तारिक़ आज़मी
डेस्क: जो भाजपा पुरे देश में अपनी यह उपलब्धि बताती फिर रही है कि उसने जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटा दिया है, और इसके नाम पर वोट की अपील भी भाजपा कर रही है। अलग अलग मंचो से कश्मीर के मुस्लिम और हिन्दू दोनों में ख़ुशी की बात भी भाजपा नेताओं के द्वारा किया जाता है। मगर इन सबके बीच भाजपा कश्मीर घाटी से अपने प्रत्याशी नही उतार रही है।
ख़ास तौर पर यह अचम्भा और भी तब हो रहा है जब पिछले कुछ सालों में स्थानीय भाजपा नेताओं ने भी ‘घर-घर अभियान’ शुरू कर कश्मीर में अपना आधार बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है। इसलिए आम चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को मैदान में न उतारने के पार्टी फैसले पर कई लोगों को हैरानी हो रही है।
कश्मीर और दिल्ली के बीच दशकों से संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। भारत सरकार के ख़िलाफ़ चरमपंथ और उसे दबाने के लिए हुई सैन्य कार्रवाई ने पिछले तीन दशकों में यहां हजारों लोगों की जान ली है। हालात तब और खराब हुए, जब साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया- जम्मू और कश्मीर और लद्दाख। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को अच्छी खासी स्वायत्तता देता था।
इसके साथ ही केंद्र सरकार ने इंटरनेट और संचार व्यवस्था को भी सीमित करते हुए तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित सैकड़ों नेताओं को महीने तक जेल में डाल दिया। तब से पीएम मोदी और उनके मंत्री, साल 2019 में लिए गए फ़ैसले को सही बताते हैं और दावा करते हैं कि इससे जम्मू और कश्मीर में शांति आई है। हालांकि जम्मू और कश्मीर में भाजपा के मुख्य प्रवक्ता सुनील सेठ का दावा है कि पार्टी के लिए चुनाव प्राथमिकता नहीं है और उनका मुख्य उद्देश्य ‘लोगों का दिल’ जीतना है।
उन्होंने कहा, ‘कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों के साथ पूरी तरह से मिलाने में हमें 75 साल लग गए और हम यह धारणा नहीं बनाना चाहते कि हमने यह काम सिर्फ सीटें जीतने के लिए किया है।’ लेकिन राजनीति के जानकार इसके पीछे दूसरी वजह बताते हैं। उनका मानना है कि भाजपा ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि उसे पता है कि यहां जीत हासिल करना आसान नहीं होगा।
वही दूसरी तरफ विपक्षी नेताओं का आरोप है कि भाजपा, 2019 में लिए गए अपने फ़ैसले को रेफरेंडम में तब्दील होने से बचाना चाहती है, जिसकी वजह से उसने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है। जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘अगर लोग अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले से खुश होते, जो भाजपा चुनाव लड़ने से पीछे नहीं हटती। वे (भाजपा) खुद को बेनक़ाब नहीं करना चाहते और अपने चेहरे को बचाने के लिए उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है।’
यह कदम इसलिए भी सबको हैरान करने वाला है क्योंकि 1996 के बाद यह पहली बार है जब भाजपा ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है। पार्टी को परंपरागत रूप से यहां ज्यादा समर्थन हासिल नहीं है, लेकिन राजनीति के जानकार लोगों का कहना है कि हाल के सालों में भाजपा का कैडर यहां बढ़ा है। भाजपा ने सबसे अच्छा प्रदर्शन जम्मू और कश्मीर में साल 2016 के विधानसभा चुनावों में किया था।
तब वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उस समय भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। भाजपा ने कुल 87 में से जम्मू की 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यही आख़िरी विधानसभा चुनाव था, क्योंकि साल 2018 में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन टूट गया, जिसके बाद जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया। साल 2020 में हुए स्थानीय चुनावों में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया। भाजपा ने कश्मीर की तीन सीटों पर भी तब जीत दर्ज की थी।
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