तारिक़ आज़मी
वाराणसी: शायद धनबल में बड़ी शक्ति होती है। इसके बल पर सभी नियम कायदे और कानून को ताख पर रखवाया जा सकता है और मनमाना घर जाना किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ उदहारण देखने को मिल रहा है भेलूपुर थाना क्षेत्र के मह्मूरगंज इलाके में, जहा धनबल के साथ मह्मूरगंज चौकी इंचार्ज खड़े दिखाई दे रहे है और मामले में उच्चाधिकारियों को भी गुमराह कर रहे है।
वैसे इस कुआ के पानी हेतु अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के बेच जस्टिस आरबी मिश्रा और जस्टिस एपी सेन द्वारा वर्ष 1984 में अय्यु स्वामी वर्सेज मुन्नू स्वामी के केस में सुनवाई के बाद दिनाक 25/9/1984 को दिए गए आदेश जिसमे अदालत ने साफ़ साफ़ कहा था कि ‘कुआ भले किसी की संपत्ति हो मगर उसका जल सार्वजनिक संपत्ति है और उससे किसी को रोका नही जा सकता’ का पालन हुआ था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति हमारे पास भी सुरक्षित है। अदालत सिविल जज सीनियर डिविज़न ने इस आदेश के दृष्टिगत ही संपत्ति के बटवारे में शरायत संख्या 17 को स्वीकार किया था जिसमे साफ़ साफ़ विवेक खन्ना को पानी देने की बात कही गई थी।
समय बीतता गया और विकास खन्ना ने अपनी संपत्ति एक बैंक में रेहन रख दिया। समय से बैंक का लिया लोन न चुका पाने के कारण बैंक ने यह संपत्ति नीलाम किया जिसको नरेन्द्र लख्वानी ने नीलामी में खरीद लिया। सपत्ति खरीदने के बाद नरेन्द्र लख्वानी जो भारी धनबली और ऊँची पहुच वाला बताया जाता ने जून शुरू होने का इंतज़ार किया ताकि सिविल कोर्ट बंद हो जाए और उसके बाद उसने सेटिंग गेटिंग का सहारा लेकर कुआ बंद करवाना शुरू कर दिया। इधर पानी की किल्लत जब विवेक खन्ना को होने लगी तो वह बुज़ुर्ग शख्स अधिकारियो तक दौड़ लगाने लगे।
मगर कहा जाता है कि कागज़ कही लगाओ, रिपोर्ट तो चौकी इंचार्ज को लगानी होती है। बस चौकी इंचार्ज साहब लख्वानी के धनबल के आगे नतमस्तक और सभी अधिकारियो को भी गुमराह किये पड़े है। विवेक खन्ना को आज कल और फिर कोई अदालत से आदेश नया लेकर आओ के नाम पर टहला रहे है और इधर अदालत बंद है। चौकी इंचार्ज महमुरगंज से जब हमने फोन पर इस सम्बन्ध में बात किया तो उन्होंने हमसे भी यही राग अलापा कि ‘उनसे तो 15 दिन का वक्त दिया था अदालत से स्टे लाने के लिए, अब वह नही ला पाए तो क्या ही किया जा सकता है।’ हमारे सवाल थोडा पढ़े लिखे वाले थे और हमने जब सवाल दागा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और सिविल जज सीनियर डिविज़न के आदेश का क्या ? जब अदालत में छुट्टी चल रही है तो फिर कहा से खन्ना साहब आदेश लायेगे, पर चौकी इंचार्ज साहब मिल कर पूरी बात करने की बात कहने लगे और फोन काट दिया।
अब सवाल उठता है कि क्या चौकी इंचार्ज साहब फोन पर बात न करके चौकी बुला कर वर्दी का धौस दिखाना चाहते है या फिर नरेन्द्र लख्वानी के धन बल के आगे मुझे भी अपने जैसे नतमस्तक करना चाहते है? ये तो चौकी इंचार्ज जाने मगर एक बात तो साफ़ है कि चौकी इंचार्ज की भूमिका अब तक 10 ट्रैक्टर पड़ चुके इस कुवे में बालू से संदिग्ध है।
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