिसकी कैफियत बयां नहीं की जा सकती है। 9 महीने बच्चो को कोख में पालने के बाद दुनिया में लाने का ख़्वाब जितना एक माँ संजोती है कोई नहीं संजो सकता। कहने को महज़ 9 महीना है मगर ये 9 महीने में जितनी मुसीबते माँ झेलती है कोई उसको महसूस भी नहीं कर सकता। उसके बाद भी दुनिया में माँ जैसी मुहब्बत एक औलाद को कोई नहीं कर सकता है। माँ दुनिया की एकलौती ऎसी शख्सियत है जो बिना किसी मुहब्बत के अपने बच्चो से मुहब्बत करती है। आज मदर्स डे के इस मौके पर आइये जानते है क्यों मनाते है मदर्स डे-

इस दिन को मनाने की शुरुआत एना रीव्स जार्विस ने की थी। इसके पीछे कहानी ऐसी है कि इस दिन के जरिए एना अपनी मां एन रीव्स जार्विस को श्रद्धांजलि देना चाहती थीं। उनकी मां, गृहयुद्ध के समय एक एक्टिविस्ट की तरह काम करती थीं। जब 1904 में उनकी मृत्यु हुई, तो उनकी याद में उनकी पहली पुण्यतिथि पर वेस्ट वर्जिनिया में एक आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अन्य महिलाएं, जो मां बन चुकी थीं, को सफेद कार्नेशन दिए, जो उनकी मां के पसंदीदा फूल थे। इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि हर साल Mother’s Day मनाया जाना चाहिए, जिसके लिए उन्होंने कई कैंपेन किए और अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने 1914 में हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे की तरह मनाने की घोषणा की। इस तरह हुई मदर्स डे मनाने की शुरुआत।

लेखिका शाहीन बनारसी एक युवा पत्रकार है

माँ वो दौलत है जो दुनिया की सबसे बड़ी नेअमत और कभी न खत्म होने वाली दौलत है। माँ की दुआ में वो ताकत है जो अपने बच्चो को मौत के मुंह से भी खींच लाती है। बच्चो को तकलीफ हो तो माँ का दिल रो देता है। माँ के दिल के तार उसकी औलादों से इस तरह जुड़े होते है कि मुसीबत आने से पहले वो अपने बच्चो को आगाह कर देती है। क्या बयां करू उस माँ कि कैफियत जो खुद भूखी रहे मगर अपने बच्चो को दो लुकमा ज्यादा खिलाती है। बेशक माँ का प्यार बिना किसी मतलब के होता है। माँ के लिए तो बस इतना ही कहूँगी कि “चलती फिरती आँखों से अजां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।”

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